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एक अरसे से विकास का इंतजार, ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर - घंघोरा-घंघोरी गांव में नहीं हुआ विकास कार्य

बरेली जिले में ईटीवी भारत की टीम घंघोरा-घंघोरी गांव में विकास कार्यों की जमीनी हकीकत देखने पहुंची. दौरे में यह देखने को मिला कि गांव के हालात बद से बदतर हैं. पंचवर्षीय योजना में गांव की सरकार ने ग्रामीणों के लिए कुछ नहीं किया. सरकारी योजनाएं यहां जमीन पर नहीं उतरीं. यहां गांव की जो तस्वीर देखने को मिली, उसको देख कर तो ये लगा कि यहां गांव की सरकार ने तो कुछ किया ही नहीं.

घंघोरा-घंघोरी गांव में नहीं हुआ विकास कार्य
घंघोरा-घंघोरी गांव में नहीं हुआ विकास कार्य
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Published : Feb 9, 2021, 10:51 PM IST

बरेली: यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सरकार चुनाव को लेकर सभी तैयारियों को जल्द से जल्द पूर्ण करने में व्यस्त है. वहीं यूपी में पंयाचत चुनाव को देखते हुए पिछले पांच वर्षों में गांव की सरकार द्वारा किये गए कार्यों को देखने के लिए ईटीवी भारत ने भोजीपुरा ब्लॉक के घंघोरा-घंघोरी गांव का रुख किया. यहां ग्रामीण गांव में फैली गंदगी से परेशान हैं. सरकारी योजनाएं यहां पूरी तरह से पहुंच नहीं पाई हैं. गांव के रास्ते आज भी अपनी सूरत बदलने का इंतजार कर रहे हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में देखें घंघोरा-घंघोरी गांव का हाल.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में घंघोरा-घंघोरी गांव के विकास का हाल.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'स्वच्छ भारत मिशन' अभियान को आईना दिखाता बरेली जिले के भोजीपुरा ब्लॉक का घंघोरा-घंघोरी गांव जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस गांव के हालात बद से भी बदतर हैं. गांव के विकास को लेकर ग्रामीण खासे नाराज हैं. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इस गांव की सुध न ही गांव की सरकार ने, न जनप्रतिनिधियों ने और न ही सिस्टम चलाने का जिम्मा संभालने वाले अधिकारियों ने ली.

गंदगी से परेशान हैं हर ग्रामीण
घंघोरा-घंघोरी गांव में रास्ते पूरी तरह से जर्जर हैं. नालियां गंदगी से बजबजा रही हैं और सड़कों पर नालियों का गंदा पानी भरा है. यही नहीं गंदगी के अंबार के ढेर को (कूड़ा) गांव में देखा जा सकता है. यही कारण है कि ग्रामीण यहां गांव की सरकार से नाखुश हैं. मौका मिलने पर वह अपने मन की बात कहने में भी संकोच नहीं करते. गांव में ईटीवी भारत की टीम ने हर वर्ग से बात की और गांव के विकास का हाल जाना.

सामूहिक शौचालय में लगा रहता है ताला
गांव के विकास की अगर बात की जाए तो यहां पिछले 20 वर्ष में से 15 वर्ष तक तो गांव का प्रतिनिधित्व बतौर ग्राम प्रधान एक ही परिवार करता आया है. उसके बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसका ग्रामीण जिक्र करें. हालांकि उन्होंने बताया कि एक सामूहिक शौचालय गांव में बनाया गया है, जिसमें हर वक्त ताला लगा रहता है.

आंगनबाड़ी केंद्र के मुख्य द्वार पर भरा रहता है पानी
हालांकि ग्रामीणों ने बताया कि विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, लेकिन सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र जहां स्थित हैं, उसके मुख्य द्वार पर गंदगी से भरा एक नाला है, जहां कई बार हादसे होते-होते बचे हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि छोटे-छोटे बच्चे यहां आते हैं. एक-एक को बारी-बारी से संभालकर सड़क तक छोड़ते हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यहां कोई सुध नहीं लेता है, जबकि कई बार लिखित में समस्या से प्रधान समेत अन्य जिम्मेदारों को अवगत कराया गया है.

जनप्रतिनिधियों ने कभी नहीं ली गांव की सुध
ग्रामीण कहते हैं गांव में कई बार ऐसा हुआ है, जब ग्राम प्रधान या वार्ड मेंबर से लेकर बीडीसी सदस्यों व अफसरों से बात की गई कि गांव में कुछ सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सके, लेकिन उसके बाद भी जैसे कहीं कोई ध्यान नहीं देता.

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से नाखुश ग्रामीण
गांव के लोगों में सरकारी योजनाओं को लेकर नाराजगी है. उनका कहना है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि क्या-क्या योजनाएं हैं. लाभ मिलने की तो बात ही दूर है. कुछ ग्रामीणों ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि गांव में शौचालय बने हैं, लेकिन सभी के नहीं बने हैं. कई ग्रामीणों ने बताया कि वह बार-बार प्रधान से लेकर सेक्रेटरी तक के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें अभी भी शौचालय नसीब नहीं हुआ, जिसके बाद तंग आकर उन्होंने खुद ही अपने पैसे से शौचालय का निर्माण भी करा लिया.

छप्पर में रह रहे ग्रामीण, नहीं मिला स्कीम का लाभ
गांव में 'प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना' के तहत आवास बने, इसके लिए कई लोगों ने न जाने कितनी बार फॉर्म जमा किया, लेकिन इस योजना का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाया. गांव के ही रहने वाले कई लोगों ने बताया कि वह बेघर हैं. हालांकि जमीन का टुकड़ा उनके पास है, जिसमें वह गुमटी डालकर या छप्पर डालकर किसी तरह रहते हैं, लेकिन न शौचालय उनका बना न पक्का घर का सपना उनका पूर्ण हुआ.

गांव में नारकीय जीवन जीने को मजबूर लोग
एक बुजुर्ग महिला ने ईटीवी भारत की टीम को रोक कर अपना दर्द बयां किया. उन्होंने बताया कि रास्तों में बच्चों और बुजुर्गों का निकलना दूभर हो गया है. गांव की महिलाएं खासी गुस्से में हैं. गंदगी से बजबजाती नालियों को लेकर ग्रामीणों में खासा रोष है. गांव के युवाओं में इस बात का मलाल है कि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत तरह-तरह के निर्देश दिए जा रहे हैं. सरकारी कागजों में दावे किए जा रहे हैं. सरकार स्वच्छता अभियान चलाकर देश को स्वच्छ बनाने में लगी है, लेकिन उनके गांव में वह लोग सरकारी घोषणाओं से गुस्से में हैं.

आवारा गोवंशों से भी ग्रामीण परेशान
घंघोरा-घंघोरी गांव के लोगों का कहना है तो उनकी फसल भी ठीक से सुरक्षित नहीं हैं. वो कहते हैं कि गांव में गोशाला नहीं है. आवारा गोवंश खेती-किसानी ठीक से करने नहीं देते. अब तो गांव में भी ये आवारा गोवंश घुस आए हैं. बार-बार अफसरों की चौखट तक लोग पहुंचते हैं कि या तो गोशाला बने या इन्हें दूसरी जगह गोशाला में भेजा जाए ताकि ग्रामीण सुकून से रह सकें. यहां भी ग्रामीण इस बारे में लापरवाही पूर्ण रवैये के लिए प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी को जिम्मेदार मानते हैं.

बोले ग्रामीण, सोच समझकर चुनेंगे अपना प्रधान
यहां के हालात सुधरेंगे इस बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अब फिर एक बार त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव होने हैं और गांव में राजनीति गरमाने लगी है, लेकिन अब लोग समझ चुके हैं कि सिर्फ वादे करने के लिए लोग आएंगे, निभाना शायद उनके बस की बात नहीं है और वह जिस हाल में हैं उसी हाल में रहेंगे. कुछ ग्रामीण तो कहते हैं कि अब तो कुछ नहीं होगा, जैसे रह रहे हैं ऐसे ही रहना पड़ेगा. हालांकि वो फिर एक बार अपने लिए सही जनप्रतिनिधि चुनने की बात कर रहे हैं.

बरेली: यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सरकार चुनाव को लेकर सभी तैयारियों को जल्द से जल्द पूर्ण करने में व्यस्त है. वहीं यूपी में पंयाचत चुनाव को देखते हुए पिछले पांच वर्षों में गांव की सरकार द्वारा किये गए कार्यों को देखने के लिए ईटीवी भारत ने भोजीपुरा ब्लॉक के घंघोरा-घंघोरी गांव का रुख किया. यहां ग्रामीण गांव में फैली गंदगी से परेशान हैं. सरकारी योजनाएं यहां पूरी तरह से पहुंच नहीं पाई हैं. गांव के रास्ते आज भी अपनी सूरत बदलने का इंतजार कर रहे हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में देखें घंघोरा-घंघोरी गांव का हाल.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में घंघोरा-घंघोरी गांव के विकास का हाल.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'स्वच्छ भारत मिशन' अभियान को आईना दिखाता बरेली जिले के भोजीपुरा ब्लॉक का घंघोरा-घंघोरी गांव जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस गांव के हालात बद से भी बदतर हैं. गांव के विकास को लेकर ग्रामीण खासे नाराज हैं. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इस गांव की सुध न ही गांव की सरकार ने, न जनप्रतिनिधियों ने और न ही सिस्टम चलाने का जिम्मा संभालने वाले अधिकारियों ने ली.

गंदगी से परेशान हैं हर ग्रामीण
घंघोरा-घंघोरी गांव में रास्ते पूरी तरह से जर्जर हैं. नालियां गंदगी से बजबजा रही हैं और सड़कों पर नालियों का गंदा पानी भरा है. यही नहीं गंदगी के अंबार के ढेर को (कूड़ा) गांव में देखा जा सकता है. यही कारण है कि ग्रामीण यहां गांव की सरकार से नाखुश हैं. मौका मिलने पर वह अपने मन की बात कहने में भी संकोच नहीं करते. गांव में ईटीवी भारत की टीम ने हर वर्ग से बात की और गांव के विकास का हाल जाना.

सामूहिक शौचालय में लगा रहता है ताला
गांव के विकास की अगर बात की जाए तो यहां पिछले 20 वर्ष में से 15 वर्ष तक तो गांव का प्रतिनिधित्व बतौर ग्राम प्रधान एक ही परिवार करता आया है. उसके बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसका ग्रामीण जिक्र करें. हालांकि उन्होंने बताया कि एक सामूहिक शौचालय गांव में बनाया गया है, जिसमें हर वक्त ताला लगा रहता है.

आंगनबाड़ी केंद्र के मुख्य द्वार पर भरा रहता है पानी
हालांकि ग्रामीणों ने बताया कि विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, लेकिन सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र जहां स्थित हैं, उसके मुख्य द्वार पर गंदगी से भरा एक नाला है, जहां कई बार हादसे होते-होते बचे हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि छोटे-छोटे बच्चे यहां आते हैं. एक-एक को बारी-बारी से संभालकर सड़क तक छोड़ते हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यहां कोई सुध नहीं लेता है, जबकि कई बार लिखित में समस्या से प्रधान समेत अन्य जिम्मेदारों को अवगत कराया गया है.

जनप्रतिनिधियों ने कभी नहीं ली गांव की सुध
ग्रामीण कहते हैं गांव में कई बार ऐसा हुआ है, जब ग्राम प्रधान या वार्ड मेंबर से लेकर बीडीसी सदस्यों व अफसरों से बात की गई कि गांव में कुछ सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सके, लेकिन उसके बाद भी जैसे कहीं कोई ध्यान नहीं देता.

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से नाखुश ग्रामीण
गांव के लोगों में सरकारी योजनाओं को लेकर नाराजगी है. उनका कहना है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि क्या-क्या योजनाएं हैं. लाभ मिलने की तो बात ही दूर है. कुछ ग्रामीणों ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि गांव में शौचालय बने हैं, लेकिन सभी के नहीं बने हैं. कई ग्रामीणों ने बताया कि वह बार-बार प्रधान से लेकर सेक्रेटरी तक के चक्कर लगाते रहे, लेकिन उन्हें अभी भी शौचालय नसीब नहीं हुआ, जिसके बाद तंग आकर उन्होंने खुद ही अपने पैसे से शौचालय का निर्माण भी करा लिया.

छप्पर में रह रहे ग्रामीण, नहीं मिला स्कीम का लाभ
गांव में 'प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना' के तहत आवास बने, इसके लिए कई लोगों ने न जाने कितनी बार फॉर्म जमा किया, लेकिन इस योजना का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाया. गांव के ही रहने वाले कई लोगों ने बताया कि वह बेघर हैं. हालांकि जमीन का टुकड़ा उनके पास है, जिसमें वह गुमटी डालकर या छप्पर डालकर किसी तरह रहते हैं, लेकिन न शौचालय उनका बना न पक्का घर का सपना उनका पूर्ण हुआ.

गांव में नारकीय जीवन जीने को मजबूर लोग
एक बुजुर्ग महिला ने ईटीवी भारत की टीम को रोक कर अपना दर्द बयां किया. उन्होंने बताया कि रास्तों में बच्चों और बुजुर्गों का निकलना दूभर हो गया है. गांव की महिलाएं खासी गुस्से में हैं. गंदगी से बजबजाती नालियों को लेकर ग्रामीणों में खासा रोष है. गांव के युवाओं में इस बात का मलाल है कि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत तरह-तरह के निर्देश दिए जा रहे हैं. सरकारी कागजों में दावे किए जा रहे हैं. सरकार स्वच्छता अभियान चलाकर देश को स्वच्छ बनाने में लगी है, लेकिन उनके गांव में वह लोग सरकारी घोषणाओं से गुस्से में हैं.

आवारा गोवंशों से भी ग्रामीण परेशान
घंघोरा-घंघोरी गांव के लोगों का कहना है तो उनकी फसल भी ठीक से सुरक्षित नहीं हैं. वो कहते हैं कि गांव में गोशाला नहीं है. आवारा गोवंश खेती-किसानी ठीक से करने नहीं देते. अब तो गांव में भी ये आवारा गोवंश घुस आए हैं. बार-बार अफसरों की चौखट तक लोग पहुंचते हैं कि या तो गोशाला बने या इन्हें दूसरी जगह गोशाला में भेजा जाए ताकि ग्रामीण सुकून से रह सकें. यहां भी ग्रामीण इस बारे में लापरवाही पूर्ण रवैये के लिए प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी को जिम्मेदार मानते हैं.

बोले ग्रामीण, सोच समझकर चुनेंगे अपना प्रधान
यहां के हालात सुधरेंगे इस बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अब फिर एक बार त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव होने हैं और गांव में राजनीति गरमाने लगी है, लेकिन अब लोग समझ चुके हैं कि सिर्फ वादे करने के लिए लोग आएंगे, निभाना शायद उनके बस की बात नहीं है और वह जिस हाल में हैं उसी हाल में रहेंगे. कुछ ग्रामीण तो कहते हैं कि अब तो कुछ नहीं होगा, जैसे रह रहे हैं ऐसे ही रहना पड़ेगा. हालांकि वो फिर एक बार अपने लिए सही जनप्रतिनिधि चुनने की बात कर रहे हैं.

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