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अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस: हौसले की मिसाल 'कोरोना वॉरियर्स' सुशीला देवी

उत्तर प्रदेश की बस्ती जिले में नर्स सुशीला देवी ने मिसाल पेश की है. 59 वर्षीय सुशीला देवी अपने रिटायर्मेंट से कुछ महीने से पहले तक कोरोना काल में सेवा दे रही हैं. ईटीवी भारत आज 'अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस' पर हौसले की मिसाल कोरोना वारियर्स सुशीला देवी को सलाम करता है.

International Nurses Day
नर्स सुशीला देवी से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता.
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Published : May 12, 2020, 11:52 AM IST

बस्ती: कहते हैं कि इंसान कोई भी जंग हाथों से नहीं बल्कि हौसलों से जीतता है. इस कहावत को सच कर दिखाया है बस्ती जिले में स्थित कैली हॉस्पिटल की नर्स सुशीला देवी ने. ईटीवी भारत की टीम ने आज अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) पर कोरोना वॉरियर नर्स सुशीला देवी से खास बातचीत की.

नर्स सुशीला देवी से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता.

कोरोना वॉरियर सुशीला देवी
दरअसल, बस्ती जिले के कैली हॉस्पिटल में तैनात सुशील देवी कोरोना ड्यूटी के ठीक पहले इस कदर बीमार थीं कि अपने ही अस्पताल में उन्हें तीन-तीन बार भर्ती कराना पड़ा था. लॉकडाउन के समय लगातार वह हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित थीं, लेकिन जैसे ही ठीक हुईं परिवार वालों के मना करने के बावजूद वह कोरोना ड्यूटी पर निकल पड़ीं. महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज में उन्होंने 18 दिन ड्यूटी की. कोरोना मरीजों सहित क्वारंटाइन लोगों के खानपान का ख्याल रखा और पूरी सावधानी बरतते हुए दिनरात सेवा की.

8 महीने बाद है रिटायर्मेंट
सेवानिवृत होने में मात्र आठ माह बचे होने के बावजूद 59 वर्षीय सुशीला देवी ने कोरोना वारियर्स बनकर एक मिसाल पेश की. इन दिनों वह एक निजी होटल में क्वारंटाइन चल रही हैं.

घरवालों से दूर रहने का मलाल
ईटीवी भारत से खास बातचीत में सुशीला देवी ने बताया कि लोगों को अपना काम पूरी निष्ठा से करना चाहिए. नौकरी के दौरान जिस आत्मसुख की प्राप्ति कोरोना ड्यूटी में मिली है, वैसा एहसास कभी नहीं हुआ. हां, घरवालों से एक महीने से अधिक समय से दूर रहने का मलाल जरूर है, लेकिन ड्यूटी के बाद कभी घर जाने के लिए बहुत उत्सुकता नहीं दिखाई, क्योंकि इससे मेरे साथ-साथ पूरे परिवार को खतरा है. मोबाइल के जरिये बच्चों और परिवार से बात हो जाया करती है.

बता दें कि सुशीला देवी का एक कोरोना टेस्ट हुआ है, जो निगेटिव आया है. अभी एक कोरोना टेस्ट और होगा. इसके बाद उन्हें उनके परिवार के बीच जाने की इजाजत मिल जाएगी. संत कबीर नगर जिले की मूल निवासी सुशीला देवी ने 2001 में स्टॉफ नर्स के तौर पर सेवा शुरू की. उस समय कैलीगांव में मेडिकल कॉलेज न होकर ओपेक हॉस्पीटल कैली हुआ करता था.

इसे भी पढ़ें-आगरा: स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के खिलाफ किसानों ने कराया मुंडन

बस्ती: कहते हैं कि इंसान कोई भी जंग हाथों से नहीं बल्कि हौसलों से जीतता है. इस कहावत को सच कर दिखाया है बस्ती जिले में स्थित कैली हॉस्पिटल की नर्स सुशीला देवी ने. ईटीवी भारत की टीम ने आज अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) पर कोरोना वॉरियर नर्स सुशीला देवी से खास बातचीत की.

नर्स सुशीला देवी से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता.

कोरोना वॉरियर सुशीला देवी
दरअसल, बस्ती जिले के कैली हॉस्पिटल में तैनात सुशील देवी कोरोना ड्यूटी के ठीक पहले इस कदर बीमार थीं कि अपने ही अस्पताल में उन्हें तीन-तीन बार भर्ती कराना पड़ा था. लॉकडाउन के समय लगातार वह हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित थीं, लेकिन जैसे ही ठीक हुईं परिवार वालों के मना करने के बावजूद वह कोरोना ड्यूटी पर निकल पड़ीं. महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज में उन्होंने 18 दिन ड्यूटी की. कोरोना मरीजों सहित क्वारंटाइन लोगों के खानपान का ख्याल रखा और पूरी सावधानी बरतते हुए दिनरात सेवा की.

8 महीने बाद है रिटायर्मेंट
सेवानिवृत होने में मात्र आठ माह बचे होने के बावजूद 59 वर्षीय सुशीला देवी ने कोरोना वारियर्स बनकर एक मिसाल पेश की. इन दिनों वह एक निजी होटल में क्वारंटाइन चल रही हैं.

घरवालों से दूर रहने का मलाल
ईटीवी भारत से खास बातचीत में सुशीला देवी ने बताया कि लोगों को अपना काम पूरी निष्ठा से करना चाहिए. नौकरी के दौरान जिस आत्मसुख की प्राप्ति कोरोना ड्यूटी में मिली है, वैसा एहसास कभी नहीं हुआ. हां, घरवालों से एक महीने से अधिक समय से दूर रहने का मलाल जरूर है, लेकिन ड्यूटी के बाद कभी घर जाने के लिए बहुत उत्सुकता नहीं दिखाई, क्योंकि इससे मेरे साथ-साथ पूरे परिवार को खतरा है. मोबाइल के जरिये बच्चों और परिवार से बात हो जाया करती है.

बता दें कि सुशीला देवी का एक कोरोना टेस्ट हुआ है, जो निगेटिव आया है. अभी एक कोरोना टेस्ट और होगा. इसके बाद उन्हें उनके परिवार के बीच जाने की इजाजत मिल जाएगी. संत कबीर नगर जिले की मूल निवासी सुशीला देवी ने 2001 में स्टॉफ नर्स के तौर पर सेवा शुरू की. उस समय कैलीगांव में मेडिकल कॉलेज न होकर ओपेक हॉस्पीटल कैली हुआ करता था.

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