बाराबंकीः कोविड महामारी ने खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FSDA) की चुनौतियां बढ़ा दी हैं. उपभोक्ताओं को जहां हेल्दी खाद्य पदार्थों के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है तो वहीं मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री न हो इसके लिए लगातार कार्रवाइयां भी की जा रही हैं. दरअसल, कोरोना वायरस के चलते हर किसी को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता की जरूरत है. लोगों की इम्युनिटी बनी रहे इसके लिए हेल्दी, न्यूट्रिशियस और अपमिश्रित फूड की आवश्यकता और भी ज्यादा बढ़ गई है. ये तभी मुमकिन है जब बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री मिलावट रहित हो.
खाद्य सुरक्षा विभाग करता है कार्रवाई
आमजन मानस को सुरक्षित और मिलावट रहित खाद्य पदार्थ मिलते रहें इसके लिए हर जिले में खाद्य सुरक्षा विभाग (FSDA) काम करता हैं. विभाग उपभोक्ताओं को मिलावट रहित खाद्य पदार्थों को खरीदने से न केवल रोकता है बल्कि बिक्री करने वालों पर कार्रवाई भी करता है.
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मिलावट के खिलाफ कानून
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भोजन के कानूनी मानकों को तय किया जाता है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय नागरिकों को सुरक्षित भोजन प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है. मिलावट की रोकथाम हो इसके लिए वर्ष 1954 में खाद्य अपमिश्रण निवारक अधिनियम बनाया गया था. इस कानून के तहत अपद्रव्यीकरण और झूठे नाम से खाद्य पदार्थो को बेचना दण्डनीय बनाया गया है. वर्ष 1986 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसे और सख्त बनाया गया.
FSSAI की स्थापना
खाद्य सुरक्षा को लेकर गम्भीर मंत्रालय ने वर्ष 2008 में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना की. इसका मकसद खाद्य सामग्री के लिए विज्ञान आधारित मानक बनाना और खाद्य पदार्थो के निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात वगैरह को नियंत्रित करना है. इसके अलावा सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2008 में सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान किया गया. इस कानून में दूषित एवं मिलावटी भोजन के उत्पादकों, वितरकों,विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के लिए कम से कम 10 लाख रुपये तक का जुर्माना और 6 महीने से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण(FSSAI) इसका नियंत्रण करता है.
कैसे होती है कार्रवाई
जिले का FSDA विभाग मिलावटी खाद्य पदार्थों के लिये नियमित छापेमारी करता है. इसके लिए पहले ऐसे सम्भावित प्रतिष्ठानों और स्थानों को चिन्हित कर आंकड़े जुटाए जाते हैं. छापेमारी के दौरान नमूने लिए जाते हैं .इन नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा जाता है. वहां से आने वाली रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाइयां की जाती हैं.
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कहां होती है मामलों की सुनवाई
जिला प्रशासन दो तरह से कार्रवाई करता है. जिन नमूनों की रिपोर्ट असुरक्षित आती है उन मामलों को न्यायालय भेजा जाता है और जिन नमूनों की रिपोर्ट अधोमानक, मानकों के विपरीत और मिथ्या छाप वाली आती है उन्हें एडीएम कोर्ट भेजा जाता है. एडीएम कोर्ट में भेजे जाने वाले मामलों में सुनवाई करके दोषी पाये गए लोगों पर जुर्माना लगाया जाता है, जबकि दीवानी न्यायालय भेजे गए मामलों में सुनवाई के बाद दोषियों के खिलाफ जुर्माना ,सजा या दोनों हो सकती है.
हर वर्ष 10 में से एक व्यक्ति हो रहा गम्भीर बीमार
हमारे समाज मे आज भी तमाम लोग ऐसे हैं जिनको ऐसा भोजन मिलता है जिसकी गुणवत्ता काफी खराब होती है. ये खाना लोगों की सेहत खराब करता है. डब्लूएचओ के मुताबिक दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से हर साल 10 में से एक व्यक्ति बीमार हो रहा है.
पिछले दो वर्षों में विभाग द्वारा की गई कार्रवाइयां
वित्तीय वर्ष 2019-20
छापेमारी - 282
संग्रहीत नमूने -378
प्राप्त जांच रिपोर्ट -299
असुरक्षित नमूने -14
अधोमानक -95
मानकों के विपरीत नमूने -166
मिथ्याछाप नमूने -57
इसी तरह वर्ष 2020 से मार्च 2021 तक
छापेमारी -242
भरे गए नमूने -268
प्राप्त जांच रिपोर्ट -248
बिना मानक नमूने -149
असुरक्षित -08
अधोमानक -77
मिथ्याछाप -64
बीते दो वर्षों में न्यायालयों द्वारा की गई कार्रवाइयां
एओ कोर्ट(एडीएम) द्वारा की गई कार्रवाइयां
वाद | 2019-20 | 2020-21 |
दायर किये गए वाद | 168 | 170 |
निर्णीत वाद | 103 | 123 |
वसूला गया अर्थदंड | ₹ 22 लाख | ₹ 28 लाख |
दीवानी न्यायालय द्वारा की गई कार्रवाइयां
वर्ष 2019-20 से 2020-21
वाद | 2019-20 | 2020-21 |
दायर वाद | 22 | 14 |
निर्णीत वाद | 00 | 06 |
सजा | 00 | 05 |
जुर्माना | 00 | ₹ 5500 |