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बरेली: बिना रोक-टोक मस्जिद में नमाज पढ़ना चाहती हैं मुस्लिम महिलाएं

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Published : Nov 24, 2019, 7:13 PM IST

मुस्लिम महिलाओं ने अब मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर आवाज उठाना शुरु कर दिया है. उनका कहना है कि वह भी बिना रोक-टोक के मस्जिद में नमाज पढ़ना चाहती है.

महिलाएं ने मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए खोला मोर्चा.

बरेली: बीजेपी सरकार के आने के बाद से मुस्लिम महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है, फिर वो चाहे तीन तालाक का मामला हो या हलाला का. अब मुस्लिम महिलाएं बिना रोक-टोक के नमाज अदा करने को लेकर भी आवाज उठाने लगी है.

महिलाएं ने मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए खोला मोर्चा.

इस्लाम नहीं रोकता महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला सुर्खियों में आने के बाद मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में जाने पर पाबंदी न हो, इसके लिए उन्होंने मोर्चा खोल दिया है. आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में ये भी चर्चा है कि मस्जिदों में महिलाएं नहीं जा सकतीं, लेकिन इस्लाम मजहब को मानने वाले ऐसा नहीं सोचते. उनके मुताबिक महिलाएं मस्जिद जा सकती हैं और नमाज भी पढ़ सकती हैं. मगर इसमें कुछ शर्त है, जिसमें महिला का पर्दा अहम है. इस कड़ी में उलेमा ने मोहम्मद साहब से लेकर हजरते उमर खलीफा तक के जमाने का उदाहरण दिया है.

कुरान और हदीस में भी जिक्र नहीं
तंजीम उलमा-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का कहना है कि कुरान और हदीस में कहीं नहीं लिखा है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिदों में नहीं जा सकती है. मोहम्मद साहब के जमाने के बाद मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने पर पाबंदी लग गई थी. 5 वक्त की नमाज में दो फज्र और ईशा की नमाज का वक्त अंधेरे में होता है. ऐसे में औरतों का इस वक्त घर से निकलना ठीक नहीं.

कुछ मसलक की पाबंदी
उलेमा का कहना है कि हिन्दुस्तान में ज्यादातर मुसलमान हनफी मजहब को मानने वाले हैं. इनमें दो मसलक बरेलवी और देवबंदी भी हैं. हनफी मजहब को मानने वाले मुसलमान महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं. बरेलवी मसलक के उलेमा का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ना कोई आज का दौर नहीं है बल्कि माहौल अच्छा न होने के कारण वे नहीं चाहते कि महिलाएं मस्जिद के अंदर आएं.

महिलाएं भी चाहती है मस्जिद में नमाज अदा करना
मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने कहा कि मजहबे इस्लाम में मर्द के साथ औरतों को भी हुकूक दिए हैं. मस्जिदों में अगर महिलाएं नमाज को जाती हैं तो इसमें एतराज क्या है? हम इस मुद्दे को उठाकर कोर्ट की शरण लेंगे.

इसे भी पढ़ें- बुलंदशहर: नमाज अदा कर मस्जिद से बाहर निकले युवक पर ताबड़तोड़ फायरिंग, मौत

फिलहाल इस मुद्दे पर विवाद बरसों पुराना है. कुछ उलेमा महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से मना करते हैं तो वहीं कुछ मौलाना मस्जिद के अंदर महिलाओं के आने की पाबंदी से साफ इनकार कर देते हैं. मौलाना का कहना है मस्जिद अल्लाह का घर है, इस पर सबका हक है. इस मुद्दे पर मुस्लिम धर्मगुरुओं में ही आपस में विरोधाभास है. यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस विवाद का अंत क्या होगा.

बरेली: बीजेपी सरकार के आने के बाद से मुस्लिम महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है, फिर वो चाहे तीन तालाक का मामला हो या हलाला का. अब मुस्लिम महिलाएं बिना रोक-टोक के नमाज अदा करने को लेकर भी आवाज उठाने लगी है.

महिलाएं ने मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए खोला मोर्चा.

इस्लाम नहीं रोकता महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला सुर्खियों में आने के बाद मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में जाने पर पाबंदी न हो, इसके लिए उन्होंने मोर्चा खोल दिया है. आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में ये भी चर्चा है कि मस्जिदों में महिलाएं नहीं जा सकतीं, लेकिन इस्लाम मजहब को मानने वाले ऐसा नहीं सोचते. उनके मुताबिक महिलाएं मस्जिद जा सकती हैं और नमाज भी पढ़ सकती हैं. मगर इसमें कुछ शर्त है, जिसमें महिला का पर्दा अहम है. इस कड़ी में उलेमा ने मोहम्मद साहब से लेकर हजरते उमर खलीफा तक के जमाने का उदाहरण दिया है.

कुरान और हदीस में भी जिक्र नहीं
तंजीम उलमा-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का कहना है कि कुरान और हदीस में कहीं नहीं लिखा है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिदों में नहीं जा सकती है. मोहम्मद साहब के जमाने के बाद मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने पर पाबंदी लग गई थी. 5 वक्त की नमाज में दो फज्र और ईशा की नमाज का वक्त अंधेरे में होता है. ऐसे में औरतों का इस वक्त घर से निकलना ठीक नहीं.

कुछ मसलक की पाबंदी
उलेमा का कहना है कि हिन्दुस्तान में ज्यादातर मुसलमान हनफी मजहब को मानने वाले हैं. इनमें दो मसलक बरेलवी और देवबंदी भी हैं. हनफी मजहब को मानने वाले मुसलमान महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं. बरेलवी मसलक के उलेमा का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ना कोई आज का दौर नहीं है बल्कि माहौल अच्छा न होने के कारण वे नहीं चाहते कि महिलाएं मस्जिद के अंदर आएं.

महिलाएं भी चाहती है मस्जिद में नमाज अदा करना
मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने कहा कि मजहबे इस्लाम में मर्द के साथ औरतों को भी हुकूक दिए हैं. मस्जिदों में अगर महिलाएं नमाज को जाती हैं तो इसमें एतराज क्या है? हम इस मुद्दे को उठाकर कोर्ट की शरण लेंगे.

इसे भी पढ़ें- बुलंदशहर: नमाज अदा कर मस्जिद से बाहर निकले युवक पर ताबड़तोड़ फायरिंग, मौत

फिलहाल इस मुद्दे पर विवाद बरसों पुराना है. कुछ उलेमा महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से मना करते हैं तो वहीं कुछ मौलाना मस्जिद के अंदर महिलाओं के आने की पाबंदी से साफ इनकार कर देते हैं. मौलाना का कहना है मस्जिद अल्लाह का घर है, इस पर सबका हक है. इस मुद्दे पर मुस्लिम धर्मगुरुओं में ही आपस में विरोधाभास है. यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस विवाद का अंत क्या होगा.

Intro:एंकर:- जब से बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तब से मुस्लिम महिलाओं ने अपने हक की आवाज बुलंद कर दी है चाहे वह तीन तलाक का मुद्दा हो चाहे हलाला का मुद्दा हो। अब एक और मुद्दे पर दबी जुबान से मुस्लिम महिलाएं आवाज उठाने लगी हैं मस्जिद में मुस्लिम महिलाएं बिना रोक-टोक के नवाज अदा कर सके।





Body:Vo1:-सबरीमालामंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला सुर्खियों में आने के बाद मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में जाने पर पाबंदी न हो , इसके लिए उन्होंने मोर्चा खोल दिया है । आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में ये भी चर्चा है कि मस्जिदों में महिलाएं नहीं जा सकतीं , लेकिन इस्लाम मजहब को मानने वाले ऐसा नहीं सोचते । उनके मुताबिक महिलाएं मस्जिद जा सकती हैं और नमाज भी पढ़ सकती हैं । मगर इसमें कुछ शर्त है , जिसमें महिला का पर्दा अहम है । उलेमा ने मोहम्मद साहब से लेकर हजरते उमर खलीफा तक के जमाने का उदाहरण दिया है


बाइट:-मौलाना शहाबुद्दीन रजवी


Vo2:-(कुरआन और हदीस में भी जिक्र नहीं) 

 तंजीम उलमा - ए - इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का कहना है कि कुरआन और हदीस में कहीं नहीं लिखा है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिदों में न जाएं । मोहम्मद साहब के जमाने के बाद मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने पर पाबंदी लग गई थी । 5 वक्त की नमाज में दो फज्र और ईशा की नमाज का वक्त अंधेरे में होता है । ऐसे में औरतों का इस वक्त घर से निकलना ठीक नहीं । 

(कुछ मसलक की पाबंदी)

 उलेमा का कहना है कि हिन्दुस्तान में ज्यादातर मुसलमान हनफी मजहब को मानने वाले हैं । इनमें दो मसलक बरेलवी और देवबंदी भी हैं । हनफी मजहब को मानने वाले मुसलमान महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने को नहीं भेजते हैं । बरेलवी मसलक के उलेमा का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने का आज का दौर नहीं है । माहौल अच्छा नहीं है ( मुयाशरा साजगार नहीं है ) । इसलिए नहीं चाहते कि महिलाएं मस्जिद में अंदर आएं ।


Vo3:-मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने कहा कि मजहबे इस्लाम में मर्दा के साथ औरतों को भी हुकूक दिए हैं । मस्जिदों में अगर महिलाएं नमाज को जाती हैं तो इसमें एतराज क्या है । इस मुद्दे को उठाकर कोर्ट की शरण लेंगे ।


बाइट:- फरहत नकवी(मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष)





Conclusion:Fvo:- फिलहाल इस मुद्दे पर विवाद बरसों पुराना है कुछ उलेमा महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से मना करते हैं तो वहीं कुछ मौलाना मस्जिद के अंदर महिलाओं के आने की पाबंदी से साफ इनकार कर देते हैं मौलाना का कहना है मस्जिद अल्लाह का घर है इस पर सबका हक है। इस मुद्दे पर मुस्लिम धर्मगुरुओं में ही आपस में विरोधाभास है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस विवाद का अंत क्या होगा। फिलहाल सबकी निगाहें सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर है की कोर्ट इस पर किया फैसला करती है।


रंजीत शर्मा।

9536666643

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