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...जिस खान बहादुर खान ने बरेली को अंग्रेजों से कराया था आजाद, आज बदहाल है उन्हीं की मजार - बरेली

उत्तर प्रदेश के बरेली के रुहेलखंड में रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मजार मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. रुहेला सरदार खान बहादुर खान अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. आज जिले में इनकी मजार बदहाल पड़ी है.

बदहाल पड़ी सरदार खान बहादुर खान की मजार.
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Published : Aug 25, 2019, 11:24 AM IST

बरेली: रुहेलखंड में आज रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मजार बदहाली के आंसू बहा रही है. रुहेला सरदार खान ने अंग्रेजी शासनकाल में अपनी बहादुरी का परिचय दिया था. जिस वजह से अंग्रेजों में दहशत फैल गई थी. रुहेलखंड का यह सरदार आज गुमनानी की जिंदगी जी रहा है.

बदहाल पड़ी सरदार खान बहादुर खान की मजार.

इसे भी पढ़ें:- उन्नाव: देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद का स्मारक बदहाल

अंग्रेजों से लिया था मोर्चा
रुहेला सरदार खान बहादुर खान ने पूरे रुहेलखंड में अंग्रेजों से लोहा लिया. लोहा लेते हुए खान बहादुर खान ने 11 महीनों के लिए बरेली को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया था. अगली बार जब अंग्रेजों ने बरेली पर हमला बोला तो रुहेला सरदार उनकी गिरफ्त में आ गए.

कोई नहीं है सुध लेने वाला
अंग्रेजों ने रुहेला सरदार खान बहादुर खान को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें फांसी दे दी. अंग्रेज खान बहादुर खान से इतना खौफ खाते थे कि उन्हें जंजीरों में जकड़कर पुरानी जिला जेल में दफन कर दिया, लेकिन आज इनकी मजार की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

बदहाल है सरदार खान की मजार
बरेली को आजाद कराने वाले रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मजार बदहाल पड़ी है. मजार का शीशा तक टूट गया है. इसको बदलने वाला भी कोई नहीं है. इससे इतर यहां लाइट का कनेक्शन भी नहीं है.

तैयार की थी अपनी पैदल सेना
खान बहादुर खान अंग्रेजी सेना में जज के तौर पर काम करते थे. उन्होंने अंग्रेजों के विश्वास का फायदा उठाते हुए अपनी एक पैदल सेना तैयार की. खान बहादुर खान की सेना इतनी बड़ी थी कि उन्होंने दूसरे राज्यों में भी अपने सैनिक भेजे थे. छह मई 1858 को खान बहादुर खान और अंग्रजों के बीच आखिरी युद्ध हुआ, जिसमें भारतीयों की हार हुई थी, लेकिन मौका पाकर रुहेला सरदार नेपाल भाग गए.

साथी ने दिया धोखा
खान बहादुर खान के एक साथी जंग बहादुर ने धोखे से उन्हें अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया. 22 फरवरी को तत्कालीन कमिश्नर रॉबर्ट ने अपराधी मानते हुए खान बहादुर खान को फांसी की सजा सुनाई. 24 मार्च 1860 को उन्हें पुरानी जिला जेल में फांसी दे दी गई.

बदहाली के आंसू बहा रही मजार
अंग्रेजों के मन में खान बहादुर खान को लेकर इतना डर था कि उनको बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया. जेल में बंद रुहेला सरदार की कब्र को काफी प्रयास के बाद बाहर निकाला गया, लेकिन आज यही मजार बदहाली के आंसू बहा रही है. यहां बिजली का कनेक्शन तक नहीं है.

बरेली: रुहेलखंड में आज रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मजार बदहाली के आंसू बहा रही है. रुहेला सरदार खान ने अंग्रेजी शासनकाल में अपनी बहादुरी का परिचय दिया था. जिस वजह से अंग्रेजों में दहशत फैल गई थी. रुहेलखंड का यह सरदार आज गुमनानी की जिंदगी जी रहा है.

बदहाल पड़ी सरदार खान बहादुर खान की मजार.

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अंग्रेजों से लिया था मोर्चा
रुहेला सरदार खान बहादुर खान ने पूरे रुहेलखंड में अंग्रेजों से लोहा लिया. लोहा लेते हुए खान बहादुर खान ने 11 महीनों के लिए बरेली को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया था. अगली बार जब अंग्रेजों ने बरेली पर हमला बोला तो रुहेला सरदार उनकी गिरफ्त में आ गए.

कोई नहीं है सुध लेने वाला
अंग्रेजों ने रुहेला सरदार खान बहादुर खान को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें फांसी दे दी. अंग्रेज खान बहादुर खान से इतना खौफ खाते थे कि उन्हें जंजीरों में जकड़कर पुरानी जिला जेल में दफन कर दिया, लेकिन आज इनकी मजार की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

बदहाल है सरदार खान की मजार
बरेली को आजाद कराने वाले रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मजार बदहाल पड़ी है. मजार का शीशा तक टूट गया है. इसको बदलने वाला भी कोई नहीं है. इससे इतर यहां लाइट का कनेक्शन भी नहीं है.

तैयार की थी अपनी पैदल सेना
खान बहादुर खान अंग्रेजी सेना में जज के तौर पर काम करते थे. उन्होंने अंग्रेजों के विश्वास का फायदा उठाते हुए अपनी एक पैदल सेना तैयार की. खान बहादुर खान की सेना इतनी बड़ी थी कि उन्होंने दूसरे राज्यों में भी अपने सैनिक भेजे थे. छह मई 1858 को खान बहादुर खान और अंग्रजों के बीच आखिरी युद्ध हुआ, जिसमें भारतीयों की हार हुई थी, लेकिन मौका पाकर रुहेला सरदार नेपाल भाग गए.

साथी ने दिया धोखा
खान बहादुर खान के एक साथी जंग बहादुर ने धोखे से उन्हें अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया. 22 फरवरी को तत्कालीन कमिश्नर रॉबर्ट ने अपराधी मानते हुए खान बहादुर खान को फांसी की सजा सुनाई. 24 मार्च 1860 को उन्हें पुरानी जिला जेल में फांसी दे दी गई.

बदहाली के आंसू बहा रही मजार
अंग्रेजों के मन में खान बहादुर खान को लेकर इतना डर था कि उनको बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया. जेल में बंद रुहेला सरदार की कब्र को काफी प्रयास के बाद बाहर निकाला गया, लेकिन आज यही मजार बदहाली के आंसू बहा रही है. यहां बिजली का कनेक्शन तक नहीं है.

Intro:बरेली। रुहेलखंड में आज भी रुहेला सरदार खान बहादुर खान का नाम सभी लोग जानते हैं। रुहेला सरदार ने अंग्रेजी शासनकाल में अपनी बहादुरी का परिचय दिया। जिस वजह से अंग्रेजों में दहशत फैल गयी थी। रुहेलखंड का यह सरदार आज गुमनानी की जिंदगी जी रहा है। इसको पूछने वाला कोई नहीं है।


Body:अंग्रेजों से लिया था मोर्चा रुहेला सरदार खान बहादुर खान ने पूरे रुहेलखंड में अंग्रेजों से लोहा लिया। लोहा लेते हुए खान बहादुर खान ने 11 महीनों के लिए बरेली को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद करवाया। लेकिन अगली बार जब अंग्रेजों ने बरेली पर हमला बोला तो रुहेला सरदार उनकी गिरफ्त में आ गए। कोई नहीं है सुध लेने वाला अंग्रेजों ने रुहेला सरदार खान बहादुर खान को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें फौरन फांसी दे दी। अंग्रेज खान बहादुर खान से इतना खौफ़ खाते थे कि उन्हें जंज़ीरों में जकड़कर पुरानी जिला जेल में दफन कर दिया। लेकिन आज इनकी मज़ार की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बदहाल है मज़ार बरेली को आज़ाद कराने वाले रुहेला सरदार खान बहादुर खान की मज़ार बदहाल पड़ी है। मज़ार का शीशा तक टूट गया है। इसको बदलने वाला भी कोई नहीं है। इससे इतर यहां लाइट का कनेक्शन भी नहीं है। तैयार की थी अपनी पैदल सेना खान बहादुर खान अंग्रेजी सेना में जज के तौर पर काम करते थे। उन्होने अंग्रेजों के विश्वास का फायदा उठाते हुए अपनी एक पैदल सेना तैयार की। खान बहादुर खान की सेना इतनी बड़ी थी कि उन्होंने दूसरे राज्यों में भी अपने सैनिक भेजे थे। 6 मई 1858 को खान बहादुर खान और अंग्रजों के बीच आखिरी युद्ध हुआ। जिसमें भारतीयों की हार हुई थी। लेकिन मौका पाकर रुहेला सरदार नेपाल भाग गए। साथी ने दिया धोखा खान बहादुर खान के एक साथी जंग बहादुर ने धोखे से उन्हें अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया। 22 फरवरी को तत्कालीन कॉमिश्नर रॉबर्ट ने अपराधी मानते हुए खान बहादुर खान को फांसी की सज़ा सुनाई। 24 मार्च 1860 को उन्हें पुरानी जिला जेल में फांसी दे दी गयी। बदहाली के आंसू बहा रही मज़ार अंग्रेजों के मन में खान बहादुर खान को लेकर इतना डर था कि उनको बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया। जेल में बंद रुहेला सरदार की कब्र को काफी प्रयास के बाद बाहर निकाला गया। लेकिन आज यही मज़ार बदहाली के आंसू बहा रहा है। यहां बिजली का कनेक्शन तक नहीं है।


Conclusion:खान बहादुर खान की मज़ार सिर्फ यादगार बनकर रह गयी है। सिर्फ लोग यहां खानापूर्ति करने आते हैं। कोई इसके लिए आवाज़ नहीं उठाता। अनुराग मिश्र 9450024711 8318122246
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