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जब महेंद्र सिंह टिकैत की भावुकता से किसानों ने किया आंदोलन

भाकियू के नेतृत्व में कृषि कानूनों को लेकर किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं. भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के एक इशारे पर जिस तरह से किसानों का जमावड़ा लगा है. कभी बस्ती में शुगर मिल बंद होने के चलते साल 2002 में भाकियू अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के कहने पर लगा था. तब मिल को लेकर हुए आंदोलन में तीन किसान मारे गए थे. जिन्हें शहीद का दर्जा भी दिया गया. जानिए इस खास रिपोर्ट में साल 2002 में हुए आंदोलन की कहानी...

मुंडेरवा आंदोलन
मुंडेरवा आंदोलन
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Published : Jan 31, 2021, 6:21 PM IST

बस्तीः यह वही टिकैत का किसान यूनियन है, जिसके चलते वर्ष 2002 के नवंबर माह में मुंडेरवा चीनी मिल बंद होने के विरोध में बस्ती में किसान आंदोलन हुआ था. 11 दिसंबर 2002 को पुलिस और भाकियू कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ. पुलिस फायरिंग में मेंहडा पुरवा गांव के धर्मराज उर्फ जुगानी पुत्र राम शब्द, जगदीशपुर मंझरिया के बद्री चौधरी पुत्र गोजे और संतकबीर नगर जनपद के चंगेरा-मंगेरा निवासी तिलकराज चौधरी पुत्र राम लखन की गोली कांड में मौत हो गयी थी. पर हासिल कुछ नहीं हुआ, सिवाए किसानों की मौत के. आज मुख्यमंत्री योगी के प्रयास से भले ही मूंडेरवा मिल फिर से चालू हो गई हो, मगर इस मिल के चालू होने में टिकैत के यूनियन का कोई योगदान नहीं था.

11 दिसंबर 2002 को पुलिस और भाकियू कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ.

चीनी मिल के लिए हुआ था आंदोलन
बता दें कि अंग्रेजों के जमाने (1932) में स्थापित इस चीनी मिल को 1998 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने अपरिहार्य कारणों से बंद कर दिया था. करोड़ों रुपये बकाया भुगतान और मिल को फिर से चलाने के लिए व्यापक आंदोलन और धरना-प्रदर्शन भी हुए थे. 12 दिसंबर 2002 को आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने के चलते तीन किसानों की मौत हो गई थी. लोगों ने किसानों को शहीद का दर्जा दिया था. मुंडेरवा तिराहे पर तीनों किसानों की मूर्ति भी स्थापित की गई है.

आंदोलन में शहीद हुए तीन किसान
सबसे पहले हम आपको आंदोलन में पुलिस की गोली के शिकार हुए तिलक राम चौधरी के परिवार वालों से मिलवाते हैं. तिलक राम का गांव आज भी विकास की दौड़ में काफी पीछे है. यहां तक कि गांव में जाने को एक अच्छी सड़क तक नहीं है. एक झोपड़ी में शहीद किसान का परिवार रहने को मजबूर है. शहीद किसान तिलक राम की पत्नी ने बताया कि उस वक्त भी आंदोलन अपने चरम पर था. इसी आवेश में कई युवा किसान अपनी जान की परवाह किए बगैर किसान नेता महेंद्र टिकैत के एक इशारे में अपनी जान तक गंवाने को तैयार थे. इसका नतीजा है कि उनके पति भी आंदोलन में गए और गोली लगने से मारे गए.

बूढ़ी मां की आंखों में बेटा खोने का गम
मुंदरवा के मंझरिया गांव में दूसरे शहीद किसान बद्री चौधरी का घर है. यहां उनकी बुढ़ी मां मिलीं. जिनकी आंख में आज भी बेटे के खोने का गम है. मगर इस बात की खुशी है कि देश के किसानों के हित के लिए उनके बेटे ने अपनी जान गंवा दी. बद्री भी किसान आंदोलन में मारे गए.

2002 महेंद्र सिंह टिकैत की भी निकले थे आंसू
2002 में किसान आंदोलन के साक्षी किसानों ने बताया कि उस वक्त राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत की आंखों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंसू निकले थे. तब भी पूरे देश में किसानों ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया था. इसी तर्ज पर आज उनके बेटे की आंखों से किसानों के लिए आंसू निकले हैं. उनके आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे.

शुगर मिल को लेकर दिया था धरना
साल 2002 में जब किसान आंदोलन हुआ, तब प्रदेश में बसपा गठबंधन और केंद्र में बीजेपी की सरकार थी. गन्ना मूल्य और बंद हो चुकी मुंडरवा शुगर मिल चलवाने के लिए किसान आक्रोशित थे. इसी का नतीजा था कि सरकार ने किसानों की बात मानने के बजाए उन पर गोली चलवा दी. जिसमें जिले के तीन किसान शहीद हो गए थे. बहरहाल राकेश टिकैत किसानों के देश में सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. जिनके एक इशारे पर लाखों किसान अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार रहते हैं.

बस्तीः यह वही टिकैत का किसान यूनियन है, जिसके चलते वर्ष 2002 के नवंबर माह में मुंडेरवा चीनी मिल बंद होने के विरोध में बस्ती में किसान आंदोलन हुआ था. 11 दिसंबर 2002 को पुलिस और भाकियू कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ. पुलिस फायरिंग में मेंहडा पुरवा गांव के धर्मराज उर्फ जुगानी पुत्र राम शब्द, जगदीशपुर मंझरिया के बद्री चौधरी पुत्र गोजे और संतकबीर नगर जनपद के चंगेरा-मंगेरा निवासी तिलकराज चौधरी पुत्र राम लखन की गोली कांड में मौत हो गयी थी. पर हासिल कुछ नहीं हुआ, सिवाए किसानों की मौत के. आज मुख्यमंत्री योगी के प्रयास से भले ही मूंडेरवा मिल फिर से चालू हो गई हो, मगर इस मिल के चालू होने में टिकैत के यूनियन का कोई योगदान नहीं था.

11 दिसंबर 2002 को पुलिस और भाकियू कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ.

चीनी मिल के लिए हुआ था आंदोलन
बता दें कि अंग्रेजों के जमाने (1932) में स्थापित इस चीनी मिल को 1998 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने अपरिहार्य कारणों से बंद कर दिया था. करोड़ों रुपये बकाया भुगतान और मिल को फिर से चलाने के लिए व्यापक आंदोलन और धरना-प्रदर्शन भी हुए थे. 12 दिसंबर 2002 को आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने के चलते तीन किसानों की मौत हो गई थी. लोगों ने किसानों को शहीद का दर्जा दिया था. मुंडेरवा तिराहे पर तीनों किसानों की मूर्ति भी स्थापित की गई है.

आंदोलन में शहीद हुए तीन किसान
सबसे पहले हम आपको आंदोलन में पुलिस की गोली के शिकार हुए तिलक राम चौधरी के परिवार वालों से मिलवाते हैं. तिलक राम का गांव आज भी विकास की दौड़ में काफी पीछे है. यहां तक कि गांव में जाने को एक अच्छी सड़क तक नहीं है. एक झोपड़ी में शहीद किसान का परिवार रहने को मजबूर है. शहीद किसान तिलक राम की पत्नी ने बताया कि उस वक्त भी आंदोलन अपने चरम पर था. इसी आवेश में कई युवा किसान अपनी जान की परवाह किए बगैर किसान नेता महेंद्र टिकैत के एक इशारे में अपनी जान तक गंवाने को तैयार थे. इसका नतीजा है कि उनके पति भी आंदोलन में गए और गोली लगने से मारे गए.

बूढ़ी मां की आंखों में बेटा खोने का गम
मुंदरवा के मंझरिया गांव में दूसरे शहीद किसान बद्री चौधरी का घर है. यहां उनकी बुढ़ी मां मिलीं. जिनकी आंख में आज भी बेटे के खोने का गम है. मगर इस बात की खुशी है कि देश के किसानों के हित के लिए उनके बेटे ने अपनी जान गंवा दी. बद्री भी किसान आंदोलन में मारे गए.

2002 महेंद्र सिंह टिकैत की भी निकले थे आंसू
2002 में किसान आंदोलन के साक्षी किसानों ने बताया कि उस वक्त राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत की आंखों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंसू निकले थे. तब भी पूरे देश में किसानों ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया था. इसी तर्ज पर आज उनके बेटे की आंखों से किसानों के लिए आंसू निकले हैं. उनके आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे.

शुगर मिल को लेकर दिया था धरना
साल 2002 में जब किसान आंदोलन हुआ, तब प्रदेश में बसपा गठबंधन और केंद्र में बीजेपी की सरकार थी. गन्ना मूल्य और बंद हो चुकी मुंडरवा शुगर मिल चलवाने के लिए किसान आक्रोशित थे. इसी का नतीजा था कि सरकार ने किसानों की बात मानने के बजाए उन पर गोली चलवा दी. जिसमें जिले के तीन किसान शहीद हो गए थे. बहरहाल राकेश टिकैत किसानों के देश में सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. जिनके एक इशारे पर लाखों किसान अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार रहते हैं.

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