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फतेहपुर : विलुप्तता की कगार पर पहुंची गंगा डॉल्फिन, संरक्षण में जुटा वन विभाग

फतेहपुर जिले के आदमपुर गंगा घाट से लेकर भिटौरा ओम घाट व आसपास के क्षेत्रों में गंगा डॉल्फिन बड़ी संख्या में पाई जाती है. वन विभाग टीम बनाकर इनका संरक्षण में जुटी है. साथ ही लोगों को जागरूक भी करती है.

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विलुप्तता की कगार पर पहुंची गंगा डॉल्फिन
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Published : Aug 31, 2020, 12:12 PM IST

फतेहपुर: राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डॉल्फिन अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. जिसे बचाने के लिए केंद्र सरकार प्रोजेक्ट डॉल्फिन्स शुरू करने की योजना बना रही है. 74 वें स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त 2020 को पीएम मोदी ने लाल किले से दिए अपने भाषण में प्रोजेक्ट डॉल्फिन्स शुरू करने की योजना का जिक्र किया है. जिसके बाद एक बार फिर विलुप्तप्राय इस जीव की तरफ लोगों का ध्यान आ गया है.

देखें वीडियो
2010 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषितइनकी संख्या में लगातार कमी होने के चलते साल 2010 में भारत सरकार द्वारा इन्हें राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर दिया गया था. तब से इनके संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं. डॉल्फिन्स गंगा नदी में कुछ स्थानों पर पाई जाती हैं. इनमें फतेहपुर भी शामिल है, जहां के यहां ये बड़ी संख्या में पाई जाती थी. डॉल्फिन्स के बारे में एक और बात काफी प्रसिद्ध है कि ये शुद्ध जल में ही निवास करती हैं. यह जहां होती हैं वहां का वातावरण व जल की शुद्धता अत्यधिक होती है. यदि किसी कारणों से जल दूषित हो रहा है तो भी इनके मृत होने के आशंका बढ़ जाते हैं.जिले में आदमपुर गंगा घाट से लेकर भिटौरा ओम घाट व आसपास के क्षेत्रों में गंगा डॉल्फिन बड़ी संख्या में पाई जाती हैं और आज भी यह अक्सर अठखेलियां करती नजर आ जाती हैं. स्थानीय लोगों को माने तो ये दोपहर या सुबह जल्दी को ज्यादातर देखी जाती हैं क्योंकि इस समय माहौल शांत रहता है. जिसके कारण इस समय ये अपने ऊपर खतरे को कम आंकती हैं और बाहर निकलती हैं. बता दें स्थानीय स्तर पर लोग डॉल्फिन्स को स्वीस या सूस के नाम से पुकारते हैं.संख्या में आई कमीपिछले कुछ वर्षों में इनकी संख्या में खासी कमी देखने को मिली हैं. यह जहां पहले सैकड़ों की संख्या में होती थी वहीं अब गिनी चुनी ही रह गई हैं. हालांकि इनके देख रेख और संरक्षण के लिए वन विभाग की टीम लगातार क्षेत्र में गश्त करती है और लोगों को इनके बचाव के लिए जागरूक करती है. इसके साथ ही शिकारियों पर शिकंजा भी कसती है. लेकिन इन सबके बावजूद इसकी तस्करी की बातें भी निकालकर सामने आती हैं. गंगा किनारे पिछले 40 वर्षों से खेती करने व अपना डेरा डालने वाली स्थानीय निवासी महदेई बताती हैं कि पहले ये बड़ी संख्या में दिखाई देती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे यह कम दिखाई देती हैं. वह बताती हैं कि जब शांत वातावरण में वह शिकार के लिए मछली की तलाश में निकलती हैं तो शिकार का पीछा करते हुए वह खूब उछल कूद करती हैं.करीब 65 वर्षीय स्थानीय निवासी ने बताया कि जहां आज से 25-30 वर्ष पूर्व सैकड़ों की संख्या में स्वीस देखने को मिलती थी, वहीं अब दो चार ही दिखती हैं. शिकारी अक्सर घूमते रहते हैं जिसके चलते जलीय जीवों में कमी हो गई है. उन्होंने आगे बताया कि स्वीस का तेल रतौंधी मरीजों के काफी काम आता है जिसकी वजह से भी इसका शिकार हुआ है.वन विभाग की टीम करती है निगरानीडॉल्फिन्स के संरक्षण पर बोलते हुए क्षेत्रीय वन अधिकारी आर.एल.सैनी बताते हैं कि वह और उनकी टीम सुबह दोपहर शाम अलग-अलग समय पर क्षेत्र में बराबर गश्त करती हैं ताकि कोई इन्हें नुकसान न पहुंचाया जा सके. इनकी संख्या में कमी को लेकर वह बताते हैं कि गंगा किनारे क्षेत्रों में परम्परागत केमिकल युक्त कृषि की जाती है. जिसकी वजह से केमिकल नदी में जाता है, जिससे जल दूषित होता है. उन्होंने आगे बताया कि शिकारियों को गंगा में जाल डालने पर लगातार रोका जाता है, उन्हें जलीय जीवों के प्रति जागरूक किया जाता है. डॉल्फिन के संरक्षण के लिए यहां घाटों पर डॉलफिन के चित्र बनाए गए हैं. विभिन्न प्रकार के स्लोगन लिखे गए हैं और आने जाने वालों को इनके संरक्षण व बचाव के लिए पेटिंग्स के माध्यम से संदेश दिया जा रहा है.

फतेहपुर: राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डॉल्फिन अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. जिसे बचाने के लिए केंद्र सरकार प्रोजेक्ट डॉल्फिन्स शुरू करने की योजना बना रही है. 74 वें स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त 2020 को पीएम मोदी ने लाल किले से दिए अपने भाषण में प्रोजेक्ट डॉल्फिन्स शुरू करने की योजना का जिक्र किया है. जिसके बाद एक बार फिर विलुप्तप्राय इस जीव की तरफ लोगों का ध्यान आ गया है.

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2010 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषितइनकी संख्या में लगातार कमी होने के चलते साल 2010 में भारत सरकार द्वारा इन्हें राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर दिया गया था. तब से इनके संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं. डॉल्फिन्स गंगा नदी में कुछ स्थानों पर पाई जाती हैं. इनमें फतेहपुर भी शामिल है, जहां के यहां ये बड़ी संख्या में पाई जाती थी. डॉल्फिन्स के बारे में एक और बात काफी प्रसिद्ध है कि ये शुद्ध जल में ही निवास करती हैं. यह जहां होती हैं वहां का वातावरण व जल की शुद्धता अत्यधिक होती है. यदि किसी कारणों से जल दूषित हो रहा है तो भी इनके मृत होने के आशंका बढ़ जाते हैं.जिले में आदमपुर गंगा घाट से लेकर भिटौरा ओम घाट व आसपास के क्षेत्रों में गंगा डॉल्फिन बड़ी संख्या में पाई जाती हैं और आज भी यह अक्सर अठखेलियां करती नजर आ जाती हैं. स्थानीय लोगों को माने तो ये दोपहर या सुबह जल्दी को ज्यादातर देखी जाती हैं क्योंकि इस समय माहौल शांत रहता है. जिसके कारण इस समय ये अपने ऊपर खतरे को कम आंकती हैं और बाहर निकलती हैं. बता दें स्थानीय स्तर पर लोग डॉल्फिन्स को स्वीस या सूस के नाम से पुकारते हैं.संख्या में आई कमीपिछले कुछ वर्षों में इनकी संख्या में खासी कमी देखने को मिली हैं. यह जहां पहले सैकड़ों की संख्या में होती थी वहीं अब गिनी चुनी ही रह गई हैं. हालांकि इनके देख रेख और संरक्षण के लिए वन विभाग की टीम लगातार क्षेत्र में गश्त करती है और लोगों को इनके बचाव के लिए जागरूक करती है. इसके साथ ही शिकारियों पर शिकंजा भी कसती है. लेकिन इन सबके बावजूद इसकी तस्करी की बातें भी निकालकर सामने आती हैं. गंगा किनारे पिछले 40 वर्षों से खेती करने व अपना डेरा डालने वाली स्थानीय निवासी महदेई बताती हैं कि पहले ये बड़ी संख्या में दिखाई देती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे यह कम दिखाई देती हैं. वह बताती हैं कि जब शांत वातावरण में वह शिकार के लिए मछली की तलाश में निकलती हैं तो शिकार का पीछा करते हुए वह खूब उछल कूद करती हैं.करीब 65 वर्षीय स्थानीय निवासी ने बताया कि जहां आज से 25-30 वर्ष पूर्व सैकड़ों की संख्या में स्वीस देखने को मिलती थी, वहीं अब दो चार ही दिखती हैं. शिकारी अक्सर घूमते रहते हैं जिसके चलते जलीय जीवों में कमी हो गई है. उन्होंने आगे बताया कि स्वीस का तेल रतौंधी मरीजों के काफी काम आता है जिसकी वजह से भी इसका शिकार हुआ है.वन विभाग की टीम करती है निगरानीडॉल्फिन्स के संरक्षण पर बोलते हुए क्षेत्रीय वन अधिकारी आर.एल.सैनी बताते हैं कि वह और उनकी टीम सुबह दोपहर शाम अलग-अलग समय पर क्षेत्र में बराबर गश्त करती हैं ताकि कोई इन्हें नुकसान न पहुंचाया जा सके. इनकी संख्या में कमी को लेकर वह बताते हैं कि गंगा किनारे क्षेत्रों में परम्परागत केमिकल युक्त कृषि की जाती है. जिसकी वजह से केमिकल नदी में जाता है, जिससे जल दूषित होता है. उन्होंने आगे बताया कि शिकारियों को गंगा में जाल डालने पर लगातार रोका जाता है, उन्हें जलीय जीवों के प्रति जागरूक किया जाता है. डॉल्फिन के संरक्षण के लिए यहां घाटों पर डॉलफिन के चित्र बनाए गए हैं. विभिन्न प्रकार के स्लोगन लिखे गए हैं और आने जाने वालों को इनके संरक्षण व बचाव के लिए पेटिंग्स के माध्यम से संदेश दिया जा रहा है.
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