बलरामपुर: जिले में इको पर्यटन से जुड़ी तमाम संभावनाओं पर लगातार काम किया जा रहा है. जिले के तमाम स्थलों को पर्यटन के लिहाज से न केवल विकसित किया जा रहा है. बल्कि संभावनाओं को तलाशते हुए अन्य प्रोजेक्ट पर भी काम किया जा रहा है. नेपाल की तराई और सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग इको पर्यटन में चार-चांद लगा सकते हैं.
थारू जनजाति को समझने का मिलेगा मौका
वहीं नेचर वाकिंग और वन्य गांवों में रहने वालों के प्रति लोगों का झुकाव तथा प्राकृतिक प्रेमियों के लिए जिला प्रशासन और राज्य सरकार मिलकर इको पर्यटन की एक बड़ी परियोजना पर काम कर रहे हैं. इस परियोजना के जरिए न केवल लोगों को नेचर वाकिंग करने का मौका मिलेगा. बल्कि यहां पर रहने वाले थारू जनजाति और उनकी संस्कृति को भी जानने समझने का मौका मिल सकेगा.
सीडीओ और डीएफओ ने बनाया संयुक्त प्रोजेक्ट
जिले में इको पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए सुहेलवा वन्यजीव प्रभाग के प्रभागीय अधिकारी रजनीकांत मित्तल और मुख्य विकास अधिकारी अमनदीप डुली ने एक संयुक्त प्रोजेक्ट तैयार किया है. जिसके जरिए न केवल जिले में इको पर्यटन को पंख लग सकेगा. बल्कि नेपाल-भारत सीमा से गुजरने वाली अरावली पर्वत श्रेणी के तलहटी में वन्य ग्रामों को विकास का पंख भी लग सकेगा.
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नेचर लिविंग की तर्ज पर इको पर्यटन को किया जाएगा विकसित
नेचर वाकिंग और नेचर लिविंग की तर्ज पर इको पर्यटन की संभावनाओं को विकसित करने के लिए यह संयुक्त प्रोजेक्ट थारू जाति के बहुलता वाले 4 ग्राम सभाओं में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू किया जाएगा. यहां पर आने वाले पर्यटकों को न केवल नेचर वाकिंग का मौका मिलेगा. बल्कि सुहेलवा वन्यजीव प्रभाग से जुड़ी चीजों को देखने समझने का मौका मिल सकेगा. इसके अलावा सैंकड़ों साल पुरानी थारू संस्कृति को भी जानने-समझने का मौका मिल सकेगा.
सीडीओ और डीएफओ ने साथ मिलकर एक संयुक्त प्रोजेक्ट बनाया है. जिसके अंतर्गत इको टूरिज्म को जिले में बढ़ावा मिल सकेगा. इसके तहत पहली दफा चार वन्य ग्रामों को चयनित किया जा रहा है. जहां पर थारू जनजाति के लोग रहते हैं. यहां पर आने वाले पर्यटक न केवल नेचुरल लिविंग और नेचर वाकिंग का आनंद ले सकेंगे. बल्कि थारू जनजाति से जुड़ी सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति को भी समझ और सीख सकेंगे. आने वाले समय में इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा.
-कृष्णा करुनेश, जिलाधिकारी, बलरामपुर