फतेहपुर: जनपद का प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर प्रदेश के आदर्श विद्यालयों में से एक हैं. इस स्कूल में छात्रों को आधुनिक प्रणाली से शिक्षित किया जाता है. जो सुविधाएं जिले के मंहगे कान्वेंट स्कूल में नही हैं वह इस परिषदीय विद्यालय में उपलब्ध हैं. इस विद्यालय के स्वच्छ परिसर की हरियाली और सौंदर्य सभी को आकर्षित कर लेता है, लेकिन यह स्कूल से इससे भी दो कदम आगे है. यहां बच्चों के साथ-साथ उनके परिजनों की भी क्लास चलाई जाती है. यह स्कूल गांव के सर्वांगीण विकास की धारणा पर काम कर रहा है.
गरीब बच्चों का भविष्य उज्जवल हो इसके लिए प्रधानाध्यापिका नीलम भदौरिया ने तन-मन और धन विद्यालय को समर्पित कर दिया है. उन्होंने स्वयं के पैसे से नौनिहालों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए विद्यालय का कायाकल्प किया, लेकिन कुछ समय बाद लगा कि केवल स्कूल में बदलाव लाकर इन बच्चों के जीवन में सुधार नहीं लाया जा सकता. उन्होंने अनुभव किया कि ये बच्चे जिस मौहाल से आतें हैं, वहां का माहौल ही शिक्षा के अनुरूप नहीं है. उन्हें लगा कि गांव के लोग रूढ़िवादी हैं, अशिक्षित हैं और इसके पीछे कारण है गरीबी, जिसे दूरकर मानसिकता में परिवर्तन लाया जा सकता है.
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए परिजनों का जागरूक होना जरूरी
प्रधानाध्यापिका नीलम भदौरिया की परहवापुर प्राथमिक विद्यालय में 1990 में पोस्टिंग हुई थी. गरीब परिवार के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए उन्होंने पूरे विद्यालय का कायाकल्प स्वयं के वेतन से किया. उसके बाद यह महसूस हुआ कि बगैर इनके परिजनों के हालात में बदलाव किए बेहतर परिणाम नहीं मिल सकते. इसके बाद 2008 में मिशन बनाकर नीलम ने घर-घर जाकर महिलाओं से मिलकर उनकी परेशानी जानी. गांव में कोई गरीबी से जूझ रहा था, तो कोई सब कुछ होते हुए शिक्षा से बहुत दूर था, तो किसी के पति को शराब की लत थी, जिस कारण से परिवार की स्थिति दयनीय थी.
यह सब जानने के बाद प्रधानाध्यापिका नीलम भदौरिया स्कूल की छुट्टी के बाद गांव की महिलाओं की क्लास स्कूल में चलाने लगीं. धीरे-धीरे यहां सिलाई, कढ़ाई ,ब्यूटीशियन,अचार बनाना, लिफाफे बनाने सहित कई स्वरोजगार के प्रशिक्षण की शुरुआत हुई. स्कूल में महिलाओं को सही तरीके से रहन-सहन, बातचीत करने के तरीके सिखाए गए. जो अशिक्षित थीं, उन्हें नाम लिखना सिखाया गया. इसी का परिणाम हुआ कि अब गांव की महिलाएं जो कभी पर्दे के कारण घर से नहीं निकलती थीं, आज स्वरोजगार कर अपने-अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं.
पर्दे में रहने वाली सोनिया, आज दे रही दूसरों को रोजगार
प्रधानाध्यापिका नीलम भदौरिया के प्रयास का फल अब गांव में दिखने लगा है. इसका उदाहरण है गांव की रहने वाली सोनिया, जो कभी घर से बाहर ही नहीं निकलती थी. पति के रोजगार न करने से जीवन गरीबी और तंगहाली से गुजर रहा था. 2011 में सोनिया की मुलाकात प्रधानाध्यापिका नीलम भदौरिया से हुई. इस दौरान सोनिया ने कुछ करने की इच्छा जताई तो प्रधानाध्यापिका ने उसे स्कूल में रसोइया के पद पर नियुक्त किया. स्कूल में मिड-डे मील बनाने के साथ ही सोनिया ने पढ़ना-लिखना सीखा. इसके बाद यहीं सिलाई-कढ़ाई और ब्यूटीशियन की भी ट्रेनिंग ली. इसके बाद 2014 में रसोइये की नौकरी छोड़कर खुद का सिलाई सेंटर खोल दिया. जहां अब मौजूदा समय में सोनिया के पास पांच सिलाई मशीने हैं. अपने सिलाई सेंटर में सोनिया जहां खुद सिलाई करती हैं तो वहीं गांव की लड़कियों को प्रशिक्षण देने का काम भी करती हैं.
जब तक गांव लोगों के जीवन स्तर में सुधार नहीं होगा, बच्चों का भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता. जब मां शिक्षित और जागरूक रहेगी तभी बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा. मैंने शुरुआती दौर में खुद घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया. उसके बाद ये छुट्टी के समय स्कूल में बुलाकर इन्हें छोटी-छोटी जानकारी देकर शिक्षित करने का प्रयास किया. जब लगा कि ये कुछ कर सकती हैं, मैंने ग्राम विकास समिति के तहत स्कूल में स्वरोजगार का प्रशिक्षण कैम्प लगवाकर इन्हें हुनरमंद बनाने की कोशिश की. इनके द्वारा बनाए गए उत्पाद लिफाफे और सजावटी वस्तुओं को बाजार तक पहुंचाने में मदद भी करती हूं.
-नीलम भदौरिया, प्रधानाध्यापिका
बच्चों के शिक्षा का विकास समूह के विकास से ही सम्भव है. पहरवापुर विद्यालय में यह कार्य हो रहा है, जो कि अत्यंत ही सराहनीय है और दूसरों के लिए प्रेरणादायी है.
-शिवेंद्र प्रताप सिंह ,बेसिक शिक्षा अधिकारी