चित्रकूट: प्रदेश के आकांक्षी जनपद चित्रकूट में नियमित रोजगार न होने के चलते मजदूरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. उनके पास इतना धन नहीं है, जिससे वह महीने भर का राशन व भरण पोषण की सामग्री का जुगाड़ कर सकें. प्रतिदिन 100 से 200 रुपये की मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले मजदूर अब ज्यादातर अपने घर तक ही सीमित हैं. लॉकडाउन के चलते इन्हें न तो शहरों में जाने दिया जा रहा है न ही कस्बों में.
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी रोजगार की समस्या
देश में हुए लॉकडाउन के बाद कई कामगार और मजदूर अपने गृह जनपद चित्रकूट लौट आए हैं, जिससे रोजगार की समस्याएं ग्रामीण क्षेत्रों में और भी ज्यादा बढ़ गई है. पिछली बार की अपेक्षा इस बार का लॉकडाउन ग्रामीणों के लिए और भी मुश्किल भरा साबित हो रहा है. अगर हम बात करें ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे मजदूरों की तो कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान हुए लॉकडाउन का ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले लोगों पर ज्यादा भारी नहीं पड़ा था क्योंकि उस समय कई समाजसेवियों ने बढ़ चढ़कर लोगों की मदद की थी. ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर राशन, पानी और कपड़े तक मुहैया करवाया था, जिससे लॉकडाउन का प्रथम दौर आसानी से कट गया था.
मनरेगा बना था सहारा
केंद्र द्वारा संचालित मनरेगा मजदूरों के लिए बेरोजगारी के समय बड़ा सहारा बन का उभरा था. यही नहीं, महानगरो से पलायन कर गृह जनपद पहुंचे मजदूरों को भी भरपूर काम मिला, जिससे उनका और उनके परिवारों का भरण पोषण सुचारू रूप से हो सका था. पर पिछली बार से इतर इस दौर के लॉकडाउन में जहां ग्रामीणों को रोजगार कहीं से नहीं मिल पा रहा है तो वही नवनिर्वाचित ग्राम प्रधानों के शपथ न लेने के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाले मनरेगा के कार्य भी ठप पड़े हुए हैं, जिससे ग्रामीण परिवारों के सामने भरणपोषण की समस्या उत्पन्न हो रही है.
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दो दिनों से भूखे बुजुर्ग राममिलन का कहना है कि वह अब बूढ़ा हो चुका है और गांव में काम भी नहीं है. वहीं उसके बेटे के तीन बच्चे हैं. बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी में वह अपने बच्चों का पेट कैसे भरे. वहीं चिनाई कारीगर पूरन का कहना है कि साहब कोरोना संक्रमण से डर नहीं लगता, बल्कि भूखे बच्चों को देखकर डर लगता है. काम-धाम ठप हो चुका है. भुखमरी की कगार में हम लोग खड़े हैं और सरकार मनरेगा के कार्य भी संचालित नहीं कर रही है.
'हमारी मदद करे सरकार'
पेशे से मिट्टी कारीगर रामलाल बताते हैं कि किसी तरह पैसा इकट्टा कर ईंधन और मिट्टी मंगाई और गर्मियां शुरू होने के पहले ही मटके बना लिए. लॉकडाउन के चलते हमें कस्बों और शहरों तक नहीं जाने दिया जा रहा है, जिसके चलते हमारे मटके जैसे कि तैसे पड़े हैं. पैसे भी फंस गए. सरकार हमारे भरण-पोषण की व्यवस्था करे.