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बाराबंकी: महज दाल-रोटी तक ही सीमित है कुम्हारों की आय, मेहनत के एवज में नहीं मिल रहा फायदा - बाराबंकी में कुम्हारों की स्थिति दयनीय

कुम्हारों को नहीं मिल पा रहा उनकी मेहनत का सही दाम. कुम्हारों को नहीं मिल रहा बढ़ावा. परिवार चलाने भर की हो रही कमाई, मगर नहीं मिल पा रहा ज्यादा फायदा.

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आय को लेकर परेशान हैं कुम्हार.
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Published : Dec 14, 2019, 10:57 AM IST

बाराबंकी: मिट्टी से कलाकृति और बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की स्थिति दयनीय हो गई है. महज दाल रोटी कमाने में ही एड़ी चोटी का जोर लग रहा है. कुम्हार यानी मिट्टी का राजा आज दाने-दाने को मोहताज है. वह बमुश्किल अपना परिवार चला पाता है. सरकार माटी से जुड़े इन लोगों को आखिर कब करेगी मदद यह एक बड़ा सवाल है. मिट्टी खरीदने से लेकर उसके बर्तन बनाने और साज-सज्जा में लगे खर्च और मेहनत के एवज में इन कुम्हारों को बस परिवार चलाने भर का ही फायदा मिलता है.

कुम्हार हैं परेशान
बाराबंकी में शनिवार को ईटीवी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों से मिलने पहुंचा. कुम्हारों ने बताया कि मृदा प्रदूषण के कारण अच्छी मिट्टी मिलना मुश्किल हो गई है. वहीं जब मिट्टी मिलती भी है तो उसके मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं.

नहीं मिल रही सही लागत
कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते हैं मगर उसको सुंदर और आकृति तक पहुंचाने में जितनी मेहनत और खर्च लगती है उसका ज्यादा लाभ उन्हें नहीं मिल पाता. बर्तनों के बेचने के बाद उन्हें बहुत कम मुनाफा मिलता है, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण बमुश्किल हो पाता है. ऐसे में वह केवल कार्य करने के लिए और अपना पेट पालने के लिए, अपने इस पैतृक कार्य को करने को मजबूर हो जाते हैं.

आय को लेकर परेशान हैं कुम्हार.

कुम्हारों को नहीं मिल रहा बढ़ावा
इन कुम्हारों को जैसे ही कुछ और करने का मौका मिलता है, फिर वह कारोबार बंद कर देते हैं. अब समस्या इस बात की है कि अगर इसी तरीके से कुम्हारों की उपेक्षा होती रही तो चाहते हुए भी हम मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा नहीं दे पाएंगे. इससे प्लास्टिक बर्तनों के कारोबार को बढ़ावा मिलेगा.

पर्यावरण को हो रहा नुकसान
कुम्हारों की स्थिति यह है कि चारों तरफ प्लास्टिक के बाजार नजर आते हैं और हम सभी ज्यादातर प्लास्टिक का ही सामान खरीदते हैं, जबकि वह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है. थोड़े से सस्ते की लालच में हम जहां अपने जीवन को खतरे में डालते हैं, वहीं पर्यावरण को प्रदूषित कर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी भयानक समस्या उत्पन्न करते हैं.

इन सभी मुश्किलों से बचने के लिए मिट्टी के बर्तनों की तरफ लौटना जरूरी है. इससे हमारे स्वास्थ्य और प्रकृति दोनों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा. प्लास्टिक से निवारण के लिए ही इस समय पूरा विश्व एकजुट होने की बात कह रहा है क्योंकि प्लास्टिक के खतरे से पूरी दुनिया परिचित है.


इसे भी पढ़ें- प्रयागराज: मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है कुम्हारों की उम्मीद

बाराबंकी: मिट्टी से कलाकृति और बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की स्थिति दयनीय हो गई है. महज दाल रोटी कमाने में ही एड़ी चोटी का जोर लग रहा है. कुम्हार यानी मिट्टी का राजा आज दाने-दाने को मोहताज है. वह बमुश्किल अपना परिवार चला पाता है. सरकार माटी से जुड़े इन लोगों को आखिर कब करेगी मदद यह एक बड़ा सवाल है. मिट्टी खरीदने से लेकर उसके बर्तन बनाने और साज-सज्जा में लगे खर्च और मेहनत के एवज में इन कुम्हारों को बस परिवार चलाने भर का ही फायदा मिलता है.

कुम्हार हैं परेशान
बाराबंकी में शनिवार को ईटीवी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों से मिलने पहुंचा. कुम्हारों ने बताया कि मृदा प्रदूषण के कारण अच्छी मिट्टी मिलना मुश्किल हो गई है. वहीं जब मिट्टी मिलती भी है तो उसके मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं.

नहीं मिल रही सही लागत
कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते हैं मगर उसको सुंदर और आकृति तक पहुंचाने में जितनी मेहनत और खर्च लगती है उसका ज्यादा लाभ उन्हें नहीं मिल पाता. बर्तनों के बेचने के बाद उन्हें बहुत कम मुनाफा मिलता है, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण बमुश्किल हो पाता है. ऐसे में वह केवल कार्य करने के लिए और अपना पेट पालने के लिए, अपने इस पैतृक कार्य को करने को मजबूर हो जाते हैं.

आय को लेकर परेशान हैं कुम्हार.

कुम्हारों को नहीं मिल रहा बढ़ावा
इन कुम्हारों को जैसे ही कुछ और करने का मौका मिलता है, फिर वह कारोबार बंद कर देते हैं. अब समस्या इस बात की है कि अगर इसी तरीके से कुम्हारों की उपेक्षा होती रही तो चाहते हुए भी हम मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा नहीं दे पाएंगे. इससे प्लास्टिक बर्तनों के कारोबार को बढ़ावा मिलेगा.

पर्यावरण को हो रहा नुकसान
कुम्हारों की स्थिति यह है कि चारों तरफ प्लास्टिक के बाजार नजर आते हैं और हम सभी ज्यादातर प्लास्टिक का ही सामान खरीदते हैं, जबकि वह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है. थोड़े से सस्ते की लालच में हम जहां अपने जीवन को खतरे में डालते हैं, वहीं पर्यावरण को प्रदूषित कर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी भयानक समस्या उत्पन्न करते हैं.

इन सभी मुश्किलों से बचने के लिए मिट्टी के बर्तनों की तरफ लौटना जरूरी है. इससे हमारे स्वास्थ्य और प्रकृति दोनों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा. प्लास्टिक से निवारण के लिए ही इस समय पूरा विश्व एकजुट होने की बात कह रहा है क्योंकि प्लास्टिक के खतरे से पूरी दुनिया परिचित है.


इसे भी पढ़ें- प्रयागराज: मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है कुम्हारों की उम्मीद

Intro: बाराबंकी , 11 दिसंबर। मिट्टी से कलाकृति और बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की स्थिति है दयनीय. महज दाल रोटी कमाने में ही एड़ी चोटी का लग रहा है जोर. कुमार यानी मिट्टी का राजा आज दाने-दाने को है मोहताज बमुश्किल चला पाता है अपना परिवार. सरकार माटी से जुड़े इन लोगों को आखिर कब करेगी मदद! मिट्टी खरीदने से लेकर उसके बर्तन बनाने और साज-सज्जा में लगे खर्च और मेहनत के एवज में , बस की तरह परिवार चलाने भर का ही फायदा मिलता है. माटी से जुड़े इन लोगों को सचमुच मदद की जरूरत है क्योंकि यही तो है जो प्रकृति से जुड़े हैं. अगर इन को बढ़ावा मिलेगा तो मृदा प्रदूषण और प्रकृति दोनों को बचाया जा सकेगा.


Body: बाराबंकी में आज हम मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों से मिलने पहुंचे तो , उनका दुख और दर्द जाना. जहां एक तरफ मृदा प्रदूषण के कारण अच्छी मिट्टी मिलना मुश्किल हो गई है, वहीं जब मिट्टी मिलती भी है तो , उसके मूल्य बहुत ज्यादा है. जिससे जब वह मिट्टी के बर्तन बनाते हैं तो ,उसको सुंदर आकृति तक पहुंचाने में इतनी मेहनत और खर्च लग चुका होता है कि, बर्तनों के बेचने के बाद उन्हें बहुत कम मुनाफा मिलता है. जिससे उनके परिवार का भरण पोषण बमुश्किल हो पाता है. ऐसे में वह केवल कार्य करने के लिए और अपना पेट पालने के लिए ,अपने इस पैतृक कार्य को करने को मजबूर हो जाते हैं . जैसे ही उन्हें कुछ और करने का मौका मिलता है, फिर वह कारोबार बंद कर देते हैं. अब समस्या इस बात की है कि अगर इसी तरीके से कुम्हारों की उपेक्षा होती रही तो, चाहते हुए भी हम मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा नहीं दे पाएंगे, जिससे प्लास्टिक बर्तनों के कारोबार को बढ़ावा मिलेगा.
हमने जब बात कुम्हारों से बात की तो उन्होंने बताया कि, बहुत मेहनत से हम लोग काम करते हैं, लेकिन इससे किसी भी प्रकार का मुनाफा नहीं हो पाता है, जिसके कारण हम केवल दाल और रोटी का ही प्रबंध कर पाते हैं.


आज की स्थिति यह है कि, चारों तरफ प्लास्टिक के बाजार नजर आते हैं, और हम सभी ज्यादातर प्लास्टिक का ही सामान खरीदते हैं, जबकि वह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है . थोड़े से सस्ते की लालच में हम जहां अपने जीवन को खतरे में डालते हैं , वहीं पर्यावरण को प्रदूषित कर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी भयानक समस्या उत्पन्न करते हैं. इन सभी से यदि बचना है तो, हमें मिट्टी के बर्तनों की तरफ लौटना होगा. क्योंकि यही तो है, जिससे हमारे स्वास्थ्य और प्रकृति दोनों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं है . आने वाले समय में यदि हम मिट्टी के बने उत्पादों का प्रयोग करेंगे तभी हम सचमुच धरती मां के लिए भी कुछ कर पाएंगे.
प्लास्टिक से निवारण के लिए ही इस समय पूरा विश्व एकजुट होने की बात कह रहा है क्योंकि प्लास्टिक के खतरे से पूरी दुनिया परिचित है.





Conclusion: कुल मिलाकर जब तक हम कुम्हारों की स्थानीय स्थिति को सुधारने की दिशा में पहल नहीं करेंगे, तब तक हम ना तो पर्यावरण की सुरक्षा कर पाएंगे ,और ना ही अपने स्वास्थ्य की. इसलिए सबसे जरूरी है कि, माटी के इन लालों की दुर्दशा को सुधारने की दिशा में कार्य करें.




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1- मोहम्मद इलियास, कुम्हार ,बाराबंकी

2- हसीन बानो , कुम्हार , देवा , बाराबंकी



रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907
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