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बाराबंकी: यहां खास ढंग से सजाई गई होलिका दहन, लोेगों ने दिया एकता का संदेश

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Published : Mar 10, 2020, 4:56 AM IST

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में होलिका दहन की खास तैयारी की गई. लोगों ने होलिका दहन के लिए खास तरीके से होलिका को सजाया. साथ ही लोगों ने मिलकर होलिका दहन कर एक दूसरे को रंग गुलाल लगाया.

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होलिका दहन के बाद दिया गया एकता का संदेश.

बाराबंकी: होलिका दहन को लेकर विशेष तैयारियां की जाती हैं, लेकिन बाराबंकी में कई स्थानों पर कुछ खास ढंग से होलिका सजाई जाती हैं. पिछले कई वर्षों से परंपरागत रूप से इन होलिकाओं को फूल-मालाओं से सजाया जाता है. सुबह से ही लोगों में होलिका दहन को लेकर खासा उत्साह रहता है. खास बात ये है कि कई स्थानों पर होलिका दहन के मौके पर साम्प्रदायिक एकता भी देखने को मिलती है. लोग मिल-जुलकर होलिका दहन करते हैं और होली मनाते हैं.

होलिका दहन के बाद दिया गया एकता का संदेश.
जिले में शायद ही कोई चौराहा हो, जहां होलिका दहन का प्रबंध न किया गया हो. परंपरागत रूप से इन चौराहों पर लोग खास ढंग से फूल-मालाओं से होलिका सजाते हैं और फिर शुभ मुहूर्त पर होलिका का दहन किया जाता है. पौराणिक मान्यता है कि दानव राज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उनका पुत्र प्रहलाद विष्णु भगवान के सिवा किसी अन्य की पूजा नहीं करता तो वह क्रोधित हो उठा. उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, ताकि प्रह्लाद आग में जल जाए. होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती, लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा. होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ.

इस घटना की याद में होली के एक दिन पहले होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं. नगर के सत्यप्रेमीनगर, नागेश्वरनाथ धाम, पीरबटावन, संतोषी माता मंदिर तिराहा, पैसार, धनोखर समेत नगर के हर चौराहे पर होलिकाएं सजाई जाती हैं. सुबह से ही लोगों में इसके प्रति खासा उत्साह रहता है. शुभ मुहूर्त पर पूरे विधि विधान से होलिका दहन होता है और फिर लोग होली खेलते हैं.

इसे भी पढ़ें- सीएम योगी ने गोरखनाथ मंदिर में किया रुद्राभिषेक, गायों को खिलाया गुड़-चना

बाराबंकी: होलिका दहन को लेकर विशेष तैयारियां की जाती हैं, लेकिन बाराबंकी में कई स्थानों पर कुछ खास ढंग से होलिका सजाई जाती हैं. पिछले कई वर्षों से परंपरागत रूप से इन होलिकाओं को फूल-मालाओं से सजाया जाता है. सुबह से ही लोगों में होलिका दहन को लेकर खासा उत्साह रहता है. खास बात ये है कि कई स्थानों पर होलिका दहन के मौके पर साम्प्रदायिक एकता भी देखने को मिलती है. लोग मिल-जुलकर होलिका दहन करते हैं और होली मनाते हैं.

होलिका दहन के बाद दिया गया एकता का संदेश.
जिले में शायद ही कोई चौराहा हो, जहां होलिका दहन का प्रबंध न किया गया हो. परंपरागत रूप से इन चौराहों पर लोग खास ढंग से फूल-मालाओं से होलिका सजाते हैं और फिर शुभ मुहूर्त पर होलिका का दहन किया जाता है. पौराणिक मान्यता है कि दानव राज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उनका पुत्र प्रहलाद विष्णु भगवान के सिवा किसी अन्य की पूजा नहीं करता तो वह क्रोधित हो उठा. उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, ताकि प्रह्लाद आग में जल जाए. होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती, लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा. होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ.

इस घटना की याद में होली के एक दिन पहले होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं. नगर के सत्यप्रेमीनगर, नागेश्वरनाथ धाम, पीरबटावन, संतोषी माता मंदिर तिराहा, पैसार, धनोखर समेत नगर के हर चौराहे पर होलिकाएं सजाई जाती हैं. सुबह से ही लोगों में इसके प्रति खासा उत्साह रहता है. शुभ मुहूर्त पर पूरे विधि विधान से होलिका दहन होता है और फिर लोग होली खेलते हैं.

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