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ये है सतनामी संप्रदाय का 350 साल पुराना मंदिर, आज भी दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के कोटवा धाम में सतनामी संप्रदाय का 350 साल पुराना मंदिर स्थित है. इस मंदिर में गुरु पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु सप्तमी तक दर्शन करने के लिए आते रहते हैं.

ये है सतनामी संप्रदाय का 350 साल पुराना मंदिर.
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Published : Nov 20, 2019, 10:41 AM IST

बाराबंकी: जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील स्थित कोटवा धाम में सतनामी संप्रदाय का 350साल पुराना मंदिर आज भी स्थित है. यहां पर गुरु पूर्णिमा से लेकर सप्तमी तक लाखों श्रद्धालु कई प्रदेशों से बाबा जगजीवन दास के मंदिर में दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर अनुष्ठान करते है. बाबा जगजीवन दास के कई चमत्कार हैं जैसे तालाब दूध हो जाना. ऐसे ही चमत्कारों के बारे में आज ईटीवी संवाददाता के साथ कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास से बातचीत की.

ये है सतनामी संप्रदाय का 350 साल पुराना मंदिर.

जानिए ईटीवी भारत से कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास ने क्या बताया

ईटीवी भारत से बात करते हुए कोटवा धाम के महंत बाबा जगजीवन दास के वंशज नीलेंद्र बख्श दास उर्फ नीरज भैया ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि बाबा जगजीवन दास साहब की कई चमत्कारी घटनाएं हैं. जैसे हमारे पूर्वजों मे जब कन्या पैदा होती थी तो उसको मार दिया जाता था. पूर्वज कहते थे कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे, लेकिन जब बाबा जगजीवन दास का जन्म हुआ और उसी समय जब एक कन्या का जन्म हुआ. उसको मारने के लिए परिवार वाले तैयार हुए तो बाबा ने कहा कि इसको मत मारो. पैसा होगा तब इसकी शादी ब्याह कर दिया जाएगा, लेकिन पूर्वजों ने कहा कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे. इसलिए इस परिवार में कन्या की हत्या कर दी जाती थी.

नीलेंद्र बख्श दास ने बताया कि जगजीवन दास साहेब ने उसको मना किया. जब वह नहीं माने तो जो लोग कन्या को मारने के लिए जा रहे थे, उनके शरीर में छाले पड़ गए और वह परेशान होने लगे. तब बाबा जगजीवन दास ने सरजू जी का जल दिया और उनके शरीर पर लगाया तब जाकर उनके छाले ठीक हुए और तब से यह प्रथा इनके परिवार में खत्म हो गई. लोग बाबा जगजीवन दास को मानने लगे. उसके बाद बाबा जगजीवन दास सरदहा ग्राम से आकर कोटक वन में तपस्या करने चले आए. वही आगे चलकर के कोटवा धाम हुआ और यहीं पर बाबा जगजीवन दास ने अपना शरीर छोड़ा. उन्होंने बताया कि यहीं पर आज भव्य मेला लगता है. हर मंगलवार को हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं और साल में 12 पूर्णिमा होती, जिसमें कई प्रदेशों से लोग दर्शन करने कोटवा धाम आते हैं.

बाराबंकी: जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील स्थित कोटवा धाम में सतनामी संप्रदाय का 350साल पुराना मंदिर आज भी स्थित है. यहां पर गुरु पूर्णिमा से लेकर सप्तमी तक लाखों श्रद्धालु कई प्रदेशों से बाबा जगजीवन दास के मंदिर में दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर अनुष्ठान करते है. बाबा जगजीवन दास के कई चमत्कार हैं जैसे तालाब दूध हो जाना. ऐसे ही चमत्कारों के बारे में आज ईटीवी संवाददाता के साथ कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास से बातचीत की.

ये है सतनामी संप्रदाय का 350 साल पुराना मंदिर.

जानिए ईटीवी भारत से कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास ने क्या बताया

ईटीवी भारत से बात करते हुए कोटवा धाम के महंत बाबा जगजीवन दास के वंशज नीलेंद्र बख्श दास उर्फ नीरज भैया ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि बाबा जगजीवन दास साहब की कई चमत्कारी घटनाएं हैं. जैसे हमारे पूर्वजों मे जब कन्या पैदा होती थी तो उसको मार दिया जाता था. पूर्वज कहते थे कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे, लेकिन जब बाबा जगजीवन दास का जन्म हुआ और उसी समय जब एक कन्या का जन्म हुआ. उसको मारने के लिए परिवार वाले तैयार हुए तो बाबा ने कहा कि इसको मत मारो. पैसा होगा तब इसकी शादी ब्याह कर दिया जाएगा, लेकिन पूर्वजों ने कहा कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे. इसलिए इस परिवार में कन्या की हत्या कर दी जाती थी.

नीलेंद्र बख्श दास ने बताया कि जगजीवन दास साहेब ने उसको मना किया. जब वह नहीं माने तो जो लोग कन्या को मारने के लिए जा रहे थे, उनके शरीर में छाले पड़ गए और वह परेशान होने लगे. तब बाबा जगजीवन दास ने सरजू जी का जल दिया और उनके शरीर पर लगाया तब जाकर उनके छाले ठीक हुए और तब से यह प्रथा इनके परिवार में खत्म हो गई. लोग बाबा जगजीवन दास को मानने लगे. उसके बाद बाबा जगजीवन दास सरदहा ग्राम से आकर कोटक वन में तपस्या करने चले आए. वही आगे चलकर के कोटवा धाम हुआ और यहीं पर बाबा जगजीवन दास ने अपना शरीर छोड़ा. उन्होंने बताया कि यहीं पर आज भव्य मेला लगता है. हर मंगलवार को हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं और साल में 12 पूर्णिमा होती, जिसमें कई प्रदेशों से लोग दर्शन करने कोटवा धाम आते हैं.

Intro:बाराबंकी. जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील स्थित कोटवा धाम में सतनामी संप्रदाय का 350साल पुराना मंदिर आज भी स्थित है यहां पर गुरु पूर्णिमा से लेकर सप्तमी तक लाखों श्रद्धालु कई प्रदेशों से बाबा जगजीवन दास के मंदिर में दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर अनुष्ठान करते है. बाबा जगजीवन दास के कई चमत्कार हैं जैसे अभरण दूध हो जाना . ऐसे ही चमत्कारों के बारे में आज ईटीवी संवाददाता के साथ कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास उर्फ नीरज भैया ने बताया कि हमारे यहां मूर्ति पूजा नहीं होती है हमारे यहां गुरु ही सर्वोपरि माना गया है सतनामी संप्रदाय में समाधि पूजा होती है बाबा जगजीवन दास की समाधि बनी हुई है उन्हीं को हम अपना गुरु मानते हैं और हमारे सतनामी संप्रदाय में काला और सफेद धागा पहनाया जाता है।


Body:आज ईटीवी भारत से बात करते हुए कोटवा धाम के महंत बाबा जगजीवन दास के वंशज नीलेंद्र बख्श दास उर्फ नीरज भैया ईटीवी भारत से खास बातचीत की उन्होंने बताया कि बाबा जगजीवन दास साहब की कई चमत्कारी घटनाएं हैं . जैसे एक बार हमारे पूर्वजों मे जब कन्या पैदा होती थी तो उसको मार दिया जाता था । पूर्वज कहते थे कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे लेकिन जब बाबा जगजीवन दास का जन्म हुआ और 6 वर्ष की उम्र में जब एक कन्या का जन्म हुआ तो उसको मारने के लिए परिवार वाले तैयार हुए तो बाबा ने कहा इसको मारो मत पैसा होगा इसकी शादी ब्याह कर दिया जाएगा लेकिन पूर्वजों ने कहा कि हम किसी के सामने सर झुकाने नहीं जाएंगे इसलिए कन्या की हत्या इस परिवार में कर दी जाती थी लेकिन जगजीवन दास साहेब ने उसको मना किया जब नहीं माने तो जो मारने के लिए पूर्वज जा रहे थे उनके शरीर में छाले पड़ गए और वह ऐसे ही परेशान होने लगे तो बाबा जगजीवन दास ने सरजू जी का जल दिया और उसको लगाया तब जाकर उनके छाले ठीक हुए तब से यह प्रथा इनके परिवार में खत्म हो गई और लोग बाबा जगजीवन दास को मानने लगे उसके बाद सरदहा ग्राम से आकर कोटक वन मि तपस्या करने चले आए वही आगे चलकर के कोटवा धाम हुआ यहीं पर बाबा जगजीवन दास ने अपना शरीर छोड़ा यहीं पर आज भव्य मेला लगता है हर मंगलवार को हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं और साल में 12 पूर्णिमा होती जिसमें कई प्रदेशों से लोग दर्शन करने कोटवा धाम आते हैं.


Conclusion:आज जगजीवनदास के वंशज नीलेंद्र बख्श दास बताते हैं कि एक बार अयोध्या से सैकड़ों की संख्या साधु महात्मा लोग कोटवाधाम आए और बाबा से कहा आज हम लोगों का व्रत है हम लोग भोजन नहीं करेंगे फलाहार करेंगे दूध पिएंगे बाबा ने कहा इतनी रात में दूध कहां मिलेगा इतने पशु भी नहीं थे तो बाबा जाकर के जो अभरण तालाब है वहां पर एक परिक्रमा की उसके बाद प्रभु से विनती की प्रभु ने अभरण को दूध कर दिया और सभी लोगों ने इच्छा भर के साधु महात्माओं ने कोटवा धाम में दूध पिया और जो ग्रामवासी थे वह भी दूध पिए ऐसे बाबा के अनेकों चमत्कार हैं. ऐसा कोटवा धाम के महंत नीलेंद्र बख्श दास ने ईटीवी से खास बातचीत में बताया। बाइट . महंत नीलेंद्र दास महंत कोटवा धाम.. ईटीवी भारत के लिए लक्ष्मण तिवारी बाराबंकी उत्तर प्रदेश 97 9421 7543
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