गोरखपुर: हादसों को रोकने के लिए सड़क के डेंजर प्वाइंट, ब्लैक स्पॉट को बंद करने के लिए बैठकों में चर्चा तो खूब होती है. लेकिन हादसे और मौत के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि इन पर कितने काम होते हैं. वर्ष 2024 में गोरखपुर में अब तक करीब 1008 हादसे हुए हैं, जिसमें 370 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. चिह्नित ब्लैक स्पॉट पर अब भी हादसे हो रहे हैं.
गोरखपुर शहर के सर्किट हाउस रोड पर भी ऐसे प्वाइंट हैं जो जानलेवा साबित हो रहे हैं तो एयरपोर्ट और एम्स के रास्ते भी इससे अछूते नहीं है. कई ऐसे कट और मोड़ हैं, जहां डिवाइडर की जरूरत है लेकिन इनके न बनने से आए दिन हादसे में लोगों की जान चली जाती है. 6 दिसंबर की रात मोहद्दीपुर के नहर पुल के कट पर भीषण सड़क हादसे में कुल 5 लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक ही परिवार के 3 लोग शामिल थे. ऐसी घटनाओं के बाद सुधार के लिये प्लान खूब बनते हैं लेकिन, धरातल पर वह कम ही दिखते हैं.
गोरखपुर के ब्लैक स्पॉट: कालेसर, नौसड़, बोक्टा, फुटहवा इनार, निबिहवा ढाला, दाना पानी हाईवे रेस्टोरेंट, भीटी रावत, कसरवल, कसिहार, बगहवीर मन्दिर और मरचहे कुटी रावतगंज गोरखपुर के ऐसे क्षेत्र हैं जिनको ब्लैक स्पॉट के रूप में चिह्नित किया गया है. इन जगहों पर हादसे होने की ज्यादा आशंका रहती है.
इसके अलावा अब तो शहर का रामगढ़ ताल रोड भी एक्सीडेंट जोन बन गया है. यहां रफ्तार भरने के प्रयास में अक्सर लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं. चौरी चौरा का निबिहवा ढाला रेलवे का सिंगल लेन पुल है. लेकिन, इस पर दोनों तरफ से गाड़ियों का आना-जाना लगा रहता है. जो दुर्घटना का कारण बनता है.
हादसों के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2021 में कुल 550 हादसे हुए जिसमें 350 लोग घायल हुए तो 255 लोगों को जान गंवानी पड़ी. इसी प्रकार वर्ष 2022 में 965 हादसे हुए तो 627 लोग घायल और 210 लोग काल के गाल में समा गए. वर्ष 2023 में हादसों का आंकड़ा करीब 1000 का रहा, जिसमें 650 लोग घायल और 418 लोगों की हुई.
2024 बीतने को है और हादसों की संख्या करीब 1008 और घायलों की संख्या 680 है. 370 के करीब लोगों ने हादसों में अपनी जान गंवाई. यही वजह है कि लगातार सिविल और यातायात पुलिस, परिवहन विभाग की टीम मिलकर इसे रोकने के उपायों पर चर्चा करती है, बैठक करती है. सड़कों पर भी लोगों को जागरूक करती नजर आती है. लेकिन हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं.
इन हादसों को रोकने के लिए हर साल कमिश्नर की अध्यक्षता में PWD, NHAI, RTO और ट्रैफिक पुलिस की बैठक होती है, जिसमें ब्लैक स्पॉट का सर्वे कर उन्हें चिह्नित किया जाता है. सुधार के नाम पर संबंधित विभाग लाखों रुपए भी खर्च करता है. फिर भी हालात जस के तस बने हुए हैं.
सूत्रों की मानें तो जिन्हें ब्लैक स्पॉट चिह्नत करने की जिम्मेदारी दी जाती है, वह संबंधित थानों में, सबसे ज्यादा हादसे होने के स्थान की जानकारी जुटा लेते हैं और उन्हें ही ब्लैक स्पॉट घोषित कर देते हैं. जबकि उन्हें उन स्थानों पर जाना चाहिए, जहां हादसों की संख्या भले ही कम हो लेकिन आवाजाही के लिए घातक हों.
गोरखपुर-लखनऊ हाईवे पर सफर के दौरान किनारे जाना जान जोखिम में डालना है. क्योंकि, इन किनारों पर गड्ढे बने होते हैं. सबसे खराब स्थिति सहजनवा के रहीमाबाद कट के पास देखने को मिलती है. कट के सामने का बड़ा गड्ढा इसमें अक्सर गाड़ियां फंस जाती हैं. गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण का सेक्टर 15 जहां पर दाना पानी रेस्टोरेंट है. इसके पास रैंबलिंग स्ट्रिप, सांकेतिक और पीली लाइट लगाई गई है जिससे हादसे न हों.
लेकिन, सेक्टर -13 के पास कट के खुल जाने से आए दिन जाम देखने को मिल रहा है और लोग जान खतरे में डालकर खुद को आगे ले जाते हैं. वहीं कालेसर ब्लैक स्पॉट और जीरो पॉइंट पर कोई भी रैंमलिंग स्ट्रिप और न ही रागीरों को चलने के लिए चौड़ी पट्टी वाली स्ट्रिप बनी है. जबकि, इस स्पॉट पर आए दिन हादसे के शिकार लोग होते हैं.
जिला सड़क सुरक्षा समिति की हर माह बैठक होती है. नए-नए प्लान के तहत लोक निर्माण विभाग और राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण अथॉरिटी और आरटीओ के जिम्मेदारों को ब्लैक स्पॉट पर सुधारात्मक कार्रवाई करने की रिपोर्ट साझा करने के निर्देश दिए जाते हैं. लेकिन, हादसों के आंकड़े बताते हैं कि इस काम में निश्चित रूप से लापरवाही बरती जाती है, नहीं तो घटनाओं के मामले कम होते ही.
जिले के एसपी ट्रैफिक संजय कुमार ऐसे मामलों में कमी लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. दिन हो या रात वह अपनी टीम के साथ जगह-जगह लोगों को जागरूक करते देखे जा सकते हैं. उनका कहना है कि लोगों की लापरवाही भी हादसे की बड़ी वजह बनती है.
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