बुलंदशहर: सैकड़ों साल पुरानी बुलंदशहर जिले की खुर्जा की पहचान अब धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है. प्रदेश सरकार ने उधोग-धंधों को बढ़ावा देने के लिए 'वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रॉडक्ट' योजना चलाकर संजीवनी देने का काम किया था. इसके बावजूद यहां के हालात नहीं बदले. इस बारे में चीनी मिट्टी के काम से कई दशकों से जुड़े उद्यमियों में निराशा का माहौल है.
तीन चौथाई पॉटरी इकाइयां बंद
खुर्जा में कभी छोटी-बड़ी मिलाकर करीब 800 पॉटरी निर्माण केंद्र थे. इससे हजारों लोगों को यहां रोजगार भी मिला करता था, लेकिन पिछले दो दशकों की उपेक्षा की वजह से हालात बदलते चले गए. वर्तमान में बची हुई लगभग 200 के करीब पॉटरी निर्माण इकाइयां भी कोरोना महामारी की वजह से अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. अधिकतर उद्यमी इकाइयों को चलाने में अब कतरा रहे हैं.
एनजीटी के आदेश ने पहले ही तोड़ दी थी कमर
इस बारे में उद्यमी राजीव बंसल कहते हैं कि 'वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रॉडक्ट' में जब पॉटरी को जिले में स्थान मिला, तो लगता था कि दिन बहुरेंगे. कोरोना के बाद अब तो काम समेटने के हालात पैदा हो गए हैं. 2019 में खुर्जा की पॉटरी नगरी को एनजीटी की गाइडलाइन के मुताबिक, तेल से संचालित इकाइयों को बंद करने का आदेश दिया गया था. इसके बाद सभी को गैस पर संचालित भट्ठी पर अपना माल पकाने को शुरू करनी पड़ी, जोकि सभी पॉटरी संचालकों के लिए सम्भव नहीं थी, तब भी कई इकाइयां में बंद हो गईं.
न ही मजदूर, न ही खरीददार
खुर्जा के पॉटर्स कहते हैं कि तेल से गैस पर आना काफी महंगा सौदा था. इसके बाद भी उद्यमियों ने हिम्मत दिखाई और वह गैस पर आधारित संयंत्र उन्होंने लगा लिए. इस झटके के बाद जब काम करके अपने नुकसान की भरपाई करने का वक्त था, तो कोरोना वायरस महामारी ने दस्तक दे दी. परेशान उद्यमियों और व्यापारियों का कहना है कि न तो इस वक्त हमारे पास मजदूर हैं और न ही कोई खरीददार. इससे हमारी आर्थिक स्थिति भी डगमगाती जा रही है.
प्रशासन ऋण उपलब्ध कराने का कर रहा प्रयास
जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त उद्धव योगेश कुमार का कहना है कि 'एक जिला, एक उत्पाद' के अंतर्गत यहां से पॉटरी को चुना गया था. इसके तहत उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. इसके अलावा दक्ष मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए पॉटरी से संबंधित ट्रेनिंग के भी प्रयास किए जा रहे हैं.