बरेली: 1857 की क्रांति का जिक्र होते ही बरेली शहर का नाम जुबां पर आ ही जाता है. जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका गया था. बरेली के क्रांतिकारी भी स्वाधीनता के लिए बढ़-चढ़ के आगे आए. उस दौरान शहर का कमिश्नर ऑफिस आजादी की लड़ाई का प्रमुख केंद्र रहा.
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सुलग रहा था पूरा रुहेलखंड
भारत की आजादी की जंग का बिगुल 1857 में फूंका गया. उस समय बरेली सहित पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग रहा था. तभी रुहेला सरदार खान बहादुर खान के साथ पंडित शोभाराम और तमाम क्रांतिकारी दिल में क्रांति की आग लिए सड़कों पर निकल पड़े. इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार की नीव हिला दी. इसके चलते अंगेजी सरकार ने 6 मई 1858 को तमाम क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया.
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257 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
गिरफ्तार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया. गिरफ्तारी के करीब दो साल बाद 24 फरवरी 1860 को 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नर ऑफिस में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई. इस बरगद के पेड़ पर आज भी क्रांति की अमिट छाप मौजूद है. आजादी के बाद वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों की याद में यहां एक शहीद स्तंभ बनाया गया, जो उनकी वीरता की कहानी कह रहा है.