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पर्यावरण प्रेम ऐसा कि खेती के लिए छोड़ दी दो सरकारी नौकरियां

यूपी के बस्ती जिले में पर्यावरण प्रेमी सुधाकर सिंह पर्यावरण प्रेमी हैं. इन्होंने खेती करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी. खेती के साथ उन्होंने कई गरीबों को रोजगार भी दिया है.

पर्यावरण प्रेमी
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Published : Jan 14, 2021, 12:53 PM IST

बस्ती: बढ़ती आबादी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा रही है. शहरों की आबोहवा हर रोज दूषित हो रही है, मगर इन सबके बीच बस्ती के एक ऐसे पर्यावरण प्रेमी हैं, जिन्होंने खेती की तरफ ऐसी रुचि दिखाई कि सरकारी नौकरी तक को ठुकरा दिया. अब वह खेती के माध्यम से अपना परिवार चला रहे हैं. साथ ही उन्होंने कई गरीबों को रोजगार भी दिया है.

जानकारी देते सुधाकर सिंह.
कप्तानगंज क्षेत्र के परिवारपुर गांव के सुधाकर सिंह को पर्यावरण से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने इसके लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी. कुछ वर्षो के बाद एक अन्य नौकरी का अवसर मिला, लेकिन उसे भी ठुकरा दिया. वह जयप्रभा पूर्व माध्यमिक विद्यालय भिउरा, दुबौलिया में लिपिक का पद छोड़कर पूरी लगन और मेहनत के साथ पर्यावरण की सेवा में जुट गए. इनके पिता सियाराम सिंह चीनी मिल में केन मैनेजर थे. 1994 में उनकी आकस्मिक मौत के बाद चीनी मिल में भी मृतक आश्रित के रूप में नौकरी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की.

खेती किसानी में अपनी पहचान बनाने के बाद खुद की 5 एकड़ जमीन में उन्होंने लगभग 2 हजार फलदार पौधे रोपे. यहां आम, कटहल, आंवला, यूकेलिप्टस, पापुलर, सागौन के पेड़ों के साथ फूल, पत्तियों का आकर्षक उपवन भी है. वह बच्चे की तरह एक-एक पेड़ का ख्याल भी रखते हैं. अब इनकी बगिया गांव में हरियाली बिखेरने के साथ आमदनी का जरिया भी बन गई है. सीजन में आम और कटहल के फल लाख रुपये में बिकते हैं. उन्होंने इसी के जरिए कुछ लोगों को रोजगार भी दिया है. उनके अलावा लगभग 10 से 12 लोग बगिया की देखभाल में वर्ष भर जुटे रहते हैं. फलों की बिक्री से उन्हें बाकायदा पारिश्रमिक भी मिल रहा है.

शुरू में पौधों की सिंचाई के लिए उनके पास पंपिंगसेट ही साधन था. अब सोलर पंप के सहारे बगिया और खेत की सिंचाई के साथ घर की बिजली भी जल रही है.

बस्ती: बढ़ती आबादी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा रही है. शहरों की आबोहवा हर रोज दूषित हो रही है, मगर इन सबके बीच बस्ती के एक ऐसे पर्यावरण प्रेमी हैं, जिन्होंने खेती की तरफ ऐसी रुचि दिखाई कि सरकारी नौकरी तक को ठुकरा दिया. अब वह खेती के माध्यम से अपना परिवार चला रहे हैं. साथ ही उन्होंने कई गरीबों को रोजगार भी दिया है.

जानकारी देते सुधाकर सिंह.
कप्तानगंज क्षेत्र के परिवारपुर गांव के सुधाकर सिंह को पर्यावरण से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने इसके लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी. कुछ वर्षो के बाद एक अन्य नौकरी का अवसर मिला, लेकिन उसे भी ठुकरा दिया. वह जयप्रभा पूर्व माध्यमिक विद्यालय भिउरा, दुबौलिया में लिपिक का पद छोड़कर पूरी लगन और मेहनत के साथ पर्यावरण की सेवा में जुट गए. इनके पिता सियाराम सिंह चीनी मिल में केन मैनेजर थे. 1994 में उनकी आकस्मिक मौत के बाद चीनी मिल में भी मृतक आश्रित के रूप में नौकरी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की.

खेती किसानी में अपनी पहचान बनाने के बाद खुद की 5 एकड़ जमीन में उन्होंने लगभग 2 हजार फलदार पौधे रोपे. यहां आम, कटहल, आंवला, यूकेलिप्टस, पापुलर, सागौन के पेड़ों के साथ फूल, पत्तियों का आकर्षक उपवन भी है. वह बच्चे की तरह एक-एक पेड़ का ख्याल भी रखते हैं. अब इनकी बगिया गांव में हरियाली बिखेरने के साथ आमदनी का जरिया भी बन गई है. सीजन में आम और कटहल के फल लाख रुपये में बिकते हैं. उन्होंने इसी के जरिए कुछ लोगों को रोजगार भी दिया है. उनके अलावा लगभग 10 से 12 लोग बगिया की देखभाल में वर्ष भर जुटे रहते हैं. फलों की बिक्री से उन्हें बाकायदा पारिश्रमिक भी मिल रहा है.

शुरू में पौधों की सिंचाई के लिए उनके पास पंपिंगसेट ही साधन था. अब सोलर पंप के सहारे बगिया और खेत की सिंचाई के साथ घर की बिजली भी जल रही है.

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