ETV Bharat / state

बाराबंकी : नेबलेट के पूर्व प्रधानाचार्य जलील यार खान की कोरोना से मौत

यूपी के जनपद बाराबंकी में नेबलेट इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रहे जलील यार खां वारसी की बुधवार रात कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई. 17 जुलाई को जलील यार खां को लेवल थ्री के अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

जलील यार खान वारसी
जलील यार खान वारसी
author img

By

Published : Jul 25, 2020, 9:56 PM IST

बाराबंकी : जनपद बाराबंकी के मशहूर नेबलेट इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रहे जलील यार खान वारसी की कोरोना संक्रमण के चलते बिते दिन मौत हो गई. 17 जुलाई को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर जलील यार खां को लेवल थ्री के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां बुधवार रात जलील यार खान की मौत हो गई. उनकी मौत की खबर सुनकर सभी स्तब्ध हैं. उनके पढ़ाए हजारों शागिर्द और जिलेवासियों में खासा दुख है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…

हरदिल अजीज और हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखने वाले जलील यार खां वारसी मूल रूप से बरेली शरीफ के रहने वाले थे. दो फरवरी सन 1941 को जन्मे जलील यार खान ने शुरुआती शिक्षा बरेली से ग्रहण कर उन्होंने वही से उच्च शिक्षा भी ग्रहण की. शिक्षण कार्य में रुचि के चलते एमए और बीएड किया. यहां के देवां शरीफ में हाजी वारिस अली शाह के जबरदस्त मुरीद थे. जिसके चलते वह बाराबंकी आ गए.

1988 में कॉलेज के प्रिंसिपल बना दिए गए

यहां के अजीमुद्दीन अशरफ इस्लामिया इंटर कॉलेज यानी नेबलेट कॉलेज में दिसम्बर 1971 को बतौर उर्दू शिक्षक इनको नियुक्ति मिल गई. अपनी मेहनत और लगन से जल्द ही जलील यार खान सबके अजीज हो गए. वर्ष 1988 में ये कॉलेज के प्रिंसिपल बना दिए गए. अपने कार्यकाल में इन्होंने कॉलेज को तमाम ऊंचाइयां दी. कॉलेज के अनुशासन को लेकर इनकी खास पहचान रही. 13 वर्ष की बड़ी सेवा देते हुए जलील यार खान वर्ष 2001 में रिटायर्ड हो गए. नौकरी से ये भले ही रिटायर्ड हो गए हो, लेकिन अपनी एक्टिविटी से ये कभी रिटायर नहीं हुए. इस दौरान ये तमाम सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते रहे.

बज्मे रहमत संस्था के भी थे अहम हिस्सा

बाराबंकी की मशहूर संस्था बज्मे रहमत के जलील यार खां वारसी दो दशकों से ज्यादा अहम सदस्य रहे और वर्ष 2018 में नायब सदर बने. उनके अंदर हमेशा एक शिक्षक होने का एहसास रहा. यही वजह रही कि रिटायरमेंट के बाद उन्होंने जनपद में ही सैनिक स्कूल और फिर किंग जार्ज जॉइन कर लिया और कई वर्षों तक सेवा की. शहर का ऐसा कोई भी साहित्यिक प्रोग्राम नहीं हुआ, जिसमें जलील यार खां की मौजूदगी न रही हो. साथ ही धार्मिक प्रोग्रामों में भी इनकी खासी भागेदारी रहती थी.

अंग्रेजी में की गई तकरीर होती थी यादगार

बारह रबिलुलव्वल के मौके पर निकलने वाले जुलूसे मोहम्मदी में जलील यार खां वारसी को हमेशा आगे चलते देखा गया. यही नहीं छाया चौराहे पर होने वाली इनकी अंग्रेजी की तकरीर को लोग आज भी याद करते हैं. जुलूस के दौरान छाया चौराहे पर जलील यार खां अंग्रेजी में हजरत मोहम्मद साहब की हिस्ट्री बयान करते थे. साथ ही लोगों को एकता और भाई चारे से रहने का संदेश देते थे.

परिवार पर टूटा गमों का पहाड़

जलील यार खान के तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं. दो वर्ष पहले पत्नी की मौत हो जाने के बाद से ये काफी टूट गए थे. बड़ी बेटी और दो बेटों की शादी हो चुकी है. एक बेटा विदेश में नौकरी करता है. जबकि दूसरा बेटा दिल्ली में रहते है. नौकरी काल तक किराए के मकान में रहे लेकिन बाराबंकी से इतना लगाव था कि उन्होंने लखपेड़ाबाग में नीम चौराहे के पास जमीन लेकर घर बनवाया. रिटायरमेंट के बाद उस घर में शिफ्ट हो गए.

कोरोना जांच के बाद अस्पताल में थे भर्ती

पिछले कुछ समय से ही जलील यार खान वारसी बीमार चल रहे थे. उन्हें डायबेटिक और ब्लडप्रेशर की परेशानी थी. कुछ दिनों पहले जब बेटे और बहू दिल्ली से लौटे, तब उस समय परिवार ने एहतियात के तौर पर कोविड-19 की जांच कराई थी. बीती 17 जुलाई को आई जलील यार खान वारसी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी. उसके बाद इन्हें लेवल थ्री अस्पताल मेयो में भर्ती कराया गया था. तबीयत में सुधार न होने के चलते बुधवार को इनकी मौत हो गई. देर रात निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत लखनऊ से इनके शव को लाकर स्वास्थ्यकर्मियों ने बाराबंकी के कमरियाबाग कब्रिस्तान में दफन कर दिया.

बाराबंकी : जनपद बाराबंकी के मशहूर नेबलेट इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रहे जलील यार खान वारसी की कोरोना संक्रमण के चलते बिते दिन मौत हो गई. 17 जुलाई को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर जलील यार खां को लेवल थ्री के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां बुधवार रात जलील यार खान की मौत हो गई. उनकी मौत की खबर सुनकर सभी स्तब्ध हैं. उनके पढ़ाए हजारों शागिर्द और जिलेवासियों में खासा दुख है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…

हरदिल अजीज और हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखने वाले जलील यार खां वारसी मूल रूप से बरेली शरीफ के रहने वाले थे. दो फरवरी सन 1941 को जन्मे जलील यार खान ने शुरुआती शिक्षा बरेली से ग्रहण कर उन्होंने वही से उच्च शिक्षा भी ग्रहण की. शिक्षण कार्य में रुचि के चलते एमए और बीएड किया. यहां के देवां शरीफ में हाजी वारिस अली शाह के जबरदस्त मुरीद थे. जिसके चलते वह बाराबंकी आ गए.

1988 में कॉलेज के प्रिंसिपल बना दिए गए

यहां के अजीमुद्दीन अशरफ इस्लामिया इंटर कॉलेज यानी नेबलेट कॉलेज में दिसम्बर 1971 को बतौर उर्दू शिक्षक इनको नियुक्ति मिल गई. अपनी मेहनत और लगन से जल्द ही जलील यार खान सबके अजीज हो गए. वर्ष 1988 में ये कॉलेज के प्रिंसिपल बना दिए गए. अपने कार्यकाल में इन्होंने कॉलेज को तमाम ऊंचाइयां दी. कॉलेज के अनुशासन को लेकर इनकी खास पहचान रही. 13 वर्ष की बड़ी सेवा देते हुए जलील यार खान वर्ष 2001 में रिटायर्ड हो गए. नौकरी से ये भले ही रिटायर्ड हो गए हो, लेकिन अपनी एक्टिविटी से ये कभी रिटायर नहीं हुए. इस दौरान ये तमाम सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते रहे.

बज्मे रहमत संस्था के भी थे अहम हिस्सा

बाराबंकी की मशहूर संस्था बज्मे रहमत के जलील यार खां वारसी दो दशकों से ज्यादा अहम सदस्य रहे और वर्ष 2018 में नायब सदर बने. उनके अंदर हमेशा एक शिक्षक होने का एहसास रहा. यही वजह रही कि रिटायरमेंट के बाद उन्होंने जनपद में ही सैनिक स्कूल और फिर किंग जार्ज जॉइन कर लिया और कई वर्षों तक सेवा की. शहर का ऐसा कोई भी साहित्यिक प्रोग्राम नहीं हुआ, जिसमें जलील यार खां की मौजूदगी न रही हो. साथ ही धार्मिक प्रोग्रामों में भी इनकी खासी भागेदारी रहती थी.

अंग्रेजी में की गई तकरीर होती थी यादगार

बारह रबिलुलव्वल के मौके पर निकलने वाले जुलूसे मोहम्मदी में जलील यार खां वारसी को हमेशा आगे चलते देखा गया. यही नहीं छाया चौराहे पर होने वाली इनकी अंग्रेजी की तकरीर को लोग आज भी याद करते हैं. जुलूस के दौरान छाया चौराहे पर जलील यार खां अंग्रेजी में हजरत मोहम्मद साहब की हिस्ट्री बयान करते थे. साथ ही लोगों को एकता और भाई चारे से रहने का संदेश देते थे.

परिवार पर टूटा गमों का पहाड़

जलील यार खान के तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं. दो वर्ष पहले पत्नी की मौत हो जाने के बाद से ये काफी टूट गए थे. बड़ी बेटी और दो बेटों की शादी हो चुकी है. एक बेटा विदेश में नौकरी करता है. जबकि दूसरा बेटा दिल्ली में रहते है. नौकरी काल तक किराए के मकान में रहे लेकिन बाराबंकी से इतना लगाव था कि उन्होंने लखपेड़ाबाग में नीम चौराहे के पास जमीन लेकर घर बनवाया. रिटायरमेंट के बाद उस घर में शिफ्ट हो गए.

कोरोना जांच के बाद अस्पताल में थे भर्ती

पिछले कुछ समय से ही जलील यार खान वारसी बीमार चल रहे थे. उन्हें डायबेटिक और ब्लडप्रेशर की परेशानी थी. कुछ दिनों पहले जब बेटे और बहू दिल्ली से लौटे, तब उस समय परिवार ने एहतियात के तौर पर कोविड-19 की जांच कराई थी. बीती 17 जुलाई को आई जलील यार खान वारसी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी. उसके बाद इन्हें लेवल थ्री अस्पताल मेयो में भर्ती कराया गया था. तबीयत में सुधार न होने के चलते बुधवार को इनकी मौत हो गई. देर रात निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत लखनऊ से इनके शव को लाकर स्वास्थ्यकर्मियों ने बाराबंकी के कमरियाबाग कब्रिस्तान में दफन कर दिया.

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.