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घर की दहलीज लांघ आत्मनिर्भर बन रहीं फतेहपुर की यह महिलाएं

यूपी के फतेहपुर जिले में सदर तहसील के अस्ती गांव की महिलाएं गांव के प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी की मदद से आत्मनिर्भर बन रही हैं. ग्रामीण महिलाएं यहां समूह बनाक कपड़े के बैग बनाने का काम कर रही हैं. जिससे वह खुद और परिवार का खर्च भी उठा रही हैं.

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आत्मनिर्भर बन रहीं फतेहपुर की यह महिलाएं
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Published : Oct 17, 2020, 5:41 PM IST

फतेहपुर: महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. आज के परिदृश्य में महिलाएं केवल चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रह गई हैं. महिलाएं घर की दहलीज लांघकर बाहर निकल रही हैं और अपना कल सवांरने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. जिले के सदर तहसील क्षेत्र के अस्ती गांव की महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान आत्मनिर्भर बनने का काम किया है और सिलाई कर अपना भविष्य संवार रही हैं.

आत्मनिर्भर बनतीं ग्रामीण महिलाएं.
महिलाओं को किया जागरूक

सदर तहसील के अस्ती गांव के प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी गांव में निकलीं और ग्रामीण महिलाओं को घर से निकालकर कुछ करने के लिए जागरूक किया. इसके बाद जब काम चुनने की बारी आई तो उन्होंने सिलाई को चुना और सिलाई में भी कपड़े के बैग बनाने की सोची, लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. ग्रामीण महिलाओं के पास न तो सिलाई मशीनें थी, न रॉ मैटेरियल और न ही कोई ऐसा स्थान जहां यह कार्य शुरू किया जा सके.

जानिए कैसे हुई काम की शुरुआत
इसके लिए प्रधानाध्यापिका ने गांव-गांव जाकर खराब पड़ी मशीनें एकत्र की और मैकेनिक बुलाकर उसे सही कराया. इसके बाद कुछ मशीनें वह स्वयं अपने घर से लाईं. रॉ मैटेरियल उन्होंने कानपुर से थोक में मंगाया और विद्यालय के एक कमरे को दक्षता कक्ष बना दिया. चूंकि विद्यालय खुले थे, लेकिन बच्चे नहीं आ रहे थे, तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई. उसके बाद गांव के टेलर मास्टरों की मदद से सभी महिलाओं ने कटिंग आदि सीखी. महिलाओं की मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि अब यहां कई महिलाएं दक्ष हो रहीं और कुछ दक्ष हो चुकी हैं.

साजिया ने बताया कि वह काफी समय से सिलाई का काम सीखना चाह रही थीं, लेकिन यहां कोई व्यवस्था नहीं थी. मैम के द्वारा उन लोगों को आगे बढ़ने का अवसर दिया गया. मैम ने सीखने के लिए टेलर को बुलाया है, जो हमें काम सिखाते हैं. ग्रामीण महिला सुमन शर्मा ने बताया कि हम लोगों ने घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया. इसके बाद काफी महिलाएं हमारे साथ जुड़ रही हैं. हम लोग यहां काम सीखकर आगे बढ़ेंगे. अपना काम शुरू कर अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और परिवार चलाने में मदद कर सकेंगे. इससे हमको काफी मदद मिलेगी.

हम अपनी बहन और मां के साथ यहां काम सीख रहे हैं. पहले बैग बनाना सीख रहे हैं. इसके बाद सलवार कुर्ता, पैंट, शर्ट बनाना भी सीखेंगे. इसके बाद इसकी बाजार में बिक्री कर पैसे कमा सकेंगे. इससे हमारा घर भी चल सकेगा और बाजार में कपड़े के बैग बेचने से शहर पॉलीथिन मुक्त भी हो सकेगा.

-छाया देवी, ग्रामीण युवती

एक अन्य ग्रामीण महिला महसर जहां ने बताया कि उसके पति पैरालाइसिस से ग्रसित हैं, जिससे लगातार बीमार चल रहे हैं. उनका कहना है कि यहां हम काम इसलिए सीख रहे हैं, जिससे परिवार व पति के भरोसे न रहें. हम अपना काम शुरू कर सकें और बच्चों का पालन-पोषण करने के साथ परिवार का खर्च भी उठा सकें.

महिलाओं के उत्थान के लिए काम कर रहीं प्राथमिक विद्यालय अस्ती की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी ने बताया कि उनके मन में महिलाओं और लड़कियों के लिए कुछ करने का हमेशा जज्बा रहता है. जो लड़कियां लॉकडाउन के दौरान कहीं जा नहीं सकती, कुछ कर नहीं सकती, जो मां-बाप पर डिपेंड हैं और आर्थिक संकट से जूझ रही हैं उनके अंदर कुछ करने का जज्बा आ गया है. धीरे-धीरे काफी महिलाएं इससे जुड़ रही हैं और सीख रही हैं.

मैंने लोगों से संपर्क किया, अपने परिवार में बात की और सारे इंस्ट्रूमेंट महिलाओं को उपलब्ध कराए. जिससे उन्हें कोई परेशानी न हो और वह सीख सकें. इसके लिए हमने गांव के टेलर मास्टरों का भी सहयोग लिया है, जो कटिंग का काम सिखाते हैं. यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. हम इस काम को आगे भी शुरू रखेंगे. सरकार से हम यही अपेक्षा करते हैं कि उन्हें ऐसे कार्यों के लिए मदद करे. जिससे वह किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का शिकार न हों.

-आसिया फारूकी, प्रधानाध्यापिका अस्ती

फतेहपुर: महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. आज के परिदृश्य में महिलाएं केवल चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रह गई हैं. महिलाएं घर की दहलीज लांघकर बाहर निकल रही हैं और अपना कल सवांरने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. जिले के सदर तहसील क्षेत्र के अस्ती गांव की महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान आत्मनिर्भर बनने का काम किया है और सिलाई कर अपना भविष्य संवार रही हैं.

आत्मनिर्भर बनतीं ग्रामीण महिलाएं.
महिलाओं को किया जागरूक

सदर तहसील के अस्ती गांव के प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी गांव में निकलीं और ग्रामीण महिलाओं को घर से निकालकर कुछ करने के लिए जागरूक किया. इसके बाद जब काम चुनने की बारी आई तो उन्होंने सिलाई को चुना और सिलाई में भी कपड़े के बैग बनाने की सोची, लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. ग्रामीण महिलाओं के पास न तो सिलाई मशीनें थी, न रॉ मैटेरियल और न ही कोई ऐसा स्थान जहां यह कार्य शुरू किया जा सके.

जानिए कैसे हुई काम की शुरुआत
इसके लिए प्रधानाध्यापिका ने गांव-गांव जाकर खराब पड़ी मशीनें एकत्र की और मैकेनिक बुलाकर उसे सही कराया. इसके बाद कुछ मशीनें वह स्वयं अपने घर से लाईं. रॉ मैटेरियल उन्होंने कानपुर से थोक में मंगाया और विद्यालय के एक कमरे को दक्षता कक्ष बना दिया. चूंकि विद्यालय खुले थे, लेकिन बच्चे नहीं आ रहे थे, तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई. उसके बाद गांव के टेलर मास्टरों की मदद से सभी महिलाओं ने कटिंग आदि सीखी. महिलाओं की मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि अब यहां कई महिलाएं दक्ष हो रहीं और कुछ दक्ष हो चुकी हैं.

साजिया ने बताया कि वह काफी समय से सिलाई का काम सीखना चाह रही थीं, लेकिन यहां कोई व्यवस्था नहीं थी. मैम के द्वारा उन लोगों को आगे बढ़ने का अवसर दिया गया. मैम ने सीखने के लिए टेलर को बुलाया है, जो हमें काम सिखाते हैं. ग्रामीण महिला सुमन शर्मा ने बताया कि हम लोगों ने घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया. इसके बाद काफी महिलाएं हमारे साथ जुड़ रही हैं. हम लोग यहां काम सीखकर आगे बढ़ेंगे. अपना काम शुरू कर अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और परिवार चलाने में मदद कर सकेंगे. इससे हमको काफी मदद मिलेगी.

हम अपनी बहन और मां के साथ यहां काम सीख रहे हैं. पहले बैग बनाना सीख रहे हैं. इसके बाद सलवार कुर्ता, पैंट, शर्ट बनाना भी सीखेंगे. इसके बाद इसकी बाजार में बिक्री कर पैसे कमा सकेंगे. इससे हमारा घर भी चल सकेगा और बाजार में कपड़े के बैग बेचने से शहर पॉलीथिन मुक्त भी हो सकेगा.

-छाया देवी, ग्रामीण युवती

एक अन्य ग्रामीण महिला महसर जहां ने बताया कि उसके पति पैरालाइसिस से ग्रसित हैं, जिससे लगातार बीमार चल रहे हैं. उनका कहना है कि यहां हम काम इसलिए सीख रहे हैं, जिससे परिवार व पति के भरोसे न रहें. हम अपना काम शुरू कर सकें और बच्चों का पालन-पोषण करने के साथ परिवार का खर्च भी उठा सकें.

महिलाओं के उत्थान के लिए काम कर रहीं प्राथमिक विद्यालय अस्ती की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी ने बताया कि उनके मन में महिलाओं और लड़कियों के लिए कुछ करने का हमेशा जज्बा रहता है. जो लड़कियां लॉकडाउन के दौरान कहीं जा नहीं सकती, कुछ कर नहीं सकती, जो मां-बाप पर डिपेंड हैं और आर्थिक संकट से जूझ रही हैं उनके अंदर कुछ करने का जज्बा आ गया है. धीरे-धीरे काफी महिलाएं इससे जुड़ रही हैं और सीख रही हैं.

मैंने लोगों से संपर्क किया, अपने परिवार में बात की और सारे इंस्ट्रूमेंट महिलाओं को उपलब्ध कराए. जिससे उन्हें कोई परेशानी न हो और वह सीख सकें. इसके लिए हमने गांव के टेलर मास्टरों का भी सहयोग लिया है, जो कटिंग का काम सिखाते हैं. यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. हम इस काम को आगे भी शुरू रखेंगे. सरकार से हम यही अपेक्षा करते हैं कि उन्हें ऐसे कार्यों के लिए मदद करे. जिससे वह किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का शिकार न हों.

-आसिया फारूकी, प्रधानाध्यापिका अस्ती

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