बाराबंकी : कांधों पर कांवड़, पैरों में घुंघरू और जुबान पर बम भोले का जयघोष... इन दिनों बाराबंकी में ये नजारा देखकर हर कोई आस्था और भक्ति से लबरेज हो रहा है. सड़क किनारे पंक्तिबद्ध होकर निकल रहे इन शिवभक्तों को जो भी देखता है, उनके मुंह से अनायास ही बम भोले निकल जाता है.
दरअसल, आदिकाल से सूबे के विभिन्न जिलों से आकर रामनगर थाना क्षेत्र के महादेवा में लोधेश्वर धाम स्थित भगवान शिव पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा रही है. घर से निकलकर लोधेश्वर धाम तक पहुंचने में कहीं कोई गलती न हो गई हो, इसको लेकर ये कांवड़िये पूरी तरह सतर्क रहते हैं. इसी वजह से ये जगह-जगह रुककर कान पकड़कर अपनी गलतियों के लिए उठक-बैठक लगाकर भगवान भोले शंकर से माफी मांगते हैं.
सूबे के विभिन्न जनपदों विशेषकर जालौन, उरई, बिठूर, कानपुर और उन्नाव से पैदल चलकर कांवड़िए महादेवा में स्थित लोधेश्वर धाम पहुंचते हैं. जत्था का जत्था, रात हो या दिन... बस एक ही धुन...एक ही लगन... भोले शंकर के दर पर पहुंचना. न थकान की परवाह है, न पैरों में छालों की.. बस जल्दी पहुंचकर भगवान शिव के आगे शीश झुका दें, यही जोश इनकी परेशानियों को कम कर देता है.
खास बात यह है कि दिन-रात चलते हुए इनसे रास्ते में जो गलतियां भी हो जाती हैं, उनकी माफी मांगने का भी एक विशेष तरीका है. कांवड़िये बताते हैं कि उनके द्वारा आने में जो गलतियां हो जाती हैं, उसके लिए उठक-बैठक करते हैं, कान पकड़ते हैं ताकि भगवान भोले शंकर उनकी गलतियों को माफ कर दें. कई शिवभक्त तो ऐसे हैं, जो पिछले कई वर्षों से आ रहे हैं. उनका मानना है कि लोधेश्वर धाम पहुंचकर भगवान भोले शंकर पर जल चढ़ाने मात्र से ही उनके कष्ट दूर हो जाते हैं.
भोले के भक्तों का होता है अलग अंदाज
कांवड़ियों का एक विशिष्ट अंदाज भी होता है. वे बताते हैं कि कांवड़ के लिए ये लोग महीने भर पहले से ही तैयारी करना शुरू कर देते हैं. कांवड़ पर झंडी और चमकीली पन्नी लगाकर उसको खूबसूरत बनाते हैं. बांस से तैयार हुई ये कांवड़ एक अजीब आकर्षण पैदा करती है. बांस में लटकी शीशियों में गंगा जल भरा रहता है, जिसे वे भगवान भोले पर चढ़ाते हैं.