बाराबंकी: जब पति की आंखें चली गईं तो परिवार पर ऐसी मुसीबत आई कि खाने की मोहताजी हो गई, बच्चों की पढ़ाई रुक गई. हालात बदतर होने लगे तो पत्नी ने थाम लिया पति का ई-रिक्शा. इसके लिए पहले खुद से लड़ी, हिम्मत आई तो हौसला बढ़ा और फिर तो मिसाल ही बन गई. यूपी के बाराबंकी की नीरा 2 साल से ई-रिक्शा चलाकर परिवार की गाड़ी चला रही हैं. अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं. ई रिक्शा की किस्त भर रही हैं.
नीरा देवी फतेहपुर तहसील के हसनपुर टांडा गांव की रहने वाली हैं. दो साल पहले इनके पति नरेंद्र कुमार की आंखें तेज बुखार आने से खराब हो गईं. घर में कोई और कमाने वाला था नहीं. तब घर की जिम्मेदारी नीरा पर आ गई. दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. आठ वर्षीय बेटा आदित्य जो कक्षा 3 में पढ़ता है और 6 वर्षीय बेटी ललिता कक्षा दो में पढ़ती है. लिहाजा नीरा ने खुद घर की गाड़ी खींचने की ठानी. पहले कुछ दिनों तक मजदूरी कर परिवार चलाया, लेकिन जब बात नहीं बनी तो फिर पति का ई-रिक्शा चलाना शुरू किया. औरत होकर रिक्शा चलाने के सवाल पर नीरा बेबाकी से जवाब देती हैं. नीरा कहती हैं मेहनत, ईमानदारी और स्वाभिमान के साथ काम करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.
हिम्मत और मेहनत पर पूरा भरोसा
पति नरेंद्र ने यह रिक्शा अपने लिए खरीदा था. उन्होंने किसी तरह 50 हजार रुपये इकट्ठा किये फिर बैंक से एक लाख 65 हजार रुपये का लोन कराकर ई-रिक्शा खरीदा. इसकी हर महीने 6 हजार रुपये की किस्त अदा करनी थी, लेकिन इसी बीच उसकी आंखें चली गईं. तब घर के हालात देख पत्नी नीरा ने घर की गृहस्थी की गाड़ी की स्टेयरिंग सम्भाल ली. नीरा को अपनी हिम्मत और मेहनत पर पूरा भरोसा है. हौसला और आत्मविश्वास ऐसा कि नीरा के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं. इनका कहना है कि हिम्मत हो तो ऊपर वाला सब पूरा करता है.