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बरेली: अस्थियों से प्यार नहीं, चाहिए मृत्यु प्रमाण पत्र - bareilly news

यूपी के बरेली में सिटी श्मशानघाट पर अस्थियां आज भी अपनों का इंतजार कर रही हैं. दरअसल लोग यहां शवदाह के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र लेने तो आते हैं, लेकिन अस्थियों की सुध नहीं लेते, आलम यह है कि आज भी यहां हजारों की संख्या में अस्थियां ऐसे ही लटक रही हैं.

बरेली का सिटी श्मशानघाट
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Published : Sep 24, 2019, 1:07 PM IST

बरेली: ताउम्र बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने के बाद भी बच्चे जीते जी माता-पिता को सुख नहीं दे पाते हैं और उनके मरने के बाद भी उनकी आत्मा को शान्ति नहीं दे पाते हैं. जिले के सिटी श्मशानघाट पर आज भी सैकड़ों अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं, लोग मृत्यु प्रमाण पत्र लेने तो आते हैं, लेकिन अस्थियों की कोई सुध नहीं लेता.

श्मशानघाट पर अस्थियों को आज भी अपनों का इंतजार.

अपनों के इंतजार में अस्थियां
बरेली के सिटी श्मशानघाट पर आज भी हजारों की संख्या में अस्थियां अपनों के इंतजार में लटक रही हैं. मौत ने उन्हें चिर शांति तो दे दी लेकिन औलाद उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी पूरी तरह नहीं निभा सकी. हम बात कर रहे हैं ऐसे कलयुगी औलादों की जिन्हें सिर्फ मां-बाप की दौलत से प्यार होता है. वो लोग अपने बुज़ुर्ग माता-पिता की अस्थियां लेने तो नहीं पहुंचे, लेकिन श्मशानघाट से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र ले गए.

दरअसल मृत्यु प्रमाण पत्र हर तरह के कानूनी विवादों को निपटाने का आधार बनता है. मृत व्यक्ति के एकाउंट से रकम निकालने, संपत्ति को अपने नाम कराने या नगर निगम से आधिकारिक मृत्यु प्रमाण पत्र भी श्मसान भूमि से जारी प्रमाण पत्र के आधार पर ही बनता है. लिहाजा 90 फीसदी लोग 8 से 10 दिन के अंदर ही मृत्यु प्रमाण पत्र ले जाते हैं.

इसे भी पढ़ें:-बरेली विकास प्राधिकरण की नई पहल, मंदिरों में रखा जाएगा साफ-सफाई का विशेष ध्यान

श्मशान भूमि की देख-रेख करने वाले तो ये भी कहते हैं कि 10 फीसदी लोग तो ऐसे भी है जिनका शवदाह तो होता है, लेकिन न तो कोई फूल सिराने आता है और न ही मृत्यु प्रमाण पत्र लेने. संभावना जताई जाती है कि इनके नाम न तो कोई संपत्ति होगी और न ही बैंक बैलेंस, जिससे किसी को प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं पड़ती.

60 फीसदी लोग ही सिर्फ मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर गए हैं. तीनों श्मशान भूमि को मिलाकर अस्थि कलशों की संख्या लगभग डेढ़ हजार के करीब या उससे अधिक भी हो सकती है.
-महेंद्र पटेल, संरक्षक, शमशान भूमि

बरेली: ताउम्र बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने के बाद भी बच्चे जीते जी माता-पिता को सुख नहीं दे पाते हैं और उनके मरने के बाद भी उनकी आत्मा को शान्ति नहीं दे पाते हैं. जिले के सिटी श्मशानघाट पर आज भी सैकड़ों अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं, लोग मृत्यु प्रमाण पत्र लेने तो आते हैं, लेकिन अस्थियों की कोई सुध नहीं लेता.

श्मशानघाट पर अस्थियों को आज भी अपनों का इंतजार.

अपनों के इंतजार में अस्थियां
बरेली के सिटी श्मशानघाट पर आज भी हजारों की संख्या में अस्थियां अपनों के इंतजार में लटक रही हैं. मौत ने उन्हें चिर शांति तो दे दी लेकिन औलाद उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी पूरी तरह नहीं निभा सकी. हम बात कर रहे हैं ऐसे कलयुगी औलादों की जिन्हें सिर्फ मां-बाप की दौलत से प्यार होता है. वो लोग अपने बुज़ुर्ग माता-पिता की अस्थियां लेने तो नहीं पहुंचे, लेकिन श्मशानघाट से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र ले गए.

दरअसल मृत्यु प्रमाण पत्र हर तरह के कानूनी विवादों को निपटाने का आधार बनता है. मृत व्यक्ति के एकाउंट से रकम निकालने, संपत्ति को अपने नाम कराने या नगर निगम से आधिकारिक मृत्यु प्रमाण पत्र भी श्मसान भूमि से जारी प्रमाण पत्र के आधार पर ही बनता है. लिहाजा 90 फीसदी लोग 8 से 10 दिन के अंदर ही मृत्यु प्रमाण पत्र ले जाते हैं.

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श्मशान भूमि की देख-रेख करने वाले तो ये भी कहते हैं कि 10 फीसदी लोग तो ऐसे भी है जिनका शवदाह तो होता है, लेकिन न तो कोई फूल सिराने आता है और न ही मृत्यु प्रमाण पत्र लेने. संभावना जताई जाती है कि इनके नाम न तो कोई संपत्ति होगी और न ही बैंक बैलेंस, जिससे किसी को प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं पड़ती.

60 फीसदी लोग ही सिर्फ मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर गए हैं. तीनों श्मशान भूमि को मिलाकर अस्थि कलशों की संख्या लगभग डेढ़ हजार के करीब या उससे अधिक भी हो सकती है.
-महेंद्र पटेल, संरक्षक, शमशान भूमि

Intro:एंकर:- तमाम उम्र बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने के बाद भी बच्चे जीते जी माता पिता को सुख नहीं दे पाते है। और उनके मरने के बाद भी उनकी आत्मा को शान्ति नहीं देते है। मौत ने उन्हें चिर शांति दी लेकिन औलाद उनके अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी भी पूरी तरह से नहीं निभा सकी।


Body:vo1-  जी हाँ हम बात कर रहे है ऐसे कलयुगी औलादों की जिन्हें सिर्फ माँ बाप की दौलत से प्यार है वो लोग अपने बुज़ुर्ग माता पिता की अस्थियां लेने तो नहीं पहुँचे लेकिन शमशान घाट से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र हाथ के हाथ ले गए ताकि वो उनकी संपत्ति पर अपना अधिकार जमा सके। शमशान भूमि के संरक्षक समिति ने तो ये भी दावा कर दिया है कि 60 फीसदी लोग सिर्फ उनका मृत्यु प्रमाण पत्र ही लेकर गए है। अनुमान के मुताबिक ऐसे अस्थि कलशों की संख्या तीनों शमशान भूमि मैं मिलाकर लगभग डेढ़ हाज़र के करीब या उससे अधिक भी हो सकती है।

बाईट:-महेंद्र पटेल संरक्षक शमशान भूमि

vo 2:-  आपको बता दे कि मृत्यु प्रमाण पत्र हर तरह के कानूनी विवादों को निपटाने के आधार बनता है। मृत व्यक्ति के एकाउंट से रकम निकलने या संपत्ति को अपने नाम कराने या नगर निगम से आधिकारिक मृत्यु प्रमाण पत्र भी शमशान भूमि से जारी प्रमाण पत्र के आधार पर ही बनता है लिहाज़ा 90 फीसदी लोग 8 से 10 दिन के अंदर मृत्यु प्रमाण पत्र ले जाते है। 




Conclusion:Fvo:- शमशान भूमि की देख रेख करने वाले तो ये भी कहते है कि 10 फीसदी लोग तो ऐसे भी है जिनका शव धाह तो होता है लेकिन ना तो कोई फूल सिराने के लिए आता है और ना ही मृत्यु प्रमाण पत्र लेने। संभावना जताई जाती है कि इनके नाम न तो कोई संपत्ति होती है और ना ही बैंक बैलेंस जो किसी को प्रमाण पत्र की ज़रूरत पड़े।

 

रंजीत शर्मा

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