चित्रकूटः वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को जब लोकसभा में आम बजट पेश किया तो उसमें शिक्षा बजट को लेकर हायर एजुकेशन कमीशन के गठन की बात भी की गई. साथ ही आदिवासी इलाकों में 750 आवासीय एकलव्य विद्यालय और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में ही विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की. इससे चित्रकूट के रहने वाले आदिवासियों के चेहरे खिल उठे. छात्रों ने सरकार की इस घोषणा के लिए, उन्हें धन्यवाद भी दिया है.
शबरी के वंशज कहलाने वाले रहते हैं क्षेत्र में
धर्मनगरी चित्रकूट में शबरी के वंशज कहलाने वाले कोल मवैया आदिवासी रहते हैं. इस आदिवासी जाति के तमाम जंगल से सटे गांव हैं. इनमें यह आदिवासी वर्षों से रहते आ रहे हैं. जंगल की सीमा से सटे गांव में रह रहे यह आदिवासी जंगल की वनस्पति के सहारे ही अपना ज्यादातर जीवन यापन करते हैं. जंगल में लकड़ी काटकर परिवार का भरण पोषण करने वाले आदिवासी शिक्षा से दूर रहे हैं. पहले सरकारों ने गांव-गांव में प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय स्थापित किए तो इन आदिवासियों को शिक्षा तो मिली मगर इसके आगे की शिक्षा के लिए कोई साधन नहीं था. गांव से दूर बने शिक्षण केंद्रों तक पहुंचने के लिए ना ही इन गरीब आदिवासियों के पास संसाधन होता है, ना ही इतना धन.
आश्रम पद्धति विद्यालय में गड़बड़ी
शासन व प्रशासन ने आदिवासियों के लिए एटीएस आश्रम पद्धति विद्यालय की स्थापना की, जिसमें गरीब आदिवासी छात्र पढ़ सकें. आदिवासी नेताओं का कहना है कि वह विद्यालय भी राजनीति की भेंट चढ़ गए. उसमें सभी जाति के लोग शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जो सिर्फ आदिवासी छात्रों के नाम से संचालित किए गए थे.
ये राजनीतिक समीकरण
राजनीतिक दृष्टि से देखें तो सिर्फ मानिकपुर 237 विधान सभा में ही लगभग 70 हजार आदिवासी जंगल से सटे गांवों में रहते हैं. चुनाव के समय इनका वोट निर्णायक होता है. कई सरकारें आईं और गईं. इन आदिवासियों द्वारा जोर-शोर से उठाए जा रहे जनजाति की दर्जे की मांग को सभी सत्ताधारी सरकारों ने अनसुना कर दिया. अब जाकर आम बजट में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में विद्यालय व विश्वविद्यालय स्थापित की जाने की बात को बजट में शामिल करने से आदिवासियों के चेहरे खिल गए हैं.
ये बोले छात्र-छात्राएं
बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा संध्या साकेत ने बताया कि बहुत मुसीबत के साथ बीए कर रही हूं. द्वितीय वर्ष की छात्रा हूं. गरीब मां-बाप ने पेट काटकर फीस भरी. लगभग 6 से 7 किलोमीटर पैदल चलकर शिक्षा ग्रहण करने अपने गांव से दूर जाती थी. इसमें जंगल व रेलवे क्रॉसिंग भी उसे पार करना पड़ता था. वहीं, बरसात के समय में अंधेरे में लौटने में और भी मुसीबत रहती थी. अब सरकार ने हमारी सुनी और बजट में आदिवासियों के लिए विद्यालय व विश्वविद्यालय शामिल किए गए हैं. इसके लिए मैं हृदय से इस बजट का स्वागत करती हूं.
वहीं. 10वीं की छात्रा उर्मिला देवी ने कहा कि गरीब मां-बाप किसी तरह कर के हम लोगों की फीस भरते हैं. वहीं स्कूल जाते-जाते हम लोग थक भी जाते हैं. हमारे गांव में लगभग 500 लोगों की आबादी है. इसमें 100 के करीब छात्र-छात्राएं हैं पर सिर्फ तीन से चार लोग ही 10वीं, 11वीं या 12वीं स्तर की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. इस बजट में आदिवासियों की शिक्षा के क्षेत्र में सोचा गया, इसके लिए मैं वित्तमंत्री को धन्यवाद देती हूं.