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3 बार विधायक और 4 बार सांसद रहे राम सागर बने बाराबंकी से सपा प्रत्याशी

समाजवादी पार्टी के स्तंभ माने जाने वाले राम सागर रावत को समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर मौका दिया है. तीन बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को 'खांटी सपाई' माना जाता है.

राम सागर रावत
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Published : Mar 16, 2019, 3:29 PM IST

बाराबंकी : समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर अपने पुराने दिग्गज राम सागर रावत पर भरोसा जताया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा के बाद रामसागर समर्थकों में खासा जोश आ गया. इस मौके पर राम सागर रावत ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के प्रति आभार जताते हुए कहा कि वो सपा मुखिया के लिए चार दशकों से समर्पित हैं. हमेशा उनका भरोसा बनाए रखेंगे.

राम सागर रावत ने किया पार्टी का धन्यवाद.

जिले में समाजवादी पार्टी के स्तंभ माने जाने वाले राम सागर रावत को पार्टी ने एक बार फिर मौका दिया है. तीन बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को 'खांटी सपाई' माना जाता है. राम सागर रावत मुलायम सिंह के संघर्ष के दिनों के साथी हैं. राम सागर रावत उन सांसदों में हैं, जब जनता पार्टी के गिने चुने सांसद ही लोकसभा में पहुंचे थे.

कुछ ऐसा है राम सागर की जिंदगी का सफर
साल 1991 के चुनाव में देश भर से महज चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा समेत पांच सांसद ही जनता पार्टी के टिकट पर जीते थे तो उनमें राम सागर भी थे. धनौली खास गांव के रहने वाले भभूती के पुत्र राम सागर रावत 13 जुलाई 1951 को पैदा हुए थे. वर्ष 1968 में इन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में हाई स्कूल पास किया और सन 1969 में इनकी शादी हो गई. सन 1972 में इन्होंने बीटीसी किया और शिक्षण कार्य में लग गए. अध्यापन कार्य करते हुए उन्होंने राजनीति में कदम रखा और जनता पार्टी से जुड़ गए. सन 1977 के चुनाव में सिद्धौर विधानसभा से जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए. सन 1980 में एक बार फिर ये सिद्धौर से विधायक बने. उसके बाद इन्होंने लोकदल का दामन पकड़ लिया और लोकदल के टिकट पर सन 1985 में एक बार फिर विधायक बने. 1984 में रामसागर पहली बार लोक दल से लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए.

1996 में राम सागर ने सपा के लिए लड़ा चुनाव
सन 1989 में हुए आम चुनाव में जनता दल से पहली बार सांसद बने. सन 1991 में जनता पार्टी से प्रत्याशी के रूप में राम सागर एक बार फिर सांसद बने. सन 1996 में राम सागर ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते. सन 1998 में हुए चुनाव में समीकरण गड़बड़ाया तो चुनाव हार गए लेकिन 1999 में स्थिति मजबूत की और एक बार फिर बतौर सांसद दिल्ली पहुंच गए. राम सागर को कभी भी इस बात का मलाल नहीं रहा कि 3 बार विधायक और चार बार सांसद होने के बाद भी पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उनको अपना तो बनाए रखा लेकिन कभी भी प्रदेश और देश के कैबिनेट में जगह नहीं दी.

तकरीबन एक दशक पूर्व जब बेनी वर्मा और मुलायम सिंह की खटपट हुई तो बेनी ने सपा से किनारा कर लिया लेकिन राम सागर डटे रहे. लोगों को लगा था कि शायद राम सागर बेनी के साथ चले जाएं लेकिन ऐसा न हुआ. साल 2004 और 2009 में राजनीतिक स्थितियां बदल गईं राम मंदिर और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चलते समीकरण बदल गए. लिहाजा 2004 और 2009 दोनों चुनावों में राम सागर परास्त हो गए. लगातार दो चुनाव हारने के बाद पार्टी में उनको लेकर विरोध शुरू हो गया. उनके विरोधी आगे आ गए. लिहाजा 2014 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. टिकट काटे जाने के बाद भी रामसागर निराश नहीं हुए. उन्होंने सक्रियता बनाए रखने के साथ ही हाईकमान से संपर्क बनाए रखा, जिसका नतीजा हुआ कि पार्टी ने फिर से इस बार उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बना दिया.

बाराबंकी : समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर अपने पुराने दिग्गज राम सागर रावत पर भरोसा जताया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा के बाद रामसागर समर्थकों में खासा जोश आ गया. इस मौके पर राम सागर रावत ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के प्रति आभार जताते हुए कहा कि वो सपा मुखिया के लिए चार दशकों से समर्पित हैं. हमेशा उनका भरोसा बनाए रखेंगे.

राम सागर रावत ने किया पार्टी का धन्यवाद.

जिले में समाजवादी पार्टी के स्तंभ माने जाने वाले राम सागर रावत को पार्टी ने एक बार फिर मौका दिया है. तीन बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को 'खांटी सपाई' माना जाता है. राम सागर रावत मुलायम सिंह के संघर्ष के दिनों के साथी हैं. राम सागर रावत उन सांसदों में हैं, जब जनता पार्टी के गिने चुने सांसद ही लोकसभा में पहुंचे थे.

कुछ ऐसा है राम सागर की जिंदगी का सफर
साल 1991 के चुनाव में देश भर से महज चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा समेत पांच सांसद ही जनता पार्टी के टिकट पर जीते थे तो उनमें राम सागर भी थे. धनौली खास गांव के रहने वाले भभूती के पुत्र राम सागर रावत 13 जुलाई 1951 को पैदा हुए थे. वर्ष 1968 में इन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में हाई स्कूल पास किया और सन 1969 में इनकी शादी हो गई. सन 1972 में इन्होंने बीटीसी किया और शिक्षण कार्य में लग गए. अध्यापन कार्य करते हुए उन्होंने राजनीति में कदम रखा और जनता पार्टी से जुड़ गए. सन 1977 के चुनाव में सिद्धौर विधानसभा से जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए. सन 1980 में एक बार फिर ये सिद्धौर से विधायक बने. उसके बाद इन्होंने लोकदल का दामन पकड़ लिया और लोकदल के टिकट पर सन 1985 में एक बार फिर विधायक बने. 1984 में रामसागर पहली बार लोक दल से लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए.

1996 में राम सागर ने सपा के लिए लड़ा चुनाव
सन 1989 में हुए आम चुनाव में जनता दल से पहली बार सांसद बने. सन 1991 में जनता पार्टी से प्रत्याशी के रूप में राम सागर एक बार फिर सांसद बने. सन 1996 में राम सागर ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते. सन 1998 में हुए चुनाव में समीकरण गड़बड़ाया तो चुनाव हार गए लेकिन 1999 में स्थिति मजबूत की और एक बार फिर बतौर सांसद दिल्ली पहुंच गए. राम सागर को कभी भी इस बात का मलाल नहीं रहा कि 3 बार विधायक और चार बार सांसद होने के बाद भी पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उनको अपना तो बनाए रखा लेकिन कभी भी प्रदेश और देश के कैबिनेट में जगह नहीं दी.

तकरीबन एक दशक पूर्व जब बेनी वर्मा और मुलायम सिंह की खटपट हुई तो बेनी ने सपा से किनारा कर लिया लेकिन राम सागर डटे रहे. लोगों को लगा था कि शायद राम सागर बेनी के साथ चले जाएं लेकिन ऐसा न हुआ. साल 2004 और 2009 में राजनीतिक स्थितियां बदल गईं राम मंदिर और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चलते समीकरण बदल गए. लिहाजा 2004 और 2009 दोनों चुनावों में राम सागर परास्त हो गए. लगातार दो चुनाव हारने के बाद पार्टी में उनको लेकर विरोध शुरू हो गया. उनके विरोधी आगे आ गए. लिहाजा 2014 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. टिकट काटे जाने के बाद भी रामसागर निराश नहीं हुए. उन्होंने सक्रियता बनाए रखने के साथ ही हाईकमान से संपर्क बनाए रखा, जिसका नतीजा हुआ कि पार्टी ने फिर से इस बार उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बना दिया.

Intro:बाराबंकी ,16 मार्च । समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर अपने पुराने दिग्गज राम सागर रावत पर भरोसा जताया है । पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा के बाद रामसागर समर्थकों में खासा जोश आ गया ।इस मौके पर राम सागर रावत ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के प्रति आभार जताते हुए कहा कि वो सपा मुखिया के लिए चार दशकों से समर्पित है । हमेशा उनका भरोसा बनाये रखेंगे ।


Body:वीओ- जिले में समाजवादी पार्टी के स्तंभ माने जाने वाले राम सागर रावत को पार्टी ने एक बार फिर मौका दिया है । तीन बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को खांटी सपाई माना जाता है । राम सागर रावत मुलायम के संघर्ष के दिनों के साथी है ।रामसागर रावत उन सांसदों में हैं जब जनता पार्टी के गिने चुने सांसद ही लोकसभा में पहुंचे थे । साल 91 के चुनाव में देश भर से महज चन्द्रशेखर , एचडी देवगौड़ा समेत पांच सांसद ही जनता पार्टी के टिकट पर जीते थे तो उनमें रामसागर भी थे । धनौली खास गांव के रहने वाले भभूती के पुत्र राम सागर रावत 13 जुलाई 1951 को पैदा हुए थे । वर्ष 1968 में इन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में हाई स्कूल पास किया और सन 69 में इनकी शादी हो गई । सन 72 में इन्होंने बीटीसी किया और शिक्षण कार्य में लग गए । अध्यापन कार्य करते हुए उन्होंने राजनीति में कदम रखा और जनता पार्टी से जुड़ गए । सन 77 के चुनाव में सिद्धौर विधानसभा से जनतापार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए । सन 80 में एक बार फिर ये सिद्धौर से विधायक बने । उसके बाद इन्होंने लोकदल का दामन पकड़ लिया और लोकदल के टिकट पर सन 85 में एक बार फिर विधायक बने । 1984 में रामसागर पहली बार लोक दल से लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए ।सन 89 में हुए आम चुनाव में जनता दल से पहली बार सांसद बने । सन 91 में जनता पार्टी से प्रत्याशी के रूप में राम सागर एक बार फिर सांसद बने ।सन 1996 में राम सागर ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते । सन 98 में हुए चुनाव में समीकरण गड़बड़ाया तो चुनाव हार गए लेकिन 99 में स्थिति मजबूत की और एक बार फिर बतौर सांसद दिल्ली पहुंच गए । रामसागर को कभी भी इस बात का मलाल नहीं रहा कि 3 बार विधायक और चार बार सांसद होने के बाद भी पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उनको अपना तो बनाए रखा लेकिन कभी भी प्रदेश और देश के कैबिनेट में जगह नहीं दी । तकरीबन एक दशक पूर्व जब बेनी वर्मा और मुलायम सिंह की खटपट हुई तो बेनी ने सपा से किनारा कर लिया लेकिन राम सागर डटे रहे । लोगों को लगा था कि शायद रामसागर बेनी के साथ चले जाएं लेकिन ऐसा न हुआ । साल 2004 और 2009 में राजनीतिक स्थितियां बदल गईं राम मंदिर और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चलते समीकरण बदल गए लिहाजा 2004 और 2009 दोनों चुनावो में रामसागर परास्त हो गए । लगातार दो चुनाव हारने के बाद पार्टी में उनको लेकर विरोध शुरू हो गया । उनके विरोधी आगे आ गए लिहाजा 2014 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया । टिकट काटे जाने के बाद भी रामसागर निराश नही हुए उन्होंने सक्रियता बनाये रखने के साथ ही हाईकमान से सम्पर्क बनाये रखा जिसका नतीजा हुआ कि पार्टी ने फिर से इस बार उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बना दिया ।

बाईट - रामसागर रावत , प्रत्याशी सपा बाराबंकी


Conclusion:रिपोर्ट- अलीम शेख बाराबंकी
9839421515
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