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अक्षय नवमी के दिन ही आम जनमानस के लिए खोला जाता है राधा कृष्ण का यह अनोखा मंदिर

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में 1857 में राज परिवार द्वारा स्थापित राधा कृष्ण का अनोखा मंदिर स्थित है. यह मंदिर अक्षय नवमी के दिन ही आम जनमानस के लिए खोला जाता है. आइए जानते है इस मंदिर की खास विशेषताएं.

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Published : Nov 6, 2019, 8:44 AM IST

राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्तियां.

बलरामपुरः जिले के राज परिवार का एक विस्तृत इतिहास रहा है. यह राज परिवार आज भी सबसे धनवान राज्य परिवारों में से एक माना जाता है, फिर चाहे वह संम्पति का मामला हो या परंपरा का. राज परिवार द्वारा आज भी तमाम तरह की परम्पराएं यथावत रूप में न केवल सहेजी जा रही हैं बल्कि कई ऐसी परम्पराएं हैं, जो आज भी राज परिवार आम जनमानस के लिए सैकड़ों सालों से करता आ रहा है.

राधा कृष्ण का यह अनोखा मंदिर.

जिले में एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है, जिसे साल में केवल 1 दिन आम लोगों के लिए खोला जाता है. राज परिवार द्वारा कायम की गई यह परंपरा तकरीबन डेढ़ सौ सालों से आज भी चलती चली आ रही है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु अक्षय नवमी के दिन इस मंदिर में स्थापित राधा कृष्ण की मूर्ति की एक झलक देखने को बेताब नजर दिखाई देते हैं. मान्यता है कि इस दिन श्रद्धालुओं की सप्तकोशी परिक्रमा तब तक अधूरी रह जाती है, जब तक वे इस मंदिर का दर्शन न कर लें.

बेहद खूबसूरत हैं राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्तियां
साल 1857 में राज परिवार द्वारा स्थापित राधा कृष्ण का यह भव्य मंदिर नीलबाग पैलेस में तकरीबन 10 एकड़ में स्थित है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसकी अष्टधातु की मूर्तियां महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद के देखरेख में बनवाई गई थी. दूसरे प्रदेशों से आए कारीगरों ने बेहद खूबसूरती के साथ अष्टधातु की मूर्तियों को ढ़लाई करके बनाया था. लोगों का यह भी कहना हैं कि अवध प्रांत में अष्टधातु की राधा-कृष्ण की यह मूर्ति सबसे बड़ी है.

भारतीय स्थापत्य कला की छाप
इस मंदिर का निर्माण भी अति विशिष्ट तरीके से किया गया है. मंदिर में अति प्राचीन दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला की छाप देखने को मिलती है. अपने आप में ऐतिहासिक और कलात्मक विशेषताओं को समेटे इस मंदिर की पूरे प्रदेश में अलग ही पहचान है. सामान्य दिनों में आम जनता को इस मंदिर में पूजन अर्चन करने की अनुमति नहीं है. सिर्फ राज परिवार के लोग ही इसमें पूजन अर्चन करते हैं. यह मंदिर केवल अक्षय नवमी के दिन ही आम जनमानस के लिए खोला जाता है.

सप्तकोसी परिक्रमा का आयोजन
इस मंदिर से आम जनता की भी आस्था का खासा जुड़ाव होने के कारण ही अक्षय नवमी के दिन नगर और आसपास के गांवों के लोग पूजन दर्शन के लिए यहां आते हैं. इस दिन नगर में सप्तकोशी परिक्रमा का आयोजन भी किया जाता है. परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जब तक वह इस मंदिर में राधा कृष्ण की पूजा न कर लें तब तक उनकी परिक्रमा अधूरी ही रह जाती है.

मंदिर अपने आप में विशेष
पुजारी बालमुकुंद पांडे के अनुसार मंदिर के स्थापत्य कला और इसके 1 दिन खुलने के कारण ही यह मंदिर अपने आप में विशेष हो जाता है. साथ ही उनका कहना है कि अक्षय नवमी के दिन इस मंदिर को आम जनमानस के लिए खोला जाता है. हजारों की संख्या में लोग भगवान कृष्ण का दर्शन कर प्रसाद प्राप्त करते हैं.

इस मंदिर में राधा कृष्ण के अलावा अष्टधातु से ही बनी भगवान गणेश और गरुड़ की मूर्तियां और संगमरमर की बनी अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गई है.

स्थापत्य कला आम जनमानस को प्रभावित करने वाली
राज परिवार के लिए काम करने वाले नारायण प्रसाद इस मंदिर की विशेषता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मंदिर के स्थापत्य कला आम जनमानस को प्रभावित करने वाली है. सालों से इस मंदिर की भले ही रंगाई पुताई न की गई हो, लेकिन दीवारों की नक्काशी और यहां के खंभे लोगों का आज भी मन मोह लेते हैं.

इसे भी पढ़ें- गौमाता के आशीर्वाद से होने जा रहा मंदिर निर्माण: सांसद लल्लू सिंह

बलरामपुरः जिले के राज परिवार का एक विस्तृत इतिहास रहा है. यह राज परिवार आज भी सबसे धनवान राज्य परिवारों में से एक माना जाता है, फिर चाहे वह संम्पति का मामला हो या परंपरा का. राज परिवार द्वारा आज भी तमाम तरह की परम्पराएं यथावत रूप में न केवल सहेजी जा रही हैं बल्कि कई ऐसी परम्पराएं हैं, जो आज भी राज परिवार आम जनमानस के लिए सैकड़ों सालों से करता आ रहा है.

राधा कृष्ण का यह अनोखा मंदिर.

जिले में एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है, जिसे साल में केवल 1 दिन आम लोगों के लिए खोला जाता है. राज परिवार द्वारा कायम की गई यह परंपरा तकरीबन डेढ़ सौ सालों से आज भी चलती चली आ रही है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु अक्षय नवमी के दिन इस मंदिर में स्थापित राधा कृष्ण की मूर्ति की एक झलक देखने को बेताब नजर दिखाई देते हैं. मान्यता है कि इस दिन श्रद्धालुओं की सप्तकोशी परिक्रमा तब तक अधूरी रह जाती है, जब तक वे इस मंदिर का दर्शन न कर लें.

बेहद खूबसूरत हैं राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्तियां
साल 1857 में राज परिवार द्वारा स्थापित राधा कृष्ण का यह भव्य मंदिर नीलबाग पैलेस में तकरीबन 10 एकड़ में स्थित है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसकी अष्टधातु की मूर्तियां महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद के देखरेख में बनवाई गई थी. दूसरे प्रदेशों से आए कारीगरों ने बेहद खूबसूरती के साथ अष्टधातु की मूर्तियों को ढ़लाई करके बनाया था. लोगों का यह भी कहना हैं कि अवध प्रांत में अष्टधातु की राधा-कृष्ण की यह मूर्ति सबसे बड़ी है.

भारतीय स्थापत्य कला की छाप
इस मंदिर का निर्माण भी अति विशिष्ट तरीके से किया गया है. मंदिर में अति प्राचीन दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला की छाप देखने को मिलती है. अपने आप में ऐतिहासिक और कलात्मक विशेषताओं को समेटे इस मंदिर की पूरे प्रदेश में अलग ही पहचान है. सामान्य दिनों में आम जनता को इस मंदिर में पूजन अर्चन करने की अनुमति नहीं है. सिर्फ राज परिवार के लोग ही इसमें पूजन अर्चन करते हैं. यह मंदिर केवल अक्षय नवमी के दिन ही आम जनमानस के लिए खोला जाता है.

सप्तकोसी परिक्रमा का आयोजन
इस मंदिर से आम जनता की भी आस्था का खासा जुड़ाव होने के कारण ही अक्षय नवमी के दिन नगर और आसपास के गांवों के लोग पूजन दर्शन के लिए यहां आते हैं. इस दिन नगर में सप्तकोशी परिक्रमा का आयोजन भी किया जाता है. परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जब तक वह इस मंदिर में राधा कृष्ण की पूजा न कर लें तब तक उनकी परिक्रमा अधूरी ही रह जाती है.

मंदिर अपने आप में विशेष
पुजारी बालमुकुंद पांडे के अनुसार मंदिर के स्थापत्य कला और इसके 1 दिन खुलने के कारण ही यह मंदिर अपने आप में विशेष हो जाता है. साथ ही उनका कहना है कि अक्षय नवमी के दिन इस मंदिर को आम जनमानस के लिए खोला जाता है. हजारों की संख्या में लोग भगवान कृष्ण का दर्शन कर प्रसाद प्राप्त करते हैं.

इस मंदिर में राधा कृष्ण के अलावा अष्टधातु से ही बनी भगवान गणेश और गरुड़ की मूर्तियां और संगमरमर की बनी अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गई है.

स्थापत्य कला आम जनमानस को प्रभावित करने वाली
राज परिवार के लिए काम करने वाले नारायण प्रसाद इस मंदिर की विशेषता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मंदिर के स्थापत्य कला आम जनमानस को प्रभावित करने वाली है. सालों से इस मंदिर की भले ही रंगाई पुताई न की गई हो, लेकिन दीवारों की नक्काशी और यहां के खंभे लोगों का आज भी मन मोह लेते हैं.

इसे भी पढ़ें- गौमाता के आशीर्वाद से होने जा रहा मंदिर निर्माण: सांसद लल्लू सिंह

Intro:बलरामपुर के राजपरिवार का एक विस्तृत इतिहास रहा है। यहां का राजपरिवार आज भी सबसे धनाढ्य राज्य परिवारों में से एक माना है। फिर वह चाहे संम्पति का मामला हो या परंपरा का। राज परिवार द्वारा आज भी तमाम तरह की परम्पराएं यथावत रूप में न केवल सहेजी जा रही हैं। बल्कि सही जी जा रहे हैं बल्कि कई ऐसी परम्पराएं हैं, जो आज भी राज परिवार आम जनमानस के लिए सैकड़ों सालों से करता आ रहा है। बलरामपुर नगर में एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है। जिसे केवल साल में केवल 1 दिन आम लोगों के लिए खोला जाता है। राज परिवार द्वारा कायम की गई यह परंपरा तकरीबन डेढ़ सौ सालों से आज भी चली आ रही है। अक्षय नवमी के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु राधा कृष्ण के इस मंदिर में स्थापित मूर्ति की एक झलक पाने को बेताब देखाई देते हैं। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धालुओं की सप्तकोशी परिक्रमा तब तक अधूरी रह जाती है। जब तक वे इस मंदिर का दर्शन-पूजन ना कर लें।


Body:राज परिवार द्वारा साल 1857 में स्थापित राधा कृष्ण का यह भव्य मंदिर नीलबाग पैलेस में तकरीबन 10 एकड़ में स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसकी अष्टधातु की मूर्तियां यहीं पर महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद के देखरेख में बनवाई गई थी। दूसरे प्रदेशों से आए कारीगरों ने बेहद खूबसूरती के साथ अष्टधातु की मूर्तियों को ढ़लाई करके बनाया था। लोग यह भी कहते हैं कि अवध प्रांत में राधा-कृष्ण की अष्टधातु की यह सबसे बड़ी मूर्ति है।
इस मंदिर का निर्माण भी अति विशिष्ट तरीके से किया गया है। मंदिर में अति प्राचीन दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला की छाप मिलती है। इसकी विशेषता यहां स्थापित तकरीबन 50 स्तम्भों के साथ साथ दीवार व छत में भी दिखाई देती है। अपने आप में ऐतिहासिक व कलात्मक विशेषताओं को समेटे इस मंदिर की पूरे प्रदेश में अलग पहचान है। सामान्य दिनों में आम जनता को इस मंदिर में पूजन अर्चन करने की अनुमति नहीं है। सिर्फ राजपरिवार के लोग ही इसमें पूजन अर्चन करते हैं। यह मंदिर अक्षय नवमी के दिन आम जनमानस के लिए खोला जाता है।
इस मंदिर से आम जनता की भी आस्था का खासा जुड़ाव होने के कारण ही अक्षय नवमी के दिन नगर व आसपास के गांवों के लोग पूजन दर्शन के लिए यहां पर जुटते हैं। इस दिन नगर में सप्तकोशी परिक्रमा का आयोजन भी किया जाता है। परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओं की या मान्यता है कि जब तक वह इस मंदिर में राधा कृष्ण की पूजा अर्चना कर लें तब तक न केवल उनकी परिक्रमा अधूरी ही रह जाती है बल्कि इसका पूरा फल भी प्राप्त नहीं होता है।


Conclusion:पुजारी बालमुकुंद पांडे के अनुसार इस मंदिर की विशेष महत्व है। इसके स्थापत्य कला और इसके 1 दिन खोलने के कारण ही यह मंदिर अपने आप में विशेष हो जाता है। वह कहते हैं कि अक्षय नवमी के दिन इस मंदिर को आम जनमानस के लिए खोल दिया जाता है। हजारों की संख्या में लोग यहां दर्शन करते हैं और भगवान कृष्ण का प्रसाद प्राप्त करते हैं।
वह कहते हैं कि यहां पर राधा कृष्ण के अलावा भगवान गणेश और गरुड़ की भी मूर्तियां स्थापित हैं। जो अष्टधातु से ही बनी है। इसके साथ ही संगमरमर की अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मंदिर में स्थापित की गई है।
वहीं, राज परिवार के लिए काम करने वाले नारायण प्रसाद बताते हैं कि 1857 में स्थापित इस मंदिर की सबसे बड़ी महत्वता गर्भ गृह में स्थापित राधा कृष्ण की मूर्तियां है। तकरीबन 3 फीट लंबी मूर्ति अष्टधातु से यहीं पर ढलाई करवाकर महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद ने बनवाई थी। वह कहते हैं कि यह अवध प्रांत की सबसे बड़ी राधा कृष्ण की मूर्तियों में से एक है। जो अष्ट धातु से बनी है।
इस मंदिर की विशेषता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि स्थिति इसके स्थापत्य कला आम जनमानस को प्रभावित करने वाली है। सालों से इस मंदिर भले ही रंगाई पुताई ना की गई हो लेकिन दीवारों की नक्काशी और यहां के खंभे लोगों का आज भी मन मोह लेते हैं।
बाईट :-
01 :- बालमुकुंद पुजारी,
02 :- नारायण प्रसाद, कर्मी राज परिवार
पीटीसी :- योगेंद्र त्रिपाठी, 9839325432
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