चित्रकूट: भगवान श्री राम की तपोभूमि से विख्यात चित्रकूट भगवान ब्रह्मा का भी एक मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे रामघाट के तट पर स्थित है. मान्यता के अनुसार सतयुग में स्वयं ब्रह्मा ने इसी जगह पर सृष्टि की उत्पत्ति के लिए 108 यज्ञ किया था. धार्मिक पंडितों के अनुसार ब्रह्मा जी को यह पूर्व अनुमान था कि भगवान रामचंद्र को भी यहीं पर त्रेता युग में आना है. इसलिए उन्होंने यह पवित्र स्थान चुना. भगवान श्री राम के वनवास काल के दौरान जब उनके भाई भरत उनसे मिलने अयोध्या से चित्रकूट आए तब भी यही पवित्र स्थान को चुना गया और चौपाइयों में इस बात को वर्णित भी किया गया है.
रामघाट पर त्रेता युग में पांच वृक्षों की बात कही गई थी. फिलहाल वह वृक्ष अब समाप्त हो चुके हैं और मंदिर के प्रांगण में 108 यज्ञ विधि के अवशेष बाकी हैं, जिनका मुख सुरक्षा की दृष्टि से अब बंद किया जा चुका है. मुख्य यज्ञवेदी अभी चालू है, जिसमें आज धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है जो कि एक गहरे अंधेरे कुआ जैसे बना हुआ है. धार्मिक पंडितों की मानें तो चित्रकूट अनादि तीर्थ है चित्रकूट का विनाश महाप्रलय में भी संभव नहीं है. यहां की रज रज में भगवान बसते हैं. पंडितों को मानना है कि वनवास काल के दौरान भगवान श्री राम अपने नंगे पैरों से चित्रकूट में विचरण किया करते थे और त्रेता युग में इस यज्ञ वेदी मंदिर में श्री राम ने ज्ञानसभा भी लगाई थी, जिसमें उनके उनके साथ वह चारों भाई तीनों माता के साथ-साथ सभी देवी देवता भी इसी पवित्र स्थान पर उपस्थित हुए थे
इस पवित्र स्थान पर अध्यात्म ज्ञान श्रद्धा भक्ति की खोज में साधु संतों के साथ-साथ भक्तों का भी तांता प्रतिदिन लगा रहता है, जिसको देखते हुए 16वीं शताब्दी में मध्यप्रदेश के पन्ना के राजा मान ने इस यज्ञ वेदी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था, जो कि पांच बीघे में यज्ञ वेदी का प्रांगण अभी भी बना हुआ है.