इटावा: कोरोना संकट के कारण लागू लॉकडाउन को सरकार धीरे-धीरे खत्म कर रही है. अनलॉक-1 के शुरू होने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी लगातार लोगों से आत्मनिर्भर भारत बनाने की अपील कर रहे हैं. प्रधानमंत्री की इस अपील पर इटावा जनपद की महिलाएं अमल कर रही हैं. यहां महिलाएं सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर खुद तो आत्मनिर्भर हो ही रही हैं, साथ ही वे अन्य महिलाओं को भी इस मिशन से जोड़ रही हैं. यह महिलाएं आस-पास के गांवों में जाकर अन्य महिलाओं को भी अलग-अलग स्वरोजगार से भी जोड़ रही हैं. इतना ही नहीं ये महिलाएं मिशन के साथ जुड़कर छोटी-छोटी बचत से कैसे स्वरोजगार स्थापित कर सकती हैं इसके लिए भी जागरूक करती हैं.
खुद की बचत से हुईं आत्मनिर्भर, दूसरों को भी दे रहीं सीख
आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह में आईसीआरबी के पद पर तैनात ज्योति देवी ने बताया कि वह 3 साल पहले आजीविका मिशन से जुड़ी थीं. उस समय उनके घर की स्थिति ठीक नहीं थी लेकिन समूह से जुड़ने के बाद सरकार की मदद से उन्होंने सिलाई का काम शुरू किया. अब उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर है और वह अन्य महिलाओं को भी जागरुक कर रही हैं.
जरूरत पर समूह से ले सकती है 1 से लेकर 1 लाख रुपए तक की मदद
ज्योति ने बताया कि समूह की महिलाएं अपने स्वरोजगार करके हफ्ते में कम से कम 10 रुपए की बचत करके अपने समूह के खाते में जमा करती हैं. इसी जमा रुपये से समूह की महिलाएं एक लाख रुपये तक की मदद ले सकती हैं.
सरकार भी करती है मदद
इस मिशन से जुड़ी महिलाएं पहले 3 महीने तक अपनी बचत करके एकाउंट में जोड़ती हैं. उसके बाद 3 महीने बाद सरकार उसमें 15 हजार की पहली किश्त जमा करती है. इसके 6 महीने बाद 1 लाख की दूसरी किश्त भेजती है. इस रुपये से महिलाएं सिलाई, बुनाई या गांव के अन्य पारंपरिक कामों को स्वरोजगार के तौर पर शुरू कर सकती हैं. इतना ही नहीं इन स्वरोजगार के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी जाती है.
ज्योति ने बताया कि अगर वह लोग कोई बड़ा काम शुरू करती हैं तो उन्हें मिशन द्वारा बैंक से भी मदद दिलाई जाती है. वहीं यह महिलाएं अपनी जरूरत के मुताबिक समूह के खाते में जमा राशि से भी मदद ले सकती हैं. हालांकि इस राशि को उन्हें धीरे धीरे लौटा भी देते हैं.
गरीब महिलाओं को जोड़ सुधार रही उनका जीवन
आजीविका मिशन से जुड़ी एक अन्य महिला अनीता ने बताया कि उन्हें मिशन से जुड़े 2 साल हो गए हैं. अब वह अलग-अलग जनपद और गांवों में जाकर महिलाओं को जागरूक करती हैं. जो भी गरीब महिलाएं हैं उनको आजीविका मिशन के साथ जोड़ कर उनके जीवन और आर्थिक स्तर को भी सुधारने का काम कर रही हैं.
खुद रखते समूह का नाम और करते खुद का रोजगार
अनीता ने बताया कि वह अगल-अलग गांवों में जाकर महिलाओं का समूह बनाती हैं. फिर उस समूह की महिलाएं खुद एक नाम का चयन करती हैंस, जिसके नाम से समूह जाना जाता है. इसी के स्वरोजगार जैसे सिलाई, बुनाई, क्राफ्ट आदि का चयन समूह की महिलाएं खुद करती हैं.