चित्रकूट: धर्म नगरी चित्रकूट के एक गांव में अहंकारी रावण को भगवान की तरह पूजा जाता है. गांव में स्थाई रूप से रावण की मूर्ति भी स्थापित है. ग्रामीणों का मानना है कि रावण की मूर्ति क्षेत्र के लिए अपशगुन नहीं बल्कि वरदान है, क्योंकि इस गांव के कई लोग आईएएस और पीसीएस जैसे उच्च पदों पर आसीन हैं.
रावण का गांव 'रैपुरा', जहां होती है रावण की पूजा
देश के अधिकांश हिस्सों में विजय दशमी के दिन रावण के पुतले का दहन कर दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. धर्म नगरी में भी जहां-जहां रामलीला का मंचन होता है, वहां भी रावण के बड़े-बड़े पुतले तैयार किए जाते हैं, लेकिन भगवान श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट में एक विशेष गांव है, जिसका नाम रैपुरा है, जो मानिकपुर विकासखंड में आता है.
स्थाई रूप से बनी है रावण की मूर्ति
झांसी -प्रयागराज हाईवे किनारे बसे इस गांव में स्थाई रूप से बनी रावण की मूर्ति का हर साल ग्रामीण रंग रोगन कराकर पूजन करते हैं. इस मुर्ति को अपशगुन नहीं बल्कि वरदान माना जाता है. नवरात्र शुरू होते ही ग्रामीण पूरे उत्साह के साथ मूर्ति का रंग रोगन कराकर साफ सफाई करने में जुट जाते हैं.
रावण की बुद्धि से गांव का शिक्षा स्तर बढ़ा
गांव के लोगों का मानना है कि रावण बहुत बुद्धिमान था और उसकी मूर्ति से गांव वालों में बुद्धि का विकास होता है. यह गांव चित्रकूट का पहला गांव है, जहां पर शिक्षा का स्तर ऊंचाइयों पर है. दैवीय आपदा से परेशान इस गांव में जब से रावण की पूजा होने लगी है, तब से लोग खुशहाल और ज्ञानी होने लग गए हैं और शिक्षा स्तर काफी तेजी से बढ़ गया है. इस गांव में सभी घरों से कोई न कोई सरकारी नौकरी पर नियुक्त हैं. कई घरों के लोग आईएएस और पीसीएस हैं. इस वजह से भी यहां के लोग रावण की पूजा करते हैं.
ग्रामीणों का मान्यता
ग्रामीणों का मानना है कि बुराई का प्रतीक रावण का वध कर उसकी बुद्धिमानी को ग्रहण कर लिया जाता है. इसी कारण से रावण को जलाया नहीं जाता, क्योंकि अगर रावण को अग्नि से जलाया गया तो रावण की बुद्धि को भी नुकसान पहुंच सकता है और अगर रावण की बुद्धि को नुकसान पहुंचा तो गांव के लोगों की बुद्धि भी क्षीर्ण हो जाएगी.