फतेहपुर: गंगा-यमुना के दोआबा में बसा फतेहपुर जिला अपनी प्राचीन दिव्यता और भव्यता के लिए जाना जाता है. धार्मिक और व्यापारिक स्थान होने के चलते इसे छोटी काशी कहा जाता था. यहां गंगा के तटीय गांवों में कदम-कदम पर शिवालय हैं. इन्हीं गांवों में एक शिवराजपुर गांव है, जहां के मंदिरों की नक्काशी आज भी आपको प्राचीन समय की भव्यता का दर्शन कराती है. वहीं मीरा की ओर से स्थापित गिरधर गोपाल के मंदिर यहां की आस्था रसधारा प्रवाहित करती है, लेकिन यहां की दिव्यता और भव्यता दिन प्रतिदिन इतिहास में दर्ज होती जा रही है.
5 हजार वर्ष पुराना है इतिहास
शिवराजपुर का गांव का इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है. गंगा के किनारे बसा यह गांव ऋषि मुनियों, विद्वानों और व्यापारियों को अपनी तरफ आकर्षित करता था. इस गांव की मिट्टी पर भृगु, दुर्वाषा जैसे ऋषि के साथ ही साथ कृष्ण की प्रेम दीवानी मीरा का कदम भी ठहरा. मीरा यहां अपने गिरधर गोपाल को स्थापित कर बनारस चली गईं.
मीरा ने यहीं किया था श्रीकृष्ण को स्थापित
लोगों की मान्यता के अनुसार, मीरा शिवराजपुर में कार्तिक पूर्णिमा के भव्य मेले के समय आई थीं. इस मेले की पहचान यही है कि उत्तर प्रदेश के गजेटियर में 16 मेले का नाम दर्ज है. उसमें से एक शिवराजपुर का मेला है. इस गांव की भव्यता बहुत थी. मगर आज वो खण्डहर में तब्दील होते जा रहे हैं. इस गांव से गंगा ने भी रुखसती कर ली है और अब वह दो किलोमीटर दूर से बहती हैं. वहीं लोगों ने भी इस धार्मिक नगरी से जैसे मुंह मोड़ लिया है. इस धरती में मीरा के गिरधर गोपाल हैं, रसिक बिहारी जी का भव्य मंदिर है, जहां न तो जनप्रतिनिधि नजर आते हैं और न ही प्रशासन. इसका परिणाम यह है कि आज यहां के मंदिरों की दशा दयनीय हो गई है. इन मंदिरों की देखभाल और पूजा करने के लिए भी कोई नहीं है.
पूर्व प्रधान रमाकान्त त्रिपाठी बताते हैं कि गंगा के किनारे बिठूर, कन्नौज, शिवराजपुर और प्रयागराज से व्यापार होता था. शिवराजपुर गंगा और यमुना के बीच व्यापार का प्रमुख केंद्र था. इसे छोटी काशी कहा जाता था. यहां कार्तिक पूर्णिमा का भव्य मेला लगता था. मेले में लोगों की संख्या इस कदर रहती थी कि जिलाधिकारी और एसपी का कैम्प लगता था. यहीं से मैजिस्ट्रेट की कोर्ट चलती थी.
लगता था यहां भव्य मेला
कार्तिक पूर्णिमा के मेले में ही 15वीं शताब्दी में मीरा का आगमन शिवराजपुर में हुआ था. मीरा तीन दिन यहां ठहरी थीं और अपने गिरधर गोपाल को यहीं स्थापित कर बनारस चली गईं. समय का तकाजा ऐसा रहा कि गंगा इस गांव से दो किमी दूर चली गईं. आज यहां के घाट पर सूनापन है तो वहीं मंदिरों में सन्नाटा. लोगों ने भी शिवराजपुर की धार्मिक भव्यता से दूरी बना ली है. आज यहां के मन्दिर खण्डहर में तब्दील हो रही हैं.
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