फतेहपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा' यह बात दूसरे शहीद सैनिकों पर लागू भले ही होती हो, लेकिन फतेहपुर जिले में नौजवान सैनिक ज्ञानेंद्र सिंह की शहादत के 15 साल बीत जाने के बाद भी उनके गांव में उनकी प्रतिमा आज तक नहीं लगाई जा सकी. इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने भी गांव पहुंच कर अपनी निधि से मूर्ति लगवाने का वादा किया था, लेकिन वह वादा आज भी हकीकत में नहीं बदल पाया है. इस मामले में हद तो तब हो गई, जब सेना के अधिकारियों को भेजे एक पत्र में जिले के तत्कालीन एडीएम ने अविवाहित शहीद सैनिक को विवाहित बताते हुए कहा कि शहीद सैनिक के बेटे ने अपने खर्चे पर गांव में सैनिक की मूर्ति लगवा ली है. इतना ही नहीं, सेना को भेजे पत्र में तत्कालीन एडीएम ने शहीद सैनिक के पिता को उसका बेटा और मां को पत्नी तक दर्शा दिया.
23 साल की उम्र में शहीद
फतेहपुर जिले के सदर तहसील के मुरांव गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र सिंह 26 मार्च 2002 को सेना में भर्ती हुए थे. सेना में भर्ती होने के मात्र 3 साल बाद 21 जुलाई 2005 को जम्मू कश्मीर के पुंछ राजौरी में आतंकवादियों के साथ मोर्चा लेते हुए वे शहीद हो गए. मात्र 23 साल की उम्र में शहीद हुए ज्ञानेंद्र सिंह का शव जब उनके गांव पहुंचा, तब पूरा इलाका शहीद का अंतिम दर्शन करने के लिए उनके गांव पहुंचा था. शहादत के कुछ दिन बाद भाजपा नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह शहीद सैनिक के घर पहुंचे थे और परिजनों से मिलकर गांव में अपने सांसद निधि से शहीद सैनिक के स्मारक स्थल बनाने का वादा किया था, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों एवं नेताओं द्वारा किए गए तमाम वायदे आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं.
तत्कालीन एडीएम ने अविवाहित सैनिक के पिता को बताया बेटा, मां को पत्नी
गांव में शहीद सैनिक की प्रतिमा न लगाएं जाने से परेशान शहीद सैनिक के पिता अब तक इस मामले में राष्ट्रपति सहित थल सेना अध्यक्ष तक को पत्र लिख चुके हैं. इस मामले में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि सेना के अधिकारियों को शहीद स्मारक और सैनिक की प्रतिमा लगाए जाने के लिए भेजे गए प्रार्थना पत्र के जवाब में जिले के तत्कालिक एडीएम पप्पू गुप्ता ने मात्र 23 साल की उम्र में शहीद हुए अविवाहित सैनिक को विवाहित बताते हुए यह लिखा कि शहीद सैनिक के बेटे ने गांव में अपने खर्च पर शहीद सैनिक की प्रतिमा लगवा दी है. इतना ही नहीं, आरोप तो यह भी है कि एडीएम ने शहीद सैनिक के पिता को उसका पुत्र और मां को उसकी पत्नी तक बना दिया. एडीएम द्वारा सेना को भेजे गए पत्र से सैनिक के परिजन और गांव वाले भी काफी आहत हैं.
बूढ़ी आंखों को अभी भी है उम्मीद
नौजवान सैनिक के शहादत के 15 वर्ष गुजर जाने के बावजूद आज तक गांव में न तो शहीद का स्मारक बनाया गया है और न ही शहीद की प्रतिमा लगाई गई है. तमाम पत्र व्यवहार और वादे झूठे साबित हो जाने के बावजूद शहीद के बुजुर्ग मां बाप को आज भी इस बात की उम्मीद है कि उनके गांव में उनके बेटे की प्रतिमा जरूर लगेगी और उसके नाम पर शहीद स्थल भी जरूर बनाया जाएगा. मां-बाप की बूढ़ी आंखों को आज भी नेताओं और अधिकारियों के वादे पूरे होने का इंतजार है, लेकिन गांव में शहीद की प्रतिमा कब लगेगी, उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं है.