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घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं राखियां बनाकर बन रही आत्मनिर्भर

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Published : Aug 12, 2021, 7:58 AM IST

बरेली के चैनपुर ब्लॉक के गांव फरीदापुर इनायत खां की रहने वाली ग्रेजुएशन की छात्रा पूजा वर्मा ने स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव की अनपढ़ महिलाओं को रोजगार देकर एक नया हुनर भी सिखाया है. आजकल वह रक्षाबंधन के लिए ऑर्डर पर राखियां तैयार कर रही हैं.

घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं राखियां बनाकर बन रही आत्मनिर्भर
घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं राखियां बनाकर बन रही आत्मनिर्भर

बरेली: भाई-बहन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन करीब आते ही राखियों को बनाने बालों का सीजन आ जाता है और वह चंद दिनों में रेशम की राखियां बनाकर अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं. बरेली में भी एक ऐसी छात्रा है जिसने एक स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव की अनपढ़ महिलाओं को रोजगार देकर एक नया हुनर भी सिखाया है. आजकल वह रक्षाबंधन के लिए ऑर्डर पर राखियां तैयार कर रही हैं, जो महिलाएं कल तक घरों की चार दीवारी तक ही सीमित थी, वो आज राखियां बनाकर अपना काम कर अच्छा मुनाफा कमा रही है.

जिले के चैनपुर ब्लॉक के गांव फरीदापुर इनायत खां की रहने वाली ग्रेजुएशन की छात्रा पूजा वर्मा का सपना था कि वो कुछ ऐसा काम करें, ताकि गांव की महिलाओं को रोजगार दे सके. अपने सपने को साकार करने के लिए पूजा वर्मा ने अपराजिता महिला समूह बनाकर 11 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और फिर सपने को साकार करने के लिए खुद का रोजगार खड़ा किया. गांव की उन महिलाओं को गांव में ही रोजगार दिया जो घरों की चारदीवारी में रहकर चौका बर्तन तक ही सीमित थी. पर अब पूजा वर्मा की मेहनत के चलते स्वयं सहायता समूह के रूप में 11 महिलाओं ने अपना खुद का धंधा खड़ा कर लिया है, जिससे वह अच्छा मुनाफा कमाकर अपनी परिवार को चला रही हैं.

ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही पूजा वर्मा ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ब्लॉक मैनेजर कविता गंगवार से मिलकर खुद का रोजगार करने के साथ अन्य गांव की महिलाओं को रोजगार देने के लिए मदद की मांग की. जिसके बाद कविता गंगवार ने फरीदापुर इनायत की रहने वाली पूजा वर्मा को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ा. इसके बाद पूजा वर्मा ने समूह बनाकर अपना काम करना शुरू किया.

घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं राखियां बनाकर बन रही आत्मनिर्भर

समूह की महिलाएं बना रही है स्वदेशी राखियां
अपराजिता समूह की पूजा वर्मा ने 11 महिलाओं के साथ मिलकर गांव में ही काम करना शुरू किया. समूह की महिलाएं आजकल रक्षाबंधन के त्योहार के लिए स्वदेशी रेशम की राखियों को बना रही हैं. चाइनीज राखियों के बहिष्कार के बाद स्वदेशी राखियों की मांग बढ़ी है और उसी मांग का फायदा उठाने के लिए अपराजिता समूह की महिलाएं दिन रात रेशम की स्वदेशी राखियां बनाने में लगी हुई हैं, ताकि भाई की कलाई पर सजने वाली राखियों को बनाकर आत्मनिर्भर बना जा सके और कुछ पैसे कमा कर घर खर्च भी चलाया जा सके.

इसे भी पढ़ें-तीज के मौके पर छात्राओं ने अनूठे तरीके से मनाया "आजादी का अमृत महोत्सव"

लगातार मिल रहे हैं राखियों के ऑर्डर
स्वयं सहायता समूह की पूजा वर्मा बताती हैं कि जब से समूह की महिलाओं ने रेशम की स्वदेशी राखियां बनाना शुरू किया है, तब से लगातार राखी बनाने के आर्डर मिल रहे हैं. स्वदेशी राखियों की मांग इतनी ज्यादा है कि स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा बनाई जा रही राखियों को बाजार में दुकान लगाकर बेचने वाले व्यापारी हाथों हाथों खरीद कर समूह की महिलाओं से ले जा रहे हैं.

तीस हजार से अधिक की राखियां तैयार कर बेच चुकी है समूह की महिलाएं
स्वयं सहायता समूह की नीरज पटेल बताती हैं कि उनके समूह के द्वारा कुछ दिनों में ही 30,000 से अधिक की राखियां बनाकर बाजार में दुकान लगाने वाले दुकानदारों को बेच चुकी हैं. अभी तो रक्षाबंधन के काफी दिन हैं तब तक लाखों का माल बनाकर बाजार में बिक्री कर सकते हैं.

बरेली: भाई-बहन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन करीब आते ही राखियों को बनाने बालों का सीजन आ जाता है और वह चंद दिनों में रेशम की राखियां बनाकर अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं. बरेली में भी एक ऐसी छात्रा है जिसने एक स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव की अनपढ़ महिलाओं को रोजगार देकर एक नया हुनर भी सिखाया है. आजकल वह रक्षाबंधन के लिए ऑर्डर पर राखियां तैयार कर रही हैं, जो महिलाएं कल तक घरों की चार दीवारी तक ही सीमित थी, वो आज राखियां बनाकर अपना काम कर अच्छा मुनाफा कमा रही है.

जिले के चैनपुर ब्लॉक के गांव फरीदापुर इनायत खां की रहने वाली ग्रेजुएशन की छात्रा पूजा वर्मा का सपना था कि वो कुछ ऐसा काम करें, ताकि गांव की महिलाओं को रोजगार दे सके. अपने सपने को साकार करने के लिए पूजा वर्मा ने अपराजिता महिला समूह बनाकर 11 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और फिर सपने को साकार करने के लिए खुद का रोजगार खड़ा किया. गांव की उन महिलाओं को गांव में ही रोजगार दिया जो घरों की चारदीवारी में रहकर चौका बर्तन तक ही सीमित थी. पर अब पूजा वर्मा की मेहनत के चलते स्वयं सहायता समूह के रूप में 11 महिलाओं ने अपना खुद का धंधा खड़ा कर लिया है, जिससे वह अच्छा मुनाफा कमाकर अपनी परिवार को चला रही हैं.

ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही पूजा वर्मा ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ब्लॉक मैनेजर कविता गंगवार से मिलकर खुद का रोजगार करने के साथ अन्य गांव की महिलाओं को रोजगार देने के लिए मदद की मांग की. जिसके बाद कविता गंगवार ने फरीदापुर इनायत की रहने वाली पूजा वर्मा को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ा. इसके बाद पूजा वर्मा ने समूह बनाकर अपना काम करना शुरू किया.

घर की चारदीवारी में रहने वाली महिलाएं राखियां बनाकर बन रही आत्मनिर्भर

समूह की महिलाएं बना रही है स्वदेशी राखियां
अपराजिता समूह की पूजा वर्मा ने 11 महिलाओं के साथ मिलकर गांव में ही काम करना शुरू किया. समूह की महिलाएं आजकल रक्षाबंधन के त्योहार के लिए स्वदेशी रेशम की राखियों को बना रही हैं. चाइनीज राखियों के बहिष्कार के बाद स्वदेशी राखियों की मांग बढ़ी है और उसी मांग का फायदा उठाने के लिए अपराजिता समूह की महिलाएं दिन रात रेशम की स्वदेशी राखियां बनाने में लगी हुई हैं, ताकि भाई की कलाई पर सजने वाली राखियों को बनाकर आत्मनिर्भर बना जा सके और कुछ पैसे कमा कर घर खर्च भी चलाया जा सके.

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लगातार मिल रहे हैं राखियों के ऑर्डर
स्वयं सहायता समूह की पूजा वर्मा बताती हैं कि जब से समूह की महिलाओं ने रेशम की स्वदेशी राखियां बनाना शुरू किया है, तब से लगातार राखी बनाने के आर्डर मिल रहे हैं. स्वदेशी राखियों की मांग इतनी ज्यादा है कि स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा बनाई जा रही राखियों को बाजार में दुकान लगाकर बेचने वाले व्यापारी हाथों हाथों खरीद कर समूह की महिलाओं से ले जा रहे हैं.

तीस हजार से अधिक की राखियां तैयार कर बेच चुकी है समूह की महिलाएं
स्वयं सहायता समूह की नीरज पटेल बताती हैं कि उनके समूह के द्वारा कुछ दिनों में ही 30,000 से अधिक की राखियां बनाकर बाजार में दुकान लगाने वाले दुकानदारों को बेच चुकी हैं. अभी तो रक्षाबंधन के काफी दिन हैं तब तक लाखों का माल बनाकर बाजार में बिक्री कर सकते हैं.

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