बाराबंकी : नकदी खेती (cash crop) करने के मामले में बाराबंकी के किसानों का कोई सानी नही है. मेंथा और केला की खेती कर हर वर्ष लाखों कमा रहे यहां के किसानों के लिए मशरूम (Mushroom) की खेती ने भी तरक्की के रास्ते खोल दिए हैं. धान और गेहूं की परम्परागत खेती करने वाले हजारों किसान परम्परागत खेती के साथ-साथ अब मशरूम की खेती भी कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में मशरूम की मांग बढ़ जाने से इसकी खेती ने और जोर पकड़ लिया है, लिहाजा किसानों का इसकी खेती को लेकर तेजी से रुझान बढ़ा है. धान की फ़सल के बाद किसान अतिरिक्त समय मे दोहरा मुनाफा हासिल कर रहे हैं.
सिद्धौर, बनीकोडर, त्रिवेदीगंज, हैदरगढ़, हरख, सिरौलीगौसपुर और सूरतगंज ब्लॉक में मशरूम की जबरदस्त खेती की जाती है. सिद्धौर ब्लॉक के मनरखापुर गांव और हरख के जरमापुर गांव में तो मशरूम के बंगले आपको नजर आएंगे. पिछले एक दशक से यहां के किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं. मशरूम पैदा कर रहे किसानों का कहना है कि कम जमीन वाले किसानों के लिए ये खेती सबसे मुनाफे वाली है. परम्परागत खेती कर रहे किसान अतिरिक्त समय मे मशरूम की खेती कर दो गुना लाभ ले सकते हैं.
मशरूम के लिए खासा बाजार है. तैयार मशरूम आसानी से बिक जाता है. यही वजह है कि किसानों का रुझान इसकी खेती की ओर बढ़ा है. गोरखपुर, बनारस, फैजाबाद, प्रयागराज और लखनऊ में मशरूम की खासी मांग है. मांग इतनी है कि व्यापारी इनके प्लांट से ही तैयार मशरूम खरीद ले जाते हैं. सौ से डेढ़ सौ रुपये किलो इनका मशरूम आसानी से बिक जाता है. किसानों का कहना है कि मेहनत के साथ-साथ अगर मौसम साथ दे जाए तो मशरूम की खेती में मुनाफा ही मुनाफा है. दरअसल, मशरूम एक कवक (FUNGI) है. यह नमी में उगता है. यही वजह है कि इसकी खेती जाड़े में की जाती है, लेकिन अगर धूप तेज हो जाए या बारिश हो जाए तो इसके उत्पादन पर खासा असर पड़ता है.
उद्यान विभाग (Horticulture Department) के अधिकारियों का कहना है कि जिले में मशरूम की खेती की अपार सम्भावनाए हैं. विभाग मशरूम की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी करता है. एसी प्लांट (AC PLANT) लगाने वाले किसानों को विभाग सब्सिडी (Subsidy) भी देता है.
मशरूम की खेती सितम्बर से फरवरी महीने तक होती है. सितम्बर की शुरुआत में किसान इसकी खेती के लिए तैयारी शुरू कर देते हैं. बांस और पुआल के बड़े-बड़े बंगले बनाकर उसके अंदर बांस के कई लेयर के स्ट्रक्चर तैयार करते हैं. बंगले भी अपनी जमीन के हिसाब से बनाए जाते हैं. पचास गुणा 22 (50×22) फिट के बंगले उत्तम माने जाते हैं. फिर गेहूं के भूसे को सड़ाया जाता है. उसमे चोकर, यूरिया, पोटाश, नीम की खली मिक्स कर पानी डालकर उसको 8 से 9 बार उलटते पलटते हैं. इसे कम्पोस्ट कहते हैं. उसके बाद इस सड़े हुए भूसे यानी कम्पोस्ट को बंगले में तैयार किए गए स्ट्रक्चर पर रखा जाता है. उसके बाद इसमें मशरूम बीज डालते हैं और इसे पेपर से ढक देते हैं. इसमें नियमित अंतराल पर पानी का छिड़काव भी करते हैं. चार से पांच दिन बाद इसमें सफ़ेदी दिखाई देने पर पेपर हटा लिया जाता है. यही सफेदी धीरे-धीरे बढ़कर मशरूम बन जाती है.
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