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बुलंदशहरः परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह नहीं भूले करगिल युद्ध का मंजर

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Published : Jul 25, 2020, 2:14 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST

यूपी के बुलंदशहर जिले के निवासी करगिल की जंग के हीरो व परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंंने पाकिस्तान के साथ लड़ी गई कारगिल की जंग के के बारे में बताया.

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परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव ने ईटीवी भारत को बताई कारगिल युद्ध की वीरगाथा

बुलंदशहरः मई 1999 से जुलाई 1999 के बीच देश ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर के करगिल में जंग लड़ी. करीब 3 महीनों तक चली लड़ाई के बाद कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जांबाजी के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने चार सैनिको को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनमें से एक हैं ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव. मूलरूप से बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र सिंह यादव ने करगिल युद्ध के दौरान न सिर्फ तोलोलिंग पहाड़ी को पाकिस्तानियों से छीनने में अपनी वीरता दिखाई बल्कि मशहूर टाइगर हिल पर भी 15 गोली खाने के बाद भी अपना जौहर दिखाया. 21 साल बाद भी उन्हें लड़ाई का मंजर याद है, इसे लेकर उन्होंने ईटीवी भारत संवाददाता श्रीपाल सिंह तेवतिया से खास बातचीत की.

परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव ने ईटीवी भारत को बताई कारगिल युद्ध की वीरगाथा

करगिल युद्ध के दौरान 19 साल के योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल के तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ. 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा.

12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया. आदेश के बाद उनकी टीम वापस लौट गई. फिर आगे की लड़ाई का जिम्मा संभाला जम्मू कश्मीर राइफल ने, जिसको विक्रम बत्रा लीड कर रहे थे.

क्षमता से मिली थी घातक प्लाटून में जगह
योगेंद्र बताते हैं कि तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फुट ऊंचे टाइगर हिल के लिए को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र सिंह यादव और उनके 3 साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हे घंटों पैदल चलना होता था. उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई.

पहले दो रात और एक दिन की चढाई...फिर लड़ाई
फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. 2 रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद 7 जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने 5 घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की. जब गोली-बारूद खत्म होने लगा तो योगेंद्र यादव और उनकी टीम ने रणनीति बदल दी.

बचने की उम्मीद नहीं थी तो उन्होंने दुश्मनों की तादाद कम करने की रणनीति बनाई. फायर बंद की तो पत्थरों से छिपे 10-12 पाकिस्तानी बाहर आ गए. सबने एक साथ फायरिंग शुरू कर दी. अचानक से 35-40 पाकिस्तानी पहुंच गए और उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.

7 हिंदुस्तानियों ने इनका बहादुरी से मुकाबला किया मगर जबरदस्त गोलीबारी के कारण घिरते चले गए. सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव समेत सभी भारतीय सैनिक लहूलुहान हो चुके थे. दुश्मनों ने पहले ग्रेनेड से उन पर हमला किया था, फिर पास आकर सबको गोली मार दी. लहूलुहान योगेंद्र के सामने उनके कई साथी धराशायी हो गए. ग्रेनेड के हमले में उनका कंधा भी टूट गया. हाथ में ताकत नहीं रही. बंकर से जाते-जाते पाकिस्तानियों ने फिर से उनके शरीर में गोलियां दागी. पाकिस्तानी सैनिकों ने सबके शरीर पर बूट से ठोकर मारकर मौत को कन्फर्म किया.

मगर सिक्कों ने किया कमाल, बचाई योगेंद्र की जान
जब पाकिस्तानी भारतीय फौजियों को गोलियों से भून रहे थे तब जमीन पर जख्मी पड़े योगेंद्र ने मौत से लड़ने का संकल्प ले लिया. जीती हुई पोस्ट को बचाने के लिए यह भी गजब की जिद थी. योगेंद्र ने ठान लिया था अगर सिर और दिल में गोली नहीं मारी तो अंतिम सांस तक लड़ेंगे और अपनी प्लाटून तक टाइगर हिल के बारे में जानकारी पहुंचा दें.

जब पाकिस्तानी भारत के फौजियों के गोली मार रहे थे, तब उन्होंने योगेंद्र के सीने में कई गोलियां दागी. जख्मी योंगेंद्र ने भी मान लिया था कि अब वह नहीं बचेंगे. गोली मारने के बाद पाकिस्तान सिपाही ने वहां से उनकी एके-47 उठा ली. इस दौरान जब पाकिस्तानी का बूट उनके पैर से टकराया तब योगेंद्र को समझ आई कि वह जिंदा हैं. दरअसल पाकिस्तानी ने जो गोली उनके सीने में मारी थी, वह उनकी जेब में रखे सिक्कों से टकराई थी.

फिर योगेंद्र यादव ने दिखाया अविश्वसनीय हौसला
योगेंद्र की सांसे चल रही थीं. पैरों में हरकत करने पर महसूस हुआ कि जान बाकी है. दुश्मन जब मुड़ा तो योगेंद्र ने एक ग्रेनेड निकाला. एक हाथ को बेकार हो चुका था, मगर उन्होने दूसरे हाथ से पिन निकालकर ग्रेनेड को पाकिस्तानियों की ओर फेंका. ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया. कई पाकिस्तानी मारे गए. साथ ही उनमें गलफत हो गई कि भारतीय टुकड़ी कहीं से आक्रमण कर रही है. सभी भाग खड़े हुए. उस समय योगेंद्र ने कई फायर भी किए.

जब दुश्मन चले गए तो लुढ़ककर पहुंचे बेस कैंप
योगेंद्र की हालत गंभीर हो चुकी थी. जीते गए टाइगर हिल के बंकर में किसी तरह घिसटकर लौटे तो देखा सारे साथी मारे जा चुके हैं. किसी का सिर फटा है तो कई के फेफड़े निकल चुके थे. उन्हें कुछ समझ में नहीं आया और साथियों के शव देखकर रोने लगे. खुद के दर्द से इतने परेशान हो गए थे कि योगेंद्र ने बेकार हो चुके हाथ को शरीर से अलग करने की कोशिश की. फिर उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा करने का फैसला किया.

बेस कैंप तक सूचना पहुंचानी थी. जो हाथ बेकार हो चुका था, उसे किसी तरह कंधे के सहारे लटकाया. वह एक नाले से सहारे लुढ़कते रहे. काफी देर बाद एक गड्ढा मिला. उन्हें गलतफहमी हुई कि वह पाकिस्तान की ओर पहुंच गए हैं मगर संयोग से वह भारत में थे. अपने लक्ष्य के पास. आवाज दी तो कैंप में मौजूद भारतीय फौजी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने सबसे पहले टाइगर हिल को कब्जे में लेने की गुजारिश की.

जब कमांडिंग ऑफिसर ने पूछा हाल तो बोले- जय हिंद
दूसरे फौजी उन्हे स्ट्रेचर पर लादकर कमांडिंग ऑफिसर के पास ले गए. उन्हे कुछ दिख नहीं रहा था. सीओ ने जब हाल चाल पूछा तो बेहोशी में भी एक ही बात जुबां से निकली- जय हिंद. उनके शरीर से काफी खूब बह चुका था. 72 घंटे से भूखे थे. आवाज मध्यम थी.

डॉक्टर ने कुछ दवा पिलाई. तो इन्होंने बताया टाइगर हिल अब दुश्मनों से खाली है. फिर क्या था भारतीय सेना ने उस पर तिरंगा लहरा दिया. हालांकि सूचना देने के बाद योगेंद्र यादव को डॉक्टर ने इंजेक्शन दे दिया. तीन दिन बाद आंख खुली तो खुद को 92 बेस हॉस्पिटल श्रीनगर में पाया. फिर 16 महीनों तक दिल्ली के बेस हॉस्पिटल में एडमिट रहे.

टाइगर हिल पर भारतीय फौज के कब्जे ने करगिल जंग की दिशा बदल दी थी. श्रीनगर समेत देश सुरक्षित था. आज करगिल युद्ध के 21 साल हो चुके हैं. 1999 में 19 साल के ग्रेनेडियर योगेंद्र अब 40 साल के सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव हो चुके हैं.

उनके दो बच्चे भी सेना में जाने को उत्सुक हैं. 2016 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने उनके गृह जिले में 100 बेड के हॉस्पिटल बनाने का वादा किया था. जो अभी तक पूरा नहीं हुआ. सूबेदार मेजर योगेंद्र को सरकार से कोई शिकायत नहीं है. उनका कहना है कि सरकारें अपना कर्तव्य करती हैं, सैनिक टास्क पूरा करते हैं.

बुलंदशहरः मई 1999 से जुलाई 1999 के बीच देश ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर के करगिल में जंग लड़ी. करीब 3 महीनों तक चली लड़ाई के बाद कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जांबाजी के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने चार सैनिको को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनमें से एक हैं ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव. मूलरूप से बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र सिंह यादव ने करगिल युद्ध के दौरान न सिर्फ तोलोलिंग पहाड़ी को पाकिस्तानियों से छीनने में अपनी वीरता दिखाई बल्कि मशहूर टाइगर हिल पर भी 15 गोली खाने के बाद भी अपना जौहर दिखाया. 21 साल बाद भी उन्हें लड़ाई का मंजर याद है, इसे लेकर उन्होंने ईटीवी भारत संवाददाता श्रीपाल सिंह तेवतिया से खास बातचीत की.

परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव ने ईटीवी भारत को बताई कारगिल युद्ध की वीरगाथा

करगिल युद्ध के दौरान 19 साल के योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल के तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ. 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा.

12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया. आदेश के बाद उनकी टीम वापस लौट गई. फिर आगे की लड़ाई का जिम्मा संभाला जम्मू कश्मीर राइफल ने, जिसको विक्रम बत्रा लीड कर रहे थे.

क्षमता से मिली थी घातक प्लाटून में जगह
योगेंद्र बताते हैं कि तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फुट ऊंचे टाइगर हिल के लिए को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र सिंह यादव और उनके 3 साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हे घंटों पैदल चलना होता था. उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई.

पहले दो रात और एक दिन की चढाई...फिर लड़ाई
फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. 2 रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद 7 जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने 5 घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की. जब गोली-बारूद खत्म होने लगा तो योगेंद्र यादव और उनकी टीम ने रणनीति बदल दी.

बचने की उम्मीद नहीं थी तो उन्होंने दुश्मनों की तादाद कम करने की रणनीति बनाई. फायर बंद की तो पत्थरों से छिपे 10-12 पाकिस्तानी बाहर आ गए. सबने एक साथ फायरिंग शुरू कर दी. अचानक से 35-40 पाकिस्तानी पहुंच गए और उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.

7 हिंदुस्तानियों ने इनका बहादुरी से मुकाबला किया मगर जबरदस्त गोलीबारी के कारण घिरते चले गए. सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव समेत सभी भारतीय सैनिक लहूलुहान हो चुके थे. दुश्मनों ने पहले ग्रेनेड से उन पर हमला किया था, फिर पास आकर सबको गोली मार दी. लहूलुहान योगेंद्र के सामने उनके कई साथी धराशायी हो गए. ग्रेनेड के हमले में उनका कंधा भी टूट गया. हाथ में ताकत नहीं रही. बंकर से जाते-जाते पाकिस्तानियों ने फिर से उनके शरीर में गोलियां दागी. पाकिस्तानी सैनिकों ने सबके शरीर पर बूट से ठोकर मारकर मौत को कन्फर्म किया.

मगर सिक्कों ने किया कमाल, बचाई योगेंद्र की जान
जब पाकिस्तानी भारतीय फौजियों को गोलियों से भून रहे थे तब जमीन पर जख्मी पड़े योगेंद्र ने मौत से लड़ने का संकल्प ले लिया. जीती हुई पोस्ट को बचाने के लिए यह भी गजब की जिद थी. योगेंद्र ने ठान लिया था अगर सिर और दिल में गोली नहीं मारी तो अंतिम सांस तक लड़ेंगे और अपनी प्लाटून तक टाइगर हिल के बारे में जानकारी पहुंचा दें.

जब पाकिस्तानी भारत के फौजियों के गोली मार रहे थे, तब उन्होंने योगेंद्र के सीने में कई गोलियां दागी. जख्मी योंगेंद्र ने भी मान लिया था कि अब वह नहीं बचेंगे. गोली मारने के बाद पाकिस्तान सिपाही ने वहां से उनकी एके-47 उठा ली. इस दौरान जब पाकिस्तानी का बूट उनके पैर से टकराया तब योगेंद्र को समझ आई कि वह जिंदा हैं. दरअसल पाकिस्तानी ने जो गोली उनके सीने में मारी थी, वह उनकी जेब में रखे सिक्कों से टकराई थी.

फिर योगेंद्र यादव ने दिखाया अविश्वसनीय हौसला
योगेंद्र की सांसे चल रही थीं. पैरों में हरकत करने पर महसूस हुआ कि जान बाकी है. दुश्मन जब मुड़ा तो योगेंद्र ने एक ग्रेनेड निकाला. एक हाथ को बेकार हो चुका था, मगर उन्होने दूसरे हाथ से पिन निकालकर ग्रेनेड को पाकिस्तानियों की ओर फेंका. ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया. कई पाकिस्तानी मारे गए. साथ ही उनमें गलफत हो गई कि भारतीय टुकड़ी कहीं से आक्रमण कर रही है. सभी भाग खड़े हुए. उस समय योगेंद्र ने कई फायर भी किए.

जब दुश्मन चले गए तो लुढ़ककर पहुंचे बेस कैंप
योगेंद्र की हालत गंभीर हो चुकी थी. जीते गए टाइगर हिल के बंकर में किसी तरह घिसटकर लौटे तो देखा सारे साथी मारे जा चुके हैं. किसी का सिर फटा है तो कई के फेफड़े निकल चुके थे. उन्हें कुछ समझ में नहीं आया और साथियों के शव देखकर रोने लगे. खुद के दर्द से इतने परेशान हो गए थे कि योगेंद्र ने बेकार हो चुके हाथ को शरीर से अलग करने की कोशिश की. फिर उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा करने का फैसला किया.

बेस कैंप तक सूचना पहुंचानी थी. जो हाथ बेकार हो चुका था, उसे किसी तरह कंधे के सहारे लटकाया. वह एक नाले से सहारे लुढ़कते रहे. काफी देर बाद एक गड्ढा मिला. उन्हें गलतफहमी हुई कि वह पाकिस्तान की ओर पहुंच गए हैं मगर संयोग से वह भारत में थे. अपने लक्ष्य के पास. आवाज दी तो कैंप में मौजूद भारतीय फौजी मदद के लिए आगे आए. उन्होंने सबसे पहले टाइगर हिल को कब्जे में लेने की गुजारिश की.

जब कमांडिंग ऑफिसर ने पूछा हाल तो बोले- जय हिंद
दूसरे फौजी उन्हे स्ट्रेचर पर लादकर कमांडिंग ऑफिसर के पास ले गए. उन्हे कुछ दिख नहीं रहा था. सीओ ने जब हाल चाल पूछा तो बेहोशी में भी एक ही बात जुबां से निकली- जय हिंद. उनके शरीर से काफी खूब बह चुका था. 72 घंटे से भूखे थे. आवाज मध्यम थी.

डॉक्टर ने कुछ दवा पिलाई. तो इन्होंने बताया टाइगर हिल अब दुश्मनों से खाली है. फिर क्या था भारतीय सेना ने उस पर तिरंगा लहरा दिया. हालांकि सूचना देने के बाद योगेंद्र यादव को डॉक्टर ने इंजेक्शन दे दिया. तीन दिन बाद आंख खुली तो खुद को 92 बेस हॉस्पिटल श्रीनगर में पाया. फिर 16 महीनों तक दिल्ली के बेस हॉस्पिटल में एडमिट रहे.

टाइगर हिल पर भारतीय फौज के कब्जे ने करगिल जंग की दिशा बदल दी थी. श्रीनगर समेत देश सुरक्षित था. आज करगिल युद्ध के 21 साल हो चुके हैं. 1999 में 19 साल के ग्रेनेडियर योगेंद्र अब 40 साल के सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव हो चुके हैं.

उनके दो बच्चे भी सेना में जाने को उत्सुक हैं. 2016 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने उनके गृह जिले में 100 बेड के हॉस्पिटल बनाने का वादा किया था. जो अभी तक पूरा नहीं हुआ. सूबेदार मेजर योगेंद्र को सरकार से कोई शिकायत नहीं है. उनका कहना है कि सरकारें अपना कर्तव्य करती हैं, सैनिक टास्क पूरा करते हैं.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST
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