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फर्रुखाबाद रामनगरिया मेला में पहुंचने लगे हैं श्रद्धालु

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Published : Jan 15, 2022, 8:54 PM IST

फर्रुखाबाद में रामनगरिया माघ मेले का आयोजन किया जाता है. हजारों श्रद्धालुओं का एक माह तक मां गंगा के तट पर कल्पवास करते हैं. हिमालय की गुफाओं में रह रहे नागा साधु भी शामिल होते हैं.

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फर्रुखाबाद रामनगरिया मेला में पहुंचने लगे हैं श्रद्धालु

फर्रुखाबाद : जिले में रामनगरिया माघ मेले का आयोजन किया जाता है. गृहस्थ जीवन की तमाम दिक्कतों से दूर देश भर से आने वाले हजारों श्रद्धालुओं का एक माह तक मां गंगा के तट पर कल्पवास करते हैं. वहीं, कहीं भजन कीर्तन, तो कहीं राम कथा और शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है.

यह मेला रामनगरिया शमशाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट पर लगता था. मेला काफी दूर होने से कुछ साधु संत वर्ष 1950 में पंचाल घाट पर कल्पवास करने लगे. वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने दिलचस्पी दिखाई और गंगा तट पर साधु-संतों के साथ कांग्रेस पार्टी का कैंप लगाया.

उन्होंने पंचायत, शिक्षक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सहकारिता सम्मेलन आयोजित कराया. इस आयोजन में कई लोग भी जुड़े. वर्ष 1956 में आस-पास क्षेत्रों के श्रद्धालु भी आने शुरू कर दिए. वर्ष 1965 में स्वामी श्रद्धानंद के प्रस्ताव पर इसका नाम रामनगरिया रखा गया.

इसे भी पढ़ेंः फर्रुखाबाद: कड़ी सुरक्षा के बीच माघ मेले में स्नान करेंगे लाखों श्रद्धालु

वर्ष 1985 से यहां श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंचने लगी. बाद में जिला परिषद को मेले की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा गया. तत्कालीन डीएम केके सिन्हा और जिला परिषद के मुख्य अधिकारी रघुराज सिंह ने यहां प्रवेश द्वार निर्मित कराए. उसके बाद से यह मेला यही लगने लगा. रामनगरिया मेले में संतों की शोभा यात्रा निकाले जाने लगे.

अब तो हिमालय की गुफाओं में रह रहे नागा साधु भी शामिल होते हैं. इस बार भी नागा साधुओं काे निमंत्रण भेजा जा रहा है. यहां नागा साधु अपना युद्ध कौशल दिखाते हैं. नागा-साधुओं का आना शुरू भी हो गया है.

प्रत्येक वर्ष इस मेले का आयोजन होता है. इस बार भी मेले में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है. कोरोना को देखते हुए राउटियों की बीच की दूरी बढ़ा ही गई है. जिला प्रशासन ने भी तैयारियां लगभग पूरी कर ली है.

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फर्रुखाबाद : जिले में रामनगरिया माघ मेले का आयोजन किया जाता है. गृहस्थ जीवन की तमाम दिक्कतों से दूर देश भर से आने वाले हजारों श्रद्धालुओं का एक माह तक मां गंगा के तट पर कल्पवास करते हैं. वहीं, कहीं भजन कीर्तन, तो कहीं राम कथा और शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है.

यह मेला रामनगरिया शमशाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट पर लगता था. मेला काफी दूर होने से कुछ साधु संत वर्ष 1950 में पंचाल घाट पर कल्पवास करने लगे. वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने दिलचस्पी दिखाई और गंगा तट पर साधु-संतों के साथ कांग्रेस पार्टी का कैंप लगाया.

उन्होंने पंचायत, शिक्षक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सहकारिता सम्मेलन आयोजित कराया. इस आयोजन में कई लोग भी जुड़े. वर्ष 1956 में आस-पास क्षेत्रों के श्रद्धालु भी आने शुरू कर दिए. वर्ष 1965 में स्वामी श्रद्धानंद के प्रस्ताव पर इसका नाम रामनगरिया रखा गया.

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वर्ष 1985 से यहां श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंचने लगी. बाद में जिला परिषद को मेले की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा गया. तत्कालीन डीएम केके सिन्हा और जिला परिषद के मुख्य अधिकारी रघुराज सिंह ने यहां प्रवेश द्वार निर्मित कराए. उसके बाद से यह मेला यही लगने लगा. रामनगरिया मेले में संतों की शोभा यात्रा निकाले जाने लगे.

अब तो हिमालय की गुफाओं में रह रहे नागा साधु भी शामिल होते हैं. इस बार भी नागा साधुओं काे निमंत्रण भेजा जा रहा है. यहां नागा साधु अपना युद्ध कौशल दिखाते हैं. नागा-साधुओं का आना शुरू भी हो गया है.

प्रत्येक वर्ष इस मेले का आयोजन होता है. इस बार भी मेले में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है. कोरोना को देखते हुए राउटियों की बीच की दूरी बढ़ा ही गई है. जिला प्रशासन ने भी तैयारियां लगभग पूरी कर ली है.

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