ETV Bharat / state

बरेलीः कवि किशन सरोज का देहांत, पंचतत्व में हुए विलीन

19 जनवरी 1939 में बरेली जिले में जन्मे कवि किशन सरोज का 8 दिसंबर को निधन हो गया. कवि किशन सरोज काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे.

author img

By

Published : Jan 9, 2020, 7:51 PM IST

etv bharat
महाकवि किशन सरोज का देहांत.

बरेलीः काफी समय से अस्वस्थ चल रहे कवि किशन सरोज का 8 दिसंबर को देहांत हो गया. उनके जाने से साहित्य जगत को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है. गुरुवार को किशन सरोज का अंतिम संस्कार किया गया.

कवि किशन सरोज का देहांत.

कवि किशन सरोज
"दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें.
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया.
वह नगर, वे राजपथ, वे चौक-गलियां,
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया".

कवि किशन सरोज की 'तुम निश्चिन्त रहना' शीर्षक गीत की यह पंक्तियां हिंदी लोक जगत में सर्वाधिक चर्चित रही हैं. साथ ही उनकी लेखनी की चिरस्थायी स्मृति भी. कवि किशन सरोज का जन्म 19 जनवरी 1939 को जिले के बल्लिया में हुआ था. काफी समय से अस्वस्थ चल रहे किशन सरोज ने 8 जनवरी को अतिंम सांसें लीं.

इसे भी पढ़ें- एटा महोत्सव: 9 कवयित्रियों ने बांधा समा, CAA और NPR पर सुनाई कविताएं

400 से ज्यादा प्रेमगीत
"दाह छिपाने को अब हर पल गाना होगा,
हँसने वालों में रहकर मुस्काना होगा.
घूँघट की ओट किसे होगा सन्देह कभी,
रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया.
वह देखो! कुहरे में चन्दन-वन डूब गया".

किशन सरोज ने 400 से ज्यादा प्रेमगीत लिखे. 1986 में प्रकाशित उनका पहला गीत संग्रह ‘चंदन वन डूब गया’ खासा सराहा गया. दूसरे संग्रह के प्रकाशन में काफी लंबा अंतराल रहा, लेकिन 2006 में ‘बना न चित्र हवाओं का’ के गीत-गजल संग्रह को पाठकों और साहित्य प्रेमियों ने उत्सुकता से हाथों हाथ लिया. उनके लिखे गीत कादंबिनी, धर्मयुग, नया ज्ञानोदय, सरिता, नवनीत, गगनांचल, आदर्श, सार्थक, काव्या, पुनर्नवा आदि पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे.

इसे भी पढ़ें- एटा: कवियों के नाम रही शाम, हंसी के फुहारों से भर गया पंडाल

हिंदी संस्थान में साहित्य भूषण से किया गया था सम्मानित
पद्मश्री गोपालदास नीरज और डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित काव्य संग्रहों में भी किशन सरोज को प्रमुखता से स्थान मिला. 2004 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में साहित्य भूषण से सम्मानित किया गया. इसके अलावा भी असंख्य संस्थाओं ने उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया.

इंडियन एसोसिएशन द्वारा 1993 में यूरोप में प्रथम अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भी किशन सरोज ने सहभागिता की. 21 दिवसीय आयोजन के दौरान उन्होंने मैनचेस्टर और लंदन सहित अन्य कई शहरों में कवितापाठ किया.

बरेलीः काफी समय से अस्वस्थ चल रहे कवि किशन सरोज का 8 दिसंबर को देहांत हो गया. उनके जाने से साहित्य जगत को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है. गुरुवार को किशन सरोज का अंतिम संस्कार किया गया.

कवि किशन सरोज का देहांत.

कवि किशन सरोज
"दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें.
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया.
वह नगर, वे राजपथ, वे चौक-गलियां,
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया".

कवि किशन सरोज की 'तुम निश्चिन्त रहना' शीर्षक गीत की यह पंक्तियां हिंदी लोक जगत में सर्वाधिक चर्चित रही हैं. साथ ही उनकी लेखनी की चिरस्थायी स्मृति भी. कवि किशन सरोज का जन्म 19 जनवरी 1939 को जिले के बल्लिया में हुआ था. काफी समय से अस्वस्थ चल रहे किशन सरोज ने 8 जनवरी को अतिंम सांसें लीं.

इसे भी पढ़ें- एटा महोत्सव: 9 कवयित्रियों ने बांधा समा, CAA और NPR पर सुनाई कविताएं

400 से ज्यादा प्रेमगीत
"दाह छिपाने को अब हर पल गाना होगा,
हँसने वालों में रहकर मुस्काना होगा.
घूँघट की ओट किसे होगा सन्देह कभी,
रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया.
वह देखो! कुहरे में चन्दन-वन डूब गया".

किशन सरोज ने 400 से ज्यादा प्रेमगीत लिखे. 1986 में प्रकाशित उनका पहला गीत संग्रह ‘चंदन वन डूब गया’ खासा सराहा गया. दूसरे संग्रह के प्रकाशन में काफी लंबा अंतराल रहा, लेकिन 2006 में ‘बना न चित्र हवाओं का’ के गीत-गजल संग्रह को पाठकों और साहित्य प्रेमियों ने उत्सुकता से हाथों हाथ लिया. उनके लिखे गीत कादंबिनी, धर्मयुग, नया ज्ञानोदय, सरिता, नवनीत, गगनांचल, आदर्श, सार्थक, काव्या, पुनर्नवा आदि पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे.

इसे भी पढ़ें- एटा: कवियों के नाम रही शाम, हंसी के फुहारों से भर गया पंडाल

हिंदी संस्थान में साहित्य भूषण से किया गया था सम्मानित
पद्मश्री गोपालदास नीरज और डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित काव्य संग्रहों में भी किशन सरोज को प्रमुखता से स्थान मिला. 2004 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में साहित्य भूषण से सम्मानित किया गया. इसके अलावा भी असंख्य संस्थाओं ने उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया.

इंडियन एसोसिएशन द्वारा 1993 में यूरोप में प्रथम अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भी किशन सरोज ने सहभागिता की. 21 दिवसीय आयोजन के दौरान उन्होंने मैनचेस्टर और लंदन सहित अन्य कई शहरों में कवितापाठ किया.

Intro: प्रेम के महाकवि किशन सरोज अब इस दुनिया में नही रहे। उनके जाने से साहित्य जगत को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है। किशन सरोज आज पंचतत्व में विलीन हो गए।
82वें जन्मदिन से 11 दिन पहले चहेतों को कहा- अलविदा

Body:दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वे राजपथ, वे चौक-गलियां
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना
जी यह पंक्तियां कवि किशन सरोज जी की ही हैं और उनकी लेखनी की चिरस्थायी स्मृति भी। प्रेम के महाकवि सरोज ने 8 जनवरी 2020 की दोपहर अंतिम सांस ली। वे काफी समय से अस्वस्थ थे। बेटे को खोने के बाद से लगातार अस्वस्थ चल रहे किशन सरोज जी लोगों को पहचान भी नहीं पा रहे थे.....19 जनवरी 1939 को शहर से लगते गांव बल्लिया में जन्मे किशन सरोज जी का जन्म हुआ था।

दाह छिपाने को अब हर पल गाना होगा
हँसने वालों में रहकर मुस्काना होगा
घूँघट की ओट किसे होगा सन्देह कभी
रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया!
वह देखो! कुहरे में चन्दन-वन डूब गया।

यह कुहासे का कफ़न
यह जागता-सोता अँधेरा
प्राण-तरू पर स्वप्न के
अभिशप्त विहगों का बसेरा
यों न देखो प्रिय! इधर तुम,
एक ज्यों तसवीर गुमसुम,
अनवरत, अन्धी प्रतीक्षा के नियम की बात छोड़ो!
मिल सको तो अब मिलो, अगले जनम की बात छोड़ो!’

किशन सरोज जी ने 400 से ज्यादा प्रेमगीत लिखे। 1986 में प्रकाशित उनका पहला गीत संग्रह ‘चंदन वन डूब गया’ खासा सराहा गया। दूसरे संग्रह के प्रकाशन में हालांकि काफी लंबा अंतराल रहा लेकिन, 2006 में ‘बना न चित्र हवाओं का’ के गीत-गजल संग्रह को पाठकों और साहित्यप्रेमियों ने उत्सुकता से हाथों हाथ लिया। उनके लिखे गीत कादंबिनी, धर्मयुग, नया ज्ञानोदय, सरिता, नवनीत, गगनांचल, आदर्श, सार्थक, काव्या, पुनर्नवा आदि पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे। पद्मश्री गोपालदास नीरज और डा.शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित काव्य संग्रहों में भी किशन सरोज जी को प्रमुखता से स्थान मिला। 2004 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में साहित्य भूषण के सम्मान से पुरस्कृत किया। इसके अलावा भी असंख्य संस्थाओं ने उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया।
देश के जाने-माने कवि किशन सरोज के अंतिम संस्कार में पुलिस और प्रशासन के किसी भी अफसर ने शामिल होने की जहमत नहीं उठाई ।

इंडियन एसोसिएशन द्वारा 1993 में यूरोप में प्र्थम अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भी किशन सरोज जी ने सहभागिता की। 21 दिवसीय आयोजन के दौरान उन्होंने मैनचेस्टर और लंदन सहित कई शहरों में कवितापाठ किया।

...... ओ लेखनी विश्राम कर अब और यात्रायें नहीं
मंगल कलश पर काव्य के अब शब्द के स्वस्तिक न रच
अक्षम समीक्षायें परख सकतीं न कवि का झूठ सच
लिख मत गुलाबी पंक्तियाँ गिन छ्न्द, मात्रायें नहीं
बन्दी अधेंरे कक्ष में अनुभूति की शिल्पा छुअन
वादों विवादों में घिरा साहित्य का शिक्षा सदन
अनगिन प्रवक्ता हैं यहाँ बस छात्र छात्रायें नहीं.......

बाइट- पवन सक्सेना, स्थानीय

सुनील सक्सेना
बरेली।
Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.