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देश की आजादी के लिए फांसी पर झूल गए थे बरेली के 257 क्रांतिकारी

आजादी की लड़ाई में उतरे बरेली जिले के 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नर ऑफिस में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई थी. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.

बरेली के 257 क्रांतिकारियों की कहानी.
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Published : Aug 28, 2019, 2:49 PM IST

बरेली: 1857 की क्रांति का जिक्र होते ही बरेली शहर का नाम जुबां पर आ ही जाता है. जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका गया था. बरेली के क्रांतिकारी भी स्वाधीनता के लिए बढ़-चढ़ के आगे आए. उस दौरान शहर का कमिश्नर ऑफिस आजादी की लड़ाई का प्रमुख केंद्र रहा.

देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.

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सुलग रहा था पूरा रुहेलखंड
भारत की आजादी की जंग का बिगुल 1857 में फूंका गया. उस समय बरेली सहित पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग रहा था. तभी रुहेला सरदार खान बहादुर खान के साथ पंडित शोभाराम और तमाम क्रांतिकारी दिल में क्रांति की आग लिए सड़कों पर निकल पड़े. इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार की नीव हिला दी. इसके चलते अंगेजी सरकार ने 6 मई 1858 को तमाम क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया.

इसे भी पढ़ें- हाथों में तिरंगा और चेहरे पर सच्ची आजादी, ये गरीब बच्चे पढ़ा रहे स्वाभिमानी बनने का पाठ

257 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया. गिरफ्तारी के करीब दो साल बाद 24 फरवरी 1860 को 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नर ऑफिस में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई. इस बरगद के पेड़ पर आज भी क्रांति की अमिट छाप मौजूद है. आजादी के बाद वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों की याद में यहां एक शहीद स्तंभ बनाया गया, जो उनकी वीरता की कहानी कह रहा है.

बरेली: 1857 की क्रांति का जिक्र होते ही बरेली शहर का नाम जुबां पर आ ही जाता है. जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका गया था. बरेली के क्रांतिकारी भी स्वाधीनता के लिए बढ़-चढ़ के आगे आए. उस दौरान शहर का कमिश्नर ऑफिस आजादी की लड़ाई का प्रमुख केंद्र रहा.

देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.

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सुलग रहा था पूरा रुहेलखंड
भारत की आजादी की जंग का बिगुल 1857 में फूंका गया. उस समय बरेली सहित पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग रहा था. तभी रुहेला सरदार खान बहादुर खान के साथ पंडित शोभाराम और तमाम क्रांतिकारी दिल में क्रांति की आग लिए सड़कों पर निकल पड़े. इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार की नीव हिला दी. इसके चलते अंगेजी सरकार ने 6 मई 1858 को तमाम क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया.

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257 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया. गिरफ्तारी के करीब दो साल बाद 24 फरवरी 1860 को 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नर ऑफिस में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई. इस बरगद के पेड़ पर आज भी क्रांति की अमिट छाप मौजूद है. आजादी के बाद वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों की याद में यहां एक शहीद स्तंभ बनाया गया, जो उनकी वीरता की कहानी कह रहा है.

Intro:बरेली। बरेली शहर की बात हो और कमिश्नर ऑफिस का जिक्र न किया जाए तो यह बेमानी होगा। शहर का यह ऑफिस आज भले ही सरकारी बन गया हो लेकिन यह कभी आजादी की लड़ाई का प्रमुख केंद्र था।

रुहेला सरदार खान बहादुर खान ने अंग्रजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। यहां मौजूद एक बरगद का पेड़ आज भी 257 क्रांतिकारियों की फांसी की घटना की याद दिलाता रहता है। कमिश्नर आफिस ऐसी ही तमाम यादें अपने अंदर समेटे हुआ है।


Body:पूरा रुहेलखंड सुलग रहा था

भारत की आजादी की पहली लड़ाई 1857 में बरेली समेत पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग रहा था। रुहेला सरदार खान बहादुर खान के साथ पंडित शोभाराम और तमाम क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अंगेजी सरकार ने 6 मई 1858 को तमाम क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था।

कमिश्नर ऑफिस में मौजूद हैं निशानियां

गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया और 24 फरवरी 1860 को 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नर ऑफिस में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गयी थी। क्रांति की अमित छाप आज भी मौजूद है। इन सबकी याद में शहीद स्तंभ बनाया गया है। जो इनकी वीरता का उदाहरण पेश कर रहै है।


Conclusion:आजादी की लड़ाई में बरेली जा अहम योगदान है। कमिश्नर ऑफिस में मौजूद शहीद स्तंभ आज भी इनकी वीरता का परिचय दे रहा है।

अनुराग मिश्र

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