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बाराबंकी: रोडवेज के संविदा चालकों-परिचालकों ने किया बसों का चक्का जाम, यात्री परेशान

यूपी के ​​​​​​बाराबंकी जिले में 25 सितम्बर को डिपो के संविदा चालकों और परिचालकों ने कार्य बहिष्कार कर बसों का चक्का जाम कर दिया. लोड फैक्टर कम होने से प्रोत्साहन भत्ते में की गई कटौती और श्रम कानूनों की अनदेखी से कर्मचारी नाराज हैं. तकरीबन 100 बसों का संचालन बंद होने से परेशान यात्रियों की भीड़ देख विभाग में हड़कम्प मच गया.

रोडवेज के संविदा कर्मचारियों ने किया बसों का चक्का जाम.
रोडवेज के संविदा कर्मचारियों ने किया बसों का चक्का जाम.
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Published : Sep 26, 2020, 11:27 AM IST

बाराबंकी: जिले में शुक्रवार को रोडवेज संविदा कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर चक्का जाम कर दिया. बताया जाता है कि लोड फैक्टर कम होने से प्रोत्साहन भत्ते में की गई कटौती और श्रम कानूनों की अनदेखी से जिले के कर्मचारी नाराज हैं. इसको लेकर 25 सितम्बर को रोडवेज डिपो के संविदा चाालक और परिचालकों ने कार्य बहिष्कार कर बसों का चक्का जाम कर दिया. तकरीबन 100 बसों का संचालन बंद होने से विभाग में हड़कम्प मच गया. एआरएम ने आंदोलित कर्मचारियों को समझाने का प्रयास किया और उनके ऊपर विभागीय कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी गई. इसके बावजूद कर्मचारी बिना मांगे पूरी हुए काम पर लौटने को राजी नहीं हुए. आंदोलित कर्मचारियों ने कहा कि घरों से यात्रियों के नहीं निकलने में उनकी क्या गलती है, जो उनका प्रोत्साहन काटा जा रहा है. उनका कहना है कि बार आंदोलन के बाद भी आज तक इनके लिए कोई संविदा नीति नहीं बन पाई है.

जानकारी के अनुसार, बाराबंकी डिपो के संविदा चालक और परिचालकों ने दो दिन पहले अपनी समस्याओं को लेकर एआरएम आरएस वर्मा को अवगत कराते हुए आंदोलन की धमकी दी थी, लेकिन विभाग ने इसे गम्भीरत से नहीं लिया. इसका नतीजा ये हुआ कि शुक्रवार को चालकों और परिचालकों ने कार्य बहिष्कार करते हुए तकरीबन 124 बसों का चक्का जाम कर दिया. अचानक इस फैसले से डिपो के अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए. यात्रियों की परेशानी देखते हुए एआरएम ने आंदोलित कर्मचारियों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बिना मांगे पूरी हुए कर्मचारी काम पर लौटने को राजी नहीं हुए.

यूनियन अध्यक्ष तनवीर सिद्दीकी ने आरोप लगाया कि 50 फीसदी से कम लोड फैक्टर होने पर हर महीने उनके वेतन से तीन हजार रुपयों की कटौती की जा रही है. जबकि घरों से यात्रियों के नहीं निकलने पर उनका कोई दोष नहीं है. यही नहीं, डिपो की इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग मशीनें खराब पड़ी हैं. यूनियन उपाध्यक्ष विवेक श्रीवास्तव का आरोप है कि पिछले दो वर्षों से उनकी वेतन शेड्यूल लंबित है, जिसे पूरा नहीं किया जा रहा है और न ही संविदा नीति बन पाई है. श्रम कानूनों के तहत न्यूनतम वेतन की भी अनदेखी की जा रही है.

बाराबंकी: जिले में शुक्रवार को रोडवेज संविदा कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर चक्का जाम कर दिया. बताया जाता है कि लोड फैक्टर कम होने से प्रोत्साहन भत्ते में की गई कटौती और श्रम कानूनों की अनदेखी से जिले के कर्मचारी नाराज हैं. इसको लेकर 25 सितम्बर को रोडवेज डिपो के संविदा चाालक और परिचालकों ने कार्य बहिष्कार कर बसों का चक्का जाम कर दिया. तकरीबन 100 बसों का संचालन बंद होने से विभाग में हड़कम्प मच गया. एआरएम ने आंदोलित कर्मचारियों को समझाने का प्रयास किया और उनके ऊपर विभागीय कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी गई. इसके बावजूद कर्मचारी बिना मांगे पूरी हुए काम पर लौटने को राजी नहीं हुए. आंदोलित कर्मचारियों ने कहा कि घरों से यात्रियों के नहीं निकलने में उनकी क्या गलती है, जो उनका प्रोत्साहन काटा जा रहा है. उनका कहना है कि बार आंदोलन के बाद भी आज तक इनके लिए कोई संविदा नीति नहीं बन पाई है.

जानकारी के अनुसार, बाराबंकी डिपो के संविदा चालक और परिचालकों ने दो दिन पहले अपनी समस्याओं को लेकर एआरएम आरएस वर्मा को अवगत कराते हुए आंदोलन की धमकी दी थी, लेकिन विभाग ने इसे गम्भीरत से नहीं लिया. इसका नतीजा ये हुआ कि शुक्रवार को चालकों और परिचालकों ने कार्य बहिष्कार करते हुए तकरीबन 124 बसों का चक्का जाम कर दिया. अचानक इस फैसले से डिपो के अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए. यात्रियों की परेशानी देखते हुए एआरएम ने आंदोलित कर्मचारियों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बिना मांगे पूरी हुए कर्मचारी काम पर लौटने को राजी नहीं हुए.

यूनियन अध्यक्ष तनवीर सिद्दीकी ने आरोप लगाया कि 50 फीसदी से कम लोड फैक्टर होने पर हर महीने उनके वेतन से तीन हजार रुपयों की कटौती की जा रही है. जबकि घरों से यात्रियों के नहीं निकलने पर उनका कोई दोष नहीं है. यही नहीं, डिपो की इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग मशीनें खराब पड़ी हैं. यूनियन उपाध्यक्ष विवेक श्रीवास्तव का आरोप है कि पिछले दो वर्षों से उनकी वेतन शेड्यूल लंबित है, जिसे पूरा नहीं किया जा रहा है और न ही संविदा नीति बन पाई है. श्रम कानूनों के तहत न्यूनतम वेतन की भी अनदेखी की जा रही है.

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