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बाराबंकी: मेंथा ऑयल निकालने के दौरान टंकियों के फटने पर प्रशासन गंभीर, एडवाइजरी जारी

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Published : Jun 17, 2020, 6:00 AM IST

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में प्रत्येक वर्ष मेंथा ऑयल निकालते समय टंकियां फटने से दुर्घटनाएं होती हैं. इनमें किसानों की जान भी चली जाती है. जिला प्रशासन ने इसे गम्भीरता से लेते हुए इसकी मॉनिटरिंग के लिए सभी उप जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए गए हैं.

मेंथा ऑयल निकालने के दौरान टंकियों के फटने पर प्रशासन गंभीर
मेंथा ऑयल निकालने के दौरान टंकियों के फटने पर प्रशासन गंभीर

बाराबंकी: जिले में प्रत्येक वर्ष मेंथा ऑयल निकालते समय टंकियां फटने से दुर्घटनाएं होती हैं. इनमें लोगों की जान भी चली जाती है. जागरूकता की कमी और सस्ते दाम के चलते किसान मानक विहीन टंकियां खरीद लेते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है. जिला प्रशासन ने इसे गम्भीरता से लेते हुए किसानों से मानक के अनुरूप टंकियां खरीदने को कहा है. यही नहीं इसकी मॉनिटरिंग के लिए सभी उप जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए गए हैं. डीएम ने तहसीलवार टीमों का गठन किया है, जो अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को मानक के अनुरूप टंकियों के प्रयोग को सुनिश्चित करेगी. साथ ही मानक विहीन टंकियां बेचने वालों के खिलाफ कार्रवाई के भी निर्देश दिए गए हैं.

किसानों का हरा सोना कही जाने वाली मेंथा की फसल पिछले कुछ दशकों से बाराबंकी की पहचान बन चुकी है. बाराबंकी में इसे जायद की प्रमुख फसल माना जाता है. देश के कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले बाराबंकी में पैदा होता है. इस फसल ने यहां के किसानों का न केवल जीवन बदल दिया, बल्कि इससे सरकारों को भी खासा राजस्व मिलता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक देश है. इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है. विश्व में मेंथा आयल के कुल उत्पादन का 75 फीसदी अकेले भारत में होता है और इस उत्पादन में अकेले बाराबंकी का हिस्सा 70 फीसदी है.

जानकारी देते डीएम डॉ. आदर्श सिंह.

किसान खरीदते हैं मानक विहीन टंकियां
बाराबंकी और आसपास के किसान करीब 3 दशकों से मेंथा की खेती कर रहे हैं. बाराबंकी में करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ये खेती की जाती है. मेंथा की खेती करने के बाद किसान इसको काटकर आसवन विधि से तेल निकालते हैं, जिसके लिए बड़ी-बड़ी टंकियां खरीदी जाती हैं. जानकारी के अभाव और सस्ते दामों के चक्कर में मेंथा किसान मानक विहीन टंकियां खरीद लेते हैं, जिसका नतीजा होता है कि तेल निकालने के दौरान ये फट जाती हैं और बड़ी दुर्घटनाओं का सबब बन जाती है. हर वर्ष होने वाली इन दुर्घटनाओं में कइयों की जान चली जाती है.

डीएम ने दिए निर्देश
इसी को देखते हुए जिला प्रशासन ने किसानों को मानक के अनुरूप टंकियां खरीदने को कहा है. डीएम डॉ. आदर्श सिंह ने सभी तहसीलों के उप जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपनी तहसीलों में मॉनिटरिंग करें और किसानों को मानक के अनुरूप टंकियों का प्रयोग सुनिश्चित कराएं. साथ ही मानक विहीन टंकियां बेचने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई करें. कृषि विभाग को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे किसानों को जागरूक करें.

क्या है मानक
मेंथा ऑयल निकालने के लिए किसानों द्वारा जो यूनिट लगाई जानी है, उसके लिए सीमैप द्वारा मेंथा आसवन इकाइयों के लिए ये मानक तय किए गए हैं.

टंकी- स्टेनलेस स्टील या साधारण लोहा (जीआई) की बनी हो.

यूनिट की माप-

बाराबंकी: जिले में प्रत्येक वर्ष मेंथा ऑयल निकालते समय टंकियां फटने से दुर्घटनाएं होती हैं. इनमें लोगों की जान भी चली जाती है. जागरूकता की कमी और सस्ते दाम के चलते किसान मानक विहीन टंकियां खरीद लेते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है. जिला प्रशासन ने इसे गम्भीरता से लेते हुए किसानों से मानक के अनुरूप टंकियां खरीदने को कहा है. यही नहीं इसकी मॉनिटरिंग के लिए सभी उप जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए गए हैं. डीएम ने तहसीलवार टीमों का गठन किया है, जो अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को मानक के अनुरूप टंकियों के प्रयोग को सुनिश्चित करेगी. साथ ही मानक विहीन टंकियां बेचने वालों के खिलाफ कार्रवाई के भी निर्देश दिए गए हैं.

किसानों का हरा सोना कही जाने वाली मेंथा की फसल पिछले कुछ दशकों से बाराबंकी की पहचान बन चुकी है. बाराबंकी में इसे जायद की प्रमुख फसल माना जाता है. देश के कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले बाराबंकी में पैदा होता है. इस फसल ने यहां के किसानों का न केवल जीवन बदल दिया, बल्कि इससे सरकारों को भी खासा राजस्व मिलता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक देश है. इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है. विश्व में मेंथा आयल के कुल उत्पादन का 75 फीसदी अकेले भारत में होता है और इस उत्पादन में अकेले बाराबंकी का हिस्सा 70 फीसदी है.

जानकारी देते डीएम डॉ. आदर्श सिंह.

किसान खरीदते हैं मानक विहीन टंकियां
बाराबंकी और आसपास के किसान करीब 3 दशकों से मेंथा की खेती कर रहे हैं. बाराबंकी में करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ये खेती की जाती है. मेंथा की खेती करने के बाद किसान इसको काटकर आसवन विधि से तेल निकालते हैं, जिसके लिए बड़ी-बड़ी टंकियां खरीदी जाती हैं. जानकारी के अभाव और सस्ते दामों के चक्कर में मेंथा किसान मानक विहीन टंकियां खरीद लेते हैं, जिसका नतीजा होता है कि तेल निकालने के दौरान ये फट जाती हैं और बड़ी दुर्घटनाओं का सबब बन जाती है. हर वर्ष होने वाली इन दुर्घटनाओं में कइयों की जान चली जाती है.

डीएम ने दिए निर्देश
इसी को देखते हुए जिला प्रशासन ने किसानों को मानक के अनुरूप टंकियां खरीदने को कहा है. डीएम डॉ. आदर्श सिंह ने सभी तहसीलों के उप जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपनी तहसीलों में मॉनिटरिंग करें और किसानों को मानक के अनुरूप टंकियों का प्रयोग सुनिश्चित कराएं. साथ ही मानक विहीन टंकियां बेचने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई करें. कृषि विभाग को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे किसानों को जागरूक करें.

क्या है मानक
मेंथा ऑयल निकालने के लिए किसानों द्वारा जो यूनिट लगाई जानी है, उसके लिए सीमैप द्वारा मेंथा आसवन इकाइयों के लिए ये मानक तय किए गए हैं.

टंकी- स्टेनलेस स्टील या साधारण लोहा (जीआई) की बनी हो.

यूनिट की माप-

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