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अंतिम समय तक किसानों की समस्याओं से दुखी रहे बेनी बाबू - उत्तर प्रदेश समाचार

सपा के राज्यसभा सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का लखनऊ में निधन हो गया. वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. बेनी प्रसाद बाराबंकी के दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र के सिरौली गांव में किसान परिवार में पैदा हुए थे.

बेनी प्रसाद वर्मा
बेनी प्रसाद वर्मा
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Published : Mar 28, 2020, 12:05 PM IST

बाराबंकी: बेबाक बयानों और अपनी साफगोई के लिए मशहूर बेनी बाबू के निधन से यूपी ने एक दिग्गज राजनीतिज्ञ खो दिया है. किसानों की समस्याओं के संघर्ष से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले बेनी बाबू अपने अंतिम समय में भी किसानों को लेकर खासे चिंतित रहे.

बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म 11 फरवरी 1941 को दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र के सिरौली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता मोहनलाल वर्मा इलाके के बड़े गन्ना किसान थे. इलाके के गन्ना किसानों की समस्याओं को देखते हुए उन्होंने उनके लिए संघर्ष शुरू कर दिया. यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ जो अपने अंतिम समय तक जारी रहा. बेनी वर्मा वर्ष 1970 में बुढ़वल केन यूनियन के संचालक और उपसभापति निर्वाचित हुए.

बेनी प्रसाद वर्मा का निधन
बेनी बाबू के राजनीतिक सफर की शुरूआत
साल 1974 में भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार वह दरियाबाद विधानसभा से विधायक बने. वर्ष 1977 में उनकी राजनीतिक कौशल का लोग लोहा मानने लगे, जब उन्होंने तत्कालीन कांग्रेसी दिग्गज नेता मोहसिना किदवई को मसौली विधानसभा सीट से करारी शिकस्त दी, जिसका नतीजा ये हुआ कि बेनी बाबू को गन्ना विकास और कारागार सुधार मंत्री बनाया गया.

वर्ष 1980 में उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी, जब मसौली विधानसभा सीट पर मोहसिना किदवई खेमे के रिजवानुर्रहमान किदवई ने उन्हें हरा दिया. इसी दौरान उनकी नजदीकियां मुलायम सिंह यादव से हुई. वर्ष 1989 में जब मुलायम के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी तो उन्हें नेक्स्ट टू चीफ मिनिस्टर माना जाने लगा.

समाजवादी पार्टी गठन में था अहम रोल

वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन में बेनी बाबू का अहम रोल था. वर्ष 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर बेनी एक बार फिर मसौली विधानसभा से विधायक बने और लोक निर्माण विभाग समेत संसदीय कार्य मंत्री बनाये गए. इस दौरान उन्होंने जिले में सड़कों का जाल बिछा दिया. अब तक बेनी बाबू की पहचान सूबे के कुर्मी नेता के तौर पर होने लगी.

पहली बार सांसद बने
वर्ष 1996 में पहली बार बेनी वर्मा कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. 1996 से 1998 तक देवगौड़ा सरकार में संचार मंत्री रहे. वर्ष 1998,1999 और 2004 में वह सांसद रहे. अमर सिंह की पार्टी में बढ़ रही दखलंदाजी के चलते बेनी और मुलायम के रिश्तों में खटास पैदा होने लगी थी, जिसके चलते वर्ष 2006 में बेनी ने पार्टी से किनारा कर लिया. बेनी ने अपनी एक अलग पार्टी समाजवादी क्रांति दल बनाई. वर्ष 2007 में बेनी ने अपनी पार्टी समाजवादी क्रांति दल से अयोध्या लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन बुरी तरह हार गए.

कांग्रेस ने दिया सहारा

इसके बाद जैसे बेनी टूट से गए, लेकिन इसी बीच उनको कांग्रेस ने सहारा दिया. हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को यूपी में बेनी एक पिछड़ों के नेता के रूप में नजर आए. लिहाजा कांग्रेस ने उनको ऑफर दिया. बेनी को जरूरत भी थी लिहाजा वे 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए. वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बेनी गोंडा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते.

कांग्रेस ने इनका कद बढ़ाते हुए इन्हें इस्पात मंत्री बनाया. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जब बेनी का जादू नहीं चला तो कांग्रेस का इनसे मोह भंग होने लगा. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बेनी बाबू गोंडा से चुनाव हार गए तब कांग्रेस इनसे बिल्कुल ही कन्नी काटने लगी. इस हार ने बेनी बाबू को तोड़कर रख दिया.

सपा ने भेजा राज्यसभा

सपा ने इसका फायदा उठाया और बेनी वर्मा से नजदीकियां बढ़ाई, जितने दिन बेनी सपा से दूर रहे उन्होंने मुलायम और अखिलेश के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला था, जिसका फायदा उन्हें मिला और इस तरह वर्ष 2016 में बेनी बाबू एक बार फिर से अपने पुराने घर लौट आये. सपा ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनवाया.
बेनी बाबू पिछले काफी अर्से से बीमार चल रहे थे. राजनीतिक मंचों पर उनकी सक्रियता कम हो गई थी. उनका ज्यादातर समय लखनऊ आवास पर बीतता था. अभी हाल ही में जैदपुर विधानसभा उपचुनाव हुआ तो एक बार वो फिर सक्रिय हुए. उनकी राजनीतिक कौशल का ही नतीजा था कि उन्होंने भाजपा से ये सीट छीन ली.
बेनी बाबू वर्तमान राजनीति से काफी दुखी थे. बीती 10 फरवरी को अपने जन्मदिन के मौके पर बाराबंकी आये तो ये दर्द उनमें साफ दिखाई दिया.


इसे भी पढ़ें:-बाराबंकी: पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का निधन, सपा में शोक की लहर

बाराबंकी: बेबाक बयानों और अपनी साफगोई के लिए मशहूर बेनी बाबू के निधन से यूपी ने एक दिग्गज राजनीतिज्ञ खो दिया है. किसानों की समस्याओं के संघर्ष से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले बेनी बाबू अपने अंतिम समय में भी किसानों को लेकर खासे चिंतित रहे.

बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म 11 फरवरी 1941 को दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र के सिरौली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता मोहनलाल वर्मा इलाके के बड़े गन्ना किसान थे. इलाके के गन्ना किसानों की समस्याओं को देखते हुए उन्होंने उनके लिए संघर्ष शुरू कर दिया. यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ जो अपने अंतिम समय तक जारी रहा. बेनी वर्मा वर्ष 1970 में बुढ़वल केन यूनियन के संचालक और उपसभापति निर्वाचित हुए.

बेनी प्रसाद वर्मा का निधन
बेनी बाबू के राजनीतिक सफर की शुरूआतसाल 1974 में भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार वह दरियाबाद विधानसभा से विधायक बने. वर्ष 1977 में उनकी राजनीतिक कौशल का लोग लोहा मानने लगे, जब उन्होंने तत्कालीन कांग्रेसी दिग्गज नेता मोहसिना किदवई को मसौली विधानसभा सीट से करारी शिकस्त दी, जिसका नतीजा ये हुआ कि बेनी बाबू को गन्ना विकास और कारागार सुधार मंत्री बनाया गया.

वर्ष 1980 में उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी, जब मसौली विधानसभा सीट पर मोहसिना किदवई खेमे के रिजवानुर्रहमान किदवई ने उन्हें हरा दिया. इसी दौरान उनकी नजदीकियां मुलायम सिंह यादव से हुई. वर्ष 1989 में जब मुलायम के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी तो उन्हें नेक्स्ट टू चीफ मिनिस्टर माना जाने लगा.

समाजवादी पार्टी गठन में था अहम रोल

वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन में बेनी बाबू का अहम रोल था. वर्ष 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर बेनी एक बार फिर मसौली विधानसभा से विधायक बने और लोक निर्माण विभाग समेत संसदीय कार्य मंत्री बनाये गए. इस दौरान उन्होंने जिले में सड़कों का जाल बिछा दिया. अब तक बेनी बाबू की पहचान सूबे के कुर्मी नेता के तौर पर होने लगी.

पहली बार सांसद बने
वर्ष 1996 में पहली बार बेनी वर्मा कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. 1996 से 1998 तक देवगौड़ा सरकार में संचार मंत्री रहे. वर्ष 1998,1999 और 2004 में वह सांसद रहे. अमर सिंह की पार्टी में बढ़ रही दखलंदाजी के चलते बेनी और मुलायम के रिश्तों में खटास पैदा होने लगी थी, जिसके चलते वर्ष 2006 में बेनी ने पार्टी से किनारा कर लिया. बेनी ने अपनी एक अलग पार्टी समाजवादी क्रांति दल बनाई. वर्ष 2007 में बेनी ने अपनी पार्टी समाजवादी क्रांति दल से अयोध्या लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन बुरी तरह हार गए.

कांग्रेस ने दिया सहारा

इसके बाद जैसे बेनी टूट से गए, लेकिन इसी बीच उनको कांग्रेस ने सहारा दिया. हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को यूपी में बेनी एक पिछड़ों के नेता के रूप में नजर आए. लिहाजा कांग्रेस ने उनको ऑफर दिया. बेनी को जरूरत भी थी लिहाजा वे 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए. वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बेनी गोंडा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते.

कांग्रेस ने इनका कद बढ़ाते हुए इन्हें इस्पात मंत्री बनाया. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जब बेनी का जादू नहीं चला तो कांग्रेस का इनसे मोह भंग होने लगा. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बेनी बाबू गोंडा से चुनाव हार गए तब कांग्रेस इनसे बिल्कुल ही कन्नी काटने लगी. इस हार ने बेनी बाबू को तोड़कर रख दिया.

सपा ने भेजा राज्यसभा

सपा ने इसका फायदा उठाया और बेनी वर्मा से नजदीकियां बढ़ाई, जितने दिन बेनी सपा से दूर रहे उन्होंने मुलायम और अखिलेश के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला था, जिसका फायदा उन्हें मिला और इस तरह वर्ष 2016 में बेनी बाबू एक बार फिर से अपने पुराने घर लौट आये. सपा ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनवाया.
बेनी बाबू पिछले काफी अर्से से बीमार चल रहे थे. राजनीतिक मंचों पर उनकी सक्रियता कम हो गई थी. उनका ज्यादातर समय लखनऊ आवास पर बीतता था. अभी हाल ही में जैदपुर विधानसभा उपचुनाव हुआ तो एक बार वो फिर सक्रिय हुए. उनकी राजनीतिक कौशल का ही नतीजा था कि उन्होंने भाजपा से ये सीट छीन ली.
बेनी बाबू वर्तमान राजनीति से काफी दुखी थे. बीती 10 फरवरी को अपने जन्मदिन के मौके पर बाराबंकी आये तो ये दर्द उनमें साफ दिखाई दिया.


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