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बीते पांच वर्षों में इस ग्राम पंचायत में कितना हुआ विकास, सुनिए ग्रामीणों की जुबानी - villagers reaction on development works in gram panchayat

यूपी में पंचायत चुनाव का शंखनाद हो चुका है. वहीं बाराबंकी में भी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज है. जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए होने वाले इस चुनाव को लेकर खासी गहमागहमी रहती है. वहीं ईटीवी भारत की टीम ने पिछले पांच वर्षों में जिले के गांव धरती पुरवा और रतनपुर में क्या काम हुए इसकी पड़ताल की.

जिले के गांव धरती पुरवा और रतनपुर से ग्राउंड रिपोर्ट...
जिले के गांव धरती पुरवा और रतनपुर से ग्राउंड रिपोर्ट...
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Published : Jan 21, 2021, 9:45 AM IST

बाराबंकी: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर एक बार फिर सभी राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है. हर पांच वर्ष बाद होने वाले इन पंचायत चुनावों को विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए होने वाले इस चुनाव को लेकर खासी गहमागहमी रहती है. चुने गए सदस्यों का काम होता है कि वे अपने क्षेत्र का विकास करें. इसके लिए इनको समय-समय पर सरकारी फंड दिया जाता है. पिछले पांच वर्षों में क्या काम हुए इसकी ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की.

जिले के गांव धरती पुरवा और रतनपुर से ग्राउंड रिपोर्ट...

पंचायत चुनाव को लेकर बढ़ी गहमा गहमी
5 साल बाद एक बार फिर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है. प्रत्याशियों ने गांव-गांव जाना शुरु कर दिया है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में जा जाकर गांव और क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि चुनाव बीत जाने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि इन गांव वालों की सुधि नहीं लेता है.

तमाम गांव विकास से कोसों दूर
सच्चाई तो ये है कि अधिकांश गांव आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं. पिछले 2015 में हुए पंचायत चुनाव के बाद ग्रामीणों को उम्मीदें थीं कि उनके क्षेत्र का विकास होगा, लेकिन ग्रामीणों की उम्मीद पूरी नहीं हुई.

रियलिटी चेक में सामने आई सच्चाई
ऐसे ही एक गांव पाटमऊ के धरती पुरवा और रतनपुर का जब ईटीवी भारत ने रियलिटी चेक किया, तो जमीनी हकीकत सामने आ गई. हालांकि गांव में शौचालय बने हैं, लेकिन नाली, खडंजा और पेयजल की समस्या है. बरसात में गांव की गलियों में पानी भरने की समस्या से अवगत कराने के बाद भी जनप्रतिनिधियों ने कोई ध्यान नही दिया. गांव की सबसे बड़ी समस्या है गांव में बारात घर न होना. जिसके चलते गांव में किसी लड़की की शादी होने पर भारी समस्या होती है.

ग्रामीणों को एक बार फिर से उम्मीद
हमेशा ठगे जाने वाले ग्रामीणों को एक बार फिर उम्मीद है कि आने वाले चुनाव में उनका नया जनप्रतिनिधि क्षेत्र का विकास जरूर करेगा.

हर वर्ष विकास के लिए मिलता है फंड
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू होने के बाद पंचायतों को हर वर्ष लाखों रुपया फंड दिया जाता है, जिससे कि वे अपने क्षेत्र में विकास के कार्य करा सकें. हर ग्राम पंचायत में खुली बैठक किए जाने का प्रावधान है, जिसमें गांव के विकास कार्य तय किए जाते हैं, लेकिन तमाम गांव ऐसे हैं. जहां समय पर खुली बैठक नहीं की जाती. ग्राम पंचायतों में शिक्षा, निर्माण, स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, निर्माण और नियोजन जैसी समितियां गठित करने के नियम हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि ये सब महज कागजों पर ही होता है.

ग्राम पंचायत के कार्य
ग्राम पंचायतें अपने गांव में कृषि संबंधी, शिक्षा संबंधी, युवा कल्याण संबंधित, नलकूप की मरम्मत और रखरखाव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी, महिला एवं बाल विकास संबंधी, पशुधन विकास संबंधी, समस्त प्रकार की पेंशन, आवास, राशन की दुकान का आवंटन जैसे तमाम महत्वपूर्ण कार्य हैं.

निश्चय ही छोटे से छोटे गांव में चहुमुखी विकास करने की मंशा से पंचायती व्यवस्था लागू की गई थी, लेकिन बदलते वक्त में तमाम जनप्रतिनिधियों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीरता न दिखाने से इन पंचायतों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है.

बाराबंकी: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर एक बार फिर सभी राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है. हर पांच वर्ष बाद होने वाले इन पंचायत चुनावों को विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए होने वाले इस चुनाव को लेकर खासी गहमागहमी रहती है. चुने गए सदस्यों का काम होता है कि वे अपने क्षेत्र का विकास करें. इसके लिए इनको समय-समय पर सरकारी फंड दिया जाता है. पिछले पांच वर्षों में क्या काम हुए इसकी ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की.

जिले के गांव धरती पुरवा और रतनपुर से ग्राउंड रिपोर्ट...

पंचायत चुनाव को लेकर बढ़ी गहमा गहमी
5 साल बाद एक बार फिर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है. प्रत्याशियों ने गांव-गांव जाना शुरु कर दिया है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में जा जाकर गांव और क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि चुनाव बीत जाने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि इन गांव वालों की सुधि नहीं लेता है.

तमाम गांव विकास से कोसों दूर
सच्चाई तो ये है कि अधिकांश गांव आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं. पिछले 2015 में हुए पंचायत चुनाव के बाद ग्रामीणों को उम्मीदें थीं कि उनके क्षेत्र का विकास होगा, लेकिन ग्रामीणों की उम्मीद पूरी नहीं हुई.

रियलिटी चेक में सामने आई सच्चाई
ऐसे ही एक गांव पाटमऊ के धरती पुरवा और रतनपुर का जब ईटीवी भारत ने रियलिटी चेक किया, तो जमीनी हकीकत सामने आ गई. हालांकि गांव में शौचालय बने हैं, लेकिन नाली, खडंजा और पेयजल की समस्या है. बरसात में गांव की गलियों में पानी भरने की समस्या से अवगत कराने के बाद भी जनप्रतिनिधियों ने कोई ध्यान नही दिया. गांव की सबसे बड़ी समस्या है गांव में बारात घर न होना. जिसके चलते गांव में किसी लड़की की शादी होने पर भारी समस्या होती है.

ग्रामीणों को एक बार फिर से उम्मीद
हमेशा ठगे जाने वाले ग्रामीणों को एक बार फिर उम्मीद है कि आने वाले चुनाव में उनका नया जनप्रतिनिधि क्षेत्र का विकास जरूर करेगा.

हर वर्ष विकास के लिए मिलता है फंड
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू होने के बाद पंचायतों को हर वर्ष लाखों रुपया फंड दिया जाता है, जिससे कि वे अपने क्षेत्र में विकास के कार्य करा सकें. हर ग्राम पंचायत में खुली बैठक किए जाने का प्रावधान है, जिसमें गांव के विकास कार्य तय किए जाते हैं, लेकिन तमाम गांव ऐसे हैं. जहां समय पर खुली बैठक नहीं की जाती. ग्राम पंचायतों में शिक्षा, निर्माण, स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, निर्माण और नियोजन जैसी समितियां गठित करने के नियम हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि ये सब महज कागजों पर ही होता है.

ग्राम पंचायत के कार्य
ग्राम पंचायतें अपने गांव में कृषि संबंधी, शिक्षा संबंधी, युवा कल्याण संबंधित, नलकूप की मरम्मत और रखरखाव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी, महिला एवं बाल विकास संबंधी, पशुधन विकास संबंधी, समस्त प्रकार की पेंशन, आवास, राशन की दुकान का आवंटन जैसे तमाम महत्वपूर्ण कार्य हैं.

निश्चय ही छोटे से छोटे गांव में चहुमुखी विकास करने की मंशा से पंचायती व्यवस्था लागू की गई थी, लेकिन बदलते वक्त में तमाम जनप्रतिनिधियों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीरता न दिखाने से इन पंचायतों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है.

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