बांदा: शादी हो या पूजा-पाठ, हर शुभ अवसर पर घरों में ढोलक बजाई जाती है. लेकिन इन ढोलकों को बनाने वाले चेहरे की खुशी कोरोना महामारी ने छीन ली है. कोरोना के चलते सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में ब्रेक लगा है. वहीं वैवाहिक कार्यक्रम भी नहीं हो रहे हैं. ऐसे में खुशियों का पिटारा बेच अपना पेट भरने वाले यह लोग दो जून की रोटी को तरस रहे हैं. बांदा जिले में रोजाना सड़कों पर घूम-घूमकर ढोलकों को बेचने वाले यह लोग लॉकडाउन के पहले दिन में 6 से 8 ढोलकें बेच लेते थे. वहीं मौजूदा समय में 1 या 2 ढोलके बिकना कठिन दिखाई पड़ता है.
कोरोना से खड़ा हुआ रोजी-रोटी का संकट
बता दें कि शहर के मंडी समिति के पास बड़ी संख्या में ढोलकों को बनाने वाले लोग रहते हैं. जिनके सामने इस समय ढोलकों को बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट भरना किसी पहाड़ पर चढ़ने से भी कठिन है. यह लोग परिवार के साथ मिलकर यहां दिन-रात मेहनत कर ढोलकों को बनाते हैं. इसके बाद शहर और गांवों में घूम-घूम कर खुद एक-एक ढोलक को बेचते हैं और उसी से इनका गुजारा चलता है.
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धंधे पर कोरोना की मार
मौजूदा समय में कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन के हिसाब से न तो कोई कार्यक्रम ही हो रहे हैं. और न ही यह लोग हफ्ते के 7 दिन ढोलके बेच पाते हैं. वहीं लॉकडाउन के चलते लोगों की आर्थिक स्थिति भी खराब होने से शौकीन लोग भी ढोलकें खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. जिसके चलते ढोलकों का व्यवसाय करने वालों के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
एक ढोलक बिकना भी बड़ी बात
ढोलक बनाने वाले रमजानी का कहना है कि एक ढोलक बनाने में कई घंटे लगते हैं. इसमें लगभग 500 से 600 रुपये तक का खर्च आता है. इसकी बिक्री ग्राहक के अनुसार 700 से लेकर 1000 रुपये तक हो जाती है. लेकिन कोरोना के चलते लोग ढोलक नहीं खरीद रहे हैं. हाल ये है कि दिन में एक दो ढोलक भी बिक जाए तो बड़ी बात है.
रिजवान बताते हैं कि धंधा बिल्कुल बंद चल रहा है. शादी-ब्याह के टाइम छह-सात ढोलकें तो आराम से बिक जाती थीं. लेकिन अब किसी दिन एक तो कभी दो ढोलक ही बिकती है. उन्होंने आगे कहा कि कभी तो एक भी ढोलक नहीं बिकती और हमें भूखे ही सोना पड़ता है.