बाराबंकी: यूं तो मछली पालन का काम परंपरागत रूप से पूरे देश में होता है, लेकिन अनोखी तकनीक और कम लागत का प्रयोग कर बाराबंकी का एक किसान हर वर्ष खासा मुनाफा कमा रहा है. मछली पालन के लिए खास ढंग से डिजाइन किया हुआ यह सिस्टम आज दूसरे किसानों के लिए रोल मॉडल बन रहा है. भारत सरकार ने बाराबंकी के इस अनोखे सिस्टम को मान्यता देते हुए इसे अपनी 'नीली क्रांति योजना में शामिल किया है.
परंपरागत खेती से हटकर परवेज की अनोखी सोच
स्नातक परवेज खान ने नौकरी करने की बजाय आत्मनिर्भर बनकर कुछ अलग करने की सोची. घर में खेती होती थी लिहाजा खेती में ही कुछ नया करने की ठानी. पहले पोल्ट्री में हाथ आजमाया. अच्छी कामयाबी नहीं मिली तो फिशरीज की तरफ रुझान किया. शुरुआत में ट्रेडिशनल तरीका अपनाया. फिर बाराबंकी के जहांगीराबाद में साल 2013 में टैंक सिस्टम लगाकर मछली पालने की नई तकनीक की स्थापना की.
38 सीमेंटेड टैंकों वाला अनोखा फार्म
डेढ़ एकड़ में फैला यह फिशरी फार्म अपने आप में अनूठा है. आधे एकड़ में टैंक बने हुए हैं. बाकी जगह में 6 कच्चे तालाब, जनरेटर और कर्मचारियों के रुकने का स्थान है. मछली पालन के लिए 38 सीमेंटेड टैंक हैं. जिनकी गहराई 5 फुट है. इनकी दीवारें 9 इंच मोटी हैं. दीवारों की मजबूती के लिए बीच-बीच में पिलर दिए गए हैं. टैंकों के अंदर फिल्टरेशन सिस्टम लगा है, जो पानी को फिल्टर करता है. पानी बदलने के लिए एक नलकूप से सभी टैंकों में पानी भरा जाता है. खास ये कि जितना पानी भरा जाता है, उतना ही निकाला जाता है. इसके लिए टैंकों के निचले हिस्से में लगे वॉल्वों का प्रयोग किया जाता है.
अनोखा है फिल्टरेशन सिस्टम
इनका फिल्टरेशन सिस्टम यूनिक है. सीमेंटेड टैंकों से निकला पानी बारी-बारी से नीचे बने 6 कच्चे तालाबों में जाता है और फिर हर तालाब से साफ होता है. शुद्ध पानी एक तालाब में इकट्ठा हो जाता है और अशुद्धियां निकल जाती हैं. फिल्टर हुए शुद्ध पानी को फिर से प्रयोग में लाया जाता है.
कम पानी से ज्यादा उत्पादन
परवेज ने बताया कि एक क्यूबिक मीटर पानी मे 100 से 110 मछली के बच्चे डाले जाते हैं और उत्पादन 40 से 50 किलो होता है. सारे टैंकों से साल भर में 90 से 110 टन मछली का उत्पादन हो जाता है. परम्परागत ढंग से किये जाने वाले मछली पालन की अपेक्षा टैंक सिस्टम से उत्पादन कई गुना ज्यादा है और पानी भी कम लगता है. उन्होंने बताया कि इस सिस्टम में जहां महज 22 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, वहीं परम्परागत ढंग से इतने उत्पादन में 8 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती.
पंगेशियस मछली का उत्पादन
परवेज अपने इस प्रोजेक्ट में पंगेशियस मछली का उत्पादन करते हैं. इसके पीछे इनका मानना है कि यह मछली बहुत जल्दी बढ़ती है. महज 6-7 महीने में 600 ग्राम की हो जाती है. दूसरी मछलियों के मुकाबले इनमे पतले कांटे कम होते हैं. लिहाजा बाजार में इसकी डिमांड भी ज्यादा है. इसमें रोग नियंत्रक क्षमता अधिक होती है. सबसे खास बात यह कि ये मछली पानी के अलावा हवा में भी सांस ले सकती है. यही वजह है कि कम जगह में ज्यादा संख्या में होने पर भी ये जिंदा रहती हैं.
किसानों के लिए अच्छा विकल्प
मछली उत्पादन कर हर वर्ष खासा मुनाफा कमा रहे परवेज का कहना है कि परम्परागत खेती से ऊब रहे किसानों के लिए मछली पालन एक अच्छा विकल्प है. ये फायदे का धंधा है और किसानों को इस ओर जाना चाहिए. खासकर यूपी में मछली का धंधा ज्यादा लाभकारी है. क्योंकि अभी भी बाहर के कई प्रदेशों से यूपी में मछली मंगाई जाती है.
स्वदेशी प्रोजेक्ट बनाकर आत्मनिर्भर हुए परवेज
सरकारें लगातार युवाओं को स्वदेशी अपनाकर आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित कर रही हैं. परवेज का कहना है कि ऐसे स्वदेशी प्रोजेक्टों के जरिये युवा न केवल स्वावलम्बी हो सकते हैं, बल्कि सरकार की मंशा को भी पूरा कर सकते हैं.
भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट को परियोजना में किया शामिल
बाराबंकी के इस प्रोजेक्ट की सफलता को देखते हुए भारत सरकार ने इसे 'नीली क्रांति योजना' में शामिल किया है. परवेज के इस प्रोजेक्ट से उत्पादन और लाभ को देखते हुए तमाम किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं.
दूर-दूर से तकनीक सीखने आते हैं लोग
मछली पालन की ओर आकर्षित हो रहे उत्तर प्रदेश के ही नहीं, बल्कि दूसरे प्रदेशों के लोग जहांगीराबाद स्थित देश के पहले अनोखे प्रोजेक्ट को देखने और तकनीक सीखने आ रहे हैं.
रिवर्सेबल एक्वाकल्चर सिस्टम बेस्ड पर आधारित पक्के टैंकों के इस प्रोजेक्ट से न केवल स्वस्थ मछली का उत्पादन होता है, बल्कि इससे पानी की बर्बादी भी नहीं होती.
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