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चित्रकूटः तोता मुखी हनुमान मंदिर, जहां पर तुलसीदास को कलियुग में मिले थे ये प्रभु

यूपी के चित्रकूट जिले में रामघाट पर स्थित तोता मुखी हनुमान मंदिर की स्थापना स्वामी तुलसीदास ने की थी. मान्यता है कि रामघाट पर ही श्रीराम ने तुलसीदास को दर्शन दिए थे. राम के बारे में बताने के लिए हनुमान ने तोते का रूप लिया था.

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तोता मुखी हनुमान मंदिर.
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Published : Oct 31, 2020, 3:13 AM IST

चित्रकूटः जिले के रामघाट में स्थित तोता मुखी हनुमान मंदिर में संवत 1607 ईस्वी में स्वयं रामचंद्र ने अपने भक्त तुलसीदास को कलियुग में दर्शन दिए थे. राम भक्त हनुमान ने तुलसीदास की भक्ति को देखते हुए रामचंद्रजी की पहचान इसी मंदिर के पास बताई थी. इसके बाद तुलसीदास ने तोता मुखी हनुमान की स्थापना इस मंदिर में की. यहां पर दूर दराज से आए देसी और विदेशी हनुमान भक्तों की लाइन दर्शन के लिए लगी रहती है.

तोता मुखी हनुमान मंदिर.

धर्म नगरी में गिना जाता है चित्रकूट धाम

राम की तपोभूमि चित्रकूट धाम, धर्म नगरी में गिनी जाती है. यहां पर अनेक मंदिर और तीर्थ स्थान हैं. उन्हीं में से एक है तोता मुखी हनुमान मंदिर. इस मंदिर में तोते का रूप धारण किए स्वयं हनुमानजी विराजमान है. इस तोता मुखी हनुमान मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ऐसी प्रतिमा दूसरी नहीं है. तोता मुखी हनुमान जी की यह सिद्ध प्रतिमा ऐसी है, जिसमें हनुमान जी की तोते के समान चोंच निकली है और उसका भोग भी अनोखा है. तोता मुखी हनुमान की आराधना में आम फलों के साथ बेर का बेहद महत्व है.

यहां श्रीराम का किया इंतजार

हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसिदास श्री राम के दर्शन के लिए कई तीर्थों का भ्रमण कर आए पर उन्हें राम के दर्शन कहीं नहीं हुए. काशी में राम भक्त हनुमान के दर्शन हुए और उन्होंने तुलसीदास को राह दिखाते हुए कहा कि अगर कलयुग में तुम्हें कहीं श्रीराम के दर्शन मिल सकते हैं तो वह है चित्रकूट. तुलसीदास संवत 1607 ईस्वी में चित्रकूट लौट आए और राम का इंतजार करते रहे.

हनुमानजी इसलिए चौपाई कही

हनुमान ने माघ महीने की मौनी अमावस्या के समय पड़ने वाले मेले में प्रभु श्रीराम के आगमन की बात कही. इस पर तुलसीदास श्रीराम के स्वागत में चंदन घिसते रहे. अपने भक्त तुलसीदास की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीराम तुलसीदास के सामने आए, लेकिन तुलसीदास उन्हें पहचान नहीं सके. इस पर हनुमान ने तोते का रूप धारण कर श्रीराम की पहचान तुलसीदास को बताई तो उन्होंने एक चौपाई कही. "चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर" और तुलसीदास समझ गए कि मैं जिसे तिलक लगा रहा हूं. वह स्वयं श्रीराम हैं.

श्रीराम के दर्शन की चाह में आते हैं श्रद्धालु

इस तरह कलयुग में रामचंद्र ने एक मनुष्य को दर्शन दिए. इसी आशा में लाखों श्रद्धालु दूरदराज से आकर तोता मुखी हनुमान के मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं. उन्हें भी श्रीराम के दर्शन मिल जाएं और राम के दर्शन के उपरांत गोस्वामी तुलसीदास ने कई ग्रंथ लिखे. जिनमें से एक है रामचरितमानस, इसका हिंदू धर्म में बेहद महत्व है. इसी हस्तलिखित रामचरितमानस का एक पन्ना इस मंदिर में संजोकर रखा गया है. जिसमें एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है.

गोस्वामी तुलसी दास ने न सिर्फ ग्रंथ लिखा बल्कि कई साहित्य भी उनके द्वारा लिखे गए हैं. जैसे रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल , पार्वती मंगल, इत्यादि. तोता मुखी हनुमान मंदिर में उपस्थित महंत दामोदर दास ने बताया कि तुलसीदास के बाद यह आठवीं पीढ़ी है. जिसमें वह इस समय मंदिर की सेवा कर रहा हूं.

तुलसीदास के बाद की पीढ़ी-
2- स्वामी रामदास
3- स्वामी श्रवण दास
4- स्वामी पुष्कर दास
5- स्वामी जानकी शरण दास
6- स्वामी लेख रामदास
7- पूज्य महाराज बलराम दास
8- महंत दामोदर दास

महंत दामोदर दास ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा खोदी गई गुफा का स्वरूप सन 1977 और 2003 में आई बाढ़ के बाद बदल दिया गया है. इसमें अब सीमेंट का पक्का निर्माण हो चुका है. इसके चलते अब यह मंदिर के रूप में स्थापित हो चुकी है.

चित्रकूटः जिले के रामघाट में स्थित तोता मुखी हनुमान मंदिर में संवत 1607 ईस्वी में स्वयं रामचंद्र ने अपने भक्त तुलसीदास को कलियुग में दर्शन दिए थे. राम भक्त हनुमान ने तुलसीदास की भक्ति को देखते हुए रामचंद्रजी की पहचान इसी मंदिर के पास बताई थी. इसके बाद तुलसीदास ने तोता मुखी हनुमान की स्थापना इस मंदिर में की. यहां पर दूर दराज से आए देसी और विदेशी हनुमान भक्तों की लाइन दर्शन के लिए लगी रहती है.

तोता मुखी हनुमान मंदिर.

धर्म नगरी में गिना जाता है चित्रकूट धाम

राम की तपोभूमि चित्रकूट धाम, धर्म नगरी में गिनी जाती है. यहां पर अनेक मंदिर और तीर्थ स्थान हैं. उन्हीं में से एक है तोता मुखी हनुमान मंदिर. इस मंदिर में तोते का रूप धारण किए स्वयं हनुमानजी विराजमान है. इस तोता मुखी हनुमान मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ऐसी प्रतिमा दूसरी नहीं है. तोता मुखी हनुमान जी की यह सिद्ध प्रतिमा ऐसी है, जिसमें हनुमान जी की तोते के समान चोंच निकली है और उसका भोग भी अनोखा है. तोता मुखी हनुमान की आराधना में आम फलों के साथ बेर का बेहद महत्व है.

यहां श्रीराम का किया इंतजार

हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसिदास श्री राम के दर्शन के लिए कई तीर्थों का भ्रमण कर आए पर उन्हें राम के दर्शन कहीं नहीं हुए. काशी में राम भक्त हनुमान के दर्शन हुए और उन्होंने तुलसीदास को राह दिखाते हुए कहा कि अगर कलयुग में तुम्हें कहीं श्रीराम के दर्शन मिल सकते हैं तो वह है चित्रकूट. तुलसीदास संवत 1607 ईस्वी में चित्रकूट लौट आए और राम का इंतजार करते रहे.

हनुमानजी इसलिए चौपाई कही

हनुमान ने माघ महीने की मौनी अमावस्या के समय पड़ने वाले मेले में प्रभु श्रीराम के आगमन की बात कही. इस पर तुलसीदास श्रीराम के स्वागत में चंदन घिसते रहे. अपने भक्त तुलसीदास की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीराम तुलसीदास के सामने आए, लेकिन तुलसीदास उन्हें पहचान नहीं सके. इस पर हनुमान ने तोते का रूप धारण कर श्रीराम की पहचान तुलसीदास को बताई तो उन्होंने एक चौपाई कही. "चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर" और तुलसीदास समझ गए कि मैं जिसे तिलक लगा रहा हूं. वह स्वयं श्रीराम हैं.

श्रीराम के दर्शन की चाह में आते हैं श्रद्धालु

इस तरह कलयुग में रामचंद्र ने एक मनुष्य को दर्शन दिए. इसी आशा में लाखों श्रद्धालु दूरदराज से आकर तोता मुखी हनुमान के मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं. उन्हें भी श्रीराम के दर्शन मिल जाएं और राम के दर्शन के उपरांत गोस्वामी तुलसीदास ने कई ग्रंथ लिखे. जिनमें से एक है रामचरितमानस, इसका हिंदू धर्म में बेहद महत्व है. इसी हस्तलिखित रामचरितमानस का एक पन्ना इस मंदिर में संजोकर रखा गया है. जिसमें एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है.

गोस्वामी तुलसी दास ने न सिर्फ ग्रंथ लिखा बल्कि कई साहित्य भी उनके द्वारा लिखे गए हैं. जैसे रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल , पार्वती मंगल, इत्यादि. तोता मुखी हनुमान मंदिर में उपस्थित महंत दामोदर दास ने बताया कि तुलसीदास के बाद यह आठवीं पीढ़ी है. जिसमें वह इस समय मंदिर की सेवा कर रहा हूं.

तुलसीदास के बाद की पीढ़ी-
2- स्वामी रामदास
3- स्वामी श्रवण दास
4- स्वामी पुष्कर दास
5- स्वामी जानकी शरण दास
6- स्वामी लेख रामदास
7- पूज्य महाराज बलराम दास
8- महंत दामोदर दास

महंत दामोदर दास ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा खोदी गई गुफा का स्वरूप सन 1977 और 2003 में आई बाढ़ के बाद बदल दिया गया है. इसमें अब सीमेंट का पक्का निर्माण हो चुका है. इसके चलते अब यह मंदिर के रूप में स्थापित हो चुकी है.

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