बुलंदशहर: किसी देश या शहर के बसने का अपना एक इतिहास होता है. वह खुद को किस तरह विकसित कर विश्व पटल पर एक अलग पहचान देता है. इसके पीछे कोई न कोई बड़ी वजह जरूर छिपी होती है. खुद में इतिहास के पन्नों को संजोए कुछ ऐसे ही नामचीन शहर उत्तर प्रदेश में हैं, जिन्होंने विश्व के कोने-कोने में अपने बने उत्पादों के माध्यम से पहचान बनाई हैं. उनमें से एक है, बुलंदशहर से 17 किमी की दूरी पर स्थित खुर्जा. यह नगर मुख्य तौर पर अपने उत्तम सिरेमिक यानी चीनी मिट्टी के उत्पादों के लिए जाना जाता है. यहां बनाएं जाने वाले चीनी मिट्टी के बर्तनों की पूरे विश्व भर में मांग है.
तैमूर लंग की सेना ने दिया खुर्जा को कलाकृति
खुर्जा का इतिहास तैमूर वंश से भी जुड़ा हुआ है. जानकार बताते हैं 600 वर्ष पूर्व उज्बेकिस्तान के राजा तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया था. देश पर आक्रमण करते समय तैमूर लंग की सेना से कुछ हस्तशिल्प में महारत लोग यहां पर रह गए थे. उन्होंने खुर्जा की कलाकृति को एक नया रूप दिया था.
तैमूर लंग ने खुर्जा की जमीन को किया था खारिज
तैमूर लंग अपने शासनकाल में खुर्जा की जमीन को बंजर मानकर खारिज कर दिया था, क्योंकि यहां की जमीन उपजाऊ नहीं थी. इसके अलावा यहां के लोग कर चुकाने में भी असमर्थ थे. जब तैमूर लंग भारत छोड़कर उजबेकिस्तान जा रहा था. तभी कुछ हस्तशिल्पकारों ने खुर्जा में रुकने की इजाजत तैमूर लंग से मांगी थी. इनको राजा की तरफ से अनुमति मिली थी और वह खुर्जा में ही बस गए.
1980 से 1985 में खुर्जा में थीं 850 पॉटरी
1980 -1985 के दौर में यहां 850 के आसपास पॉटरी हुआ करती थीं, लेकिन अब महज 500 के आसपास ही चीनी मिट्टी के बर्तन और साज-सज्जा बनाने वाले कारखाने हैं. इन कारखानों से हजारों लोगों को यहां रोजगार मिलता था, लेकिन बढ़ती महंगाई और जीएसटी ने कारोबार को ऐसी चोट पहुंचाई है कि नए कारोबारी इस कारोबार से तौबा करने लगे हैं. इसकी वजह से पॉटरी उद्योग में काम करने वाले कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का भी संकट गहराता जा रहा है.
चीनी मिट्टी के क्वालिटी उत्पाद बनाने में खुर्जा विश्व के टॉप पर
खुर्जा में चीनी मिट्टी के बने उत्पाद पूरी दुनिया में पसंद किए जा रहे हैं. यूएस यूके और जर्मनी तक में भी खुर्जा के उत्पादों की धमक देखी जाती है. क्योंकि भारत चीनी मिट्टी के क्वालिटी उत्पाद बनाने में पहले स्थान पर है, जबकि चीन दूसरे स्थान पर.