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जानिए, बलरामपुर में मनरेगा में मिल रहे काम से कितने संतुष्ट हैं प्रवासी मजदूर

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में सभी फैक्ट्रियां बंद हो गई. लिहाजा बलरामपुर जिले में भी करीब 80 हजार से ज्यादा श्रमिक वापस आए. इन मजदूरों के रोजगार की चुनौती पर जिला प्रशासन ने इन्हें मनरेगा के तहत ही गांव में ही रोजगार मुहैया कराया है. ईटीवी भारत ने इन मजदूरों से बात की और हकीकत जानने की कोशिश की. देखिए यह खास रिपोर्ट...

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बलरामपुर मनरेगा स्पेशल स्टोरी.
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Published : Jun 21, 2020, 5:48 PM IST

बलरामपुर: कोरोना वायरस के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में घर से दूर काम कर रहे प्रवासी मजदूर दोबारा अपने गांव की तरफ लौटे. यहां पहुंचने के बाद इन मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इन्हें अब रोजगार कौन देगा? इनकी रोजी, रोटी और गृहस्थी कैसे चलेगी? जिले में भी तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिक आए हैं, जिनके लिए सरकार द्वारा तमाम व्यवस्थाएं की गई हैं.

स्पेशल रिपोर्ट...

मनरेगा से लोगों के घर हुए गुलजार
बलरामपुर जिले में बड़ी संख्या में आए प्रवासी मजदूरों को दिहाड़ी पर इतनी बड़ी संख्या में काम मिलना तो नामुमकिन सा था और दिहाड़ी मजदूरी में पैसे का भी घट जाना जायज था, लेकिन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को और अधिक पुख्ता किया, जिससे बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलना शुरू हुआ. इससे उनके घर कम ही पैसों से सही, लेकिन गुलजार हुए.

28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के बने जॉब कार्ड
बलरामपुर जिले में आए तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिकों में से अब तक 28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के नए जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं. जबकि इससे पहले तकरीबन एक लाख जॉब कार्ड धारक काम कर रहे थे. प्रवासी श्रमिकों को रोजगार की गारंटी देने के लिए जिला प्रशासन और श्रम विभाग ने कमर कसी और जिले भर में अतिरिक्त तकरीबन 48 हजार से ज्यादा मानव दिवस अधिक सृजित किए जाने लगे.

प्रवासी श्रमिकों को मिला रोजगार
मनरेगा में बाहर से आए श्रमिकों को रोजगार मिल ही रहा है. इसके साथ ही उनके परिवार में काम कर लेने योग्य लोगों को भी रोजगार दिया जा रहा है, जिससे उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या न खड़ी हो. मुख्य तौर पर दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब से आए इन प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत तालाब खुदाई, मार्ग पटाई, सड़क पटाई, कुआं खुदाई और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे घरों में काम दिया जा रहा है.

फैक्ट्रियां बंद होने पर वापस लौटे घर
पंजाब से लौटकर आई संगीता ग्रामसभा भीखपुर में चल रहे सड़क पटाई के काम में अपनी रोजी-रोटी कमा रही है. मनरेगा के तहत किए जा रहे इस काम में तकरीबन 150 श्रमिक लगे हुए हैं. संगीता लॉकडाउन का अनुभव बताते हुए कहती हैं, 'मैं लुधियाना में एक हैंगर बनाने वाली कंपनी में काम करती थी. वहां पर हमें तकरीबन 300 रुपये प्रतिदिन की दर से मजदूरी मिलती थी. लॉकडाउन हुआ तो फैक्ट्रियां बंद हो गईं, जिसके बाद हम लोग किसी तरह अपने घर वापस लौटे.'

घर आने पर बना जॉब कार्ड
संगीता बताती हैं, 'घर वापस लौटे तो पहले क्वारंटाइन होना पड़ा. उसके बाद हमारा मनरेगा जॉब कार्ड बना और अब मैं यहां काम कर रही हूं. पंजाब के लुधियाना की तरह ही यहां पर भी मुझे 200 रुपये दिहाड़ी मिल जाती है. इसके साथ ही यहां पर चल रहे काम में मेरे पति और मेरे घर के अन्य सदस्य भी काम कर रहे हैं, जो मेरे लिए पूरी तरह संतोषजनक है.' प्रवासी श्रमिक इमरतीलाल ने बताया कि वे मनरेगा के तहत मिले काम से संतुष्ट हैं. जहां वे पहले काम करते थे, वहां उन्हें ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता था. यहां मनरेगा में उन्हें 200 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं और लगातार काम मिल रहा है.

balrampur mgnrega special story
मनरेगा में काम करते प्रवासी श्रमिक.

मनरेगा के तहत लोगों को दिया जा रहा काम
ग्राम सभा भीखपुर के प्रधान वेद प्रकाश पांडे बताते हैं कि जब से देश में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन हुआ तब से अन्य जगहों की तरह ही हमारे गांव में भी प्रवासी श्रमिक आए. इन्हें रोजी-रोटी उपलब्ध करवाने के लिए हम लोग लगातार प्रयासरत हैं. मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में बाहर से आए लोगों को काम दिया जा रहा है, जो इस मुश्किल समय में उन्हें काफी मदद कर रहा है.

प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराना प्राथमिकता
ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) राजेश कुमार बताते हैं कि बाहर से आ रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है. उन्होंने बताया कि जब हमने मजदूरों से प्रवास के जगहों पर मिल रही मजदूरी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हमें वहां पर ढाई सौ से 300 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल जाया करती थी, जबकि यहां पर हम उन्हें 201 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी दे रहे हैं.

200 प्रवासी श्रमिकों को मिल रहा रोजगार
बीडीओ राजेश कुमार ने बताया कि भीखपुर में 200 प्रवासी श्रमिक आए हुए थे. इनमें से 54 के नए जॉब कार्ड बनाए गए. वहीं अन्य के जॉब कार्ड उनके परिवार वालों के साथ ही जुड़े हुए थे. उन्होंने बताया कि यहां पर सड़क पटाई के चल रहे काम में अभी डेढ़ सौ से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं और प्रत्येक ग्राम सभा को यह निर्देश दिया गया है कि उनके यहां कम से कम दो कार्य चलते रहें, जिससे प्रवासी श्रमिकों के पास रोजगार की कमी न हो.

जिले के सखी सेंटर की बदली सूरत
राजेश कुमार बताते हैं कि हमारी प्राथमिकता बाहर से आने वाले प्रवासी श्रमिकों को अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने को लेकर है, जिससे उनके सामने किसी तरह की कोई समस्या न खड़ी हो.

बलरामपुर: कोरोना वायरस के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में घर से दूर काम कर रहे प्रवासी मजदूर दोबारा अपने गांव की तरफ लौटे. यहां पहुंचने के बाद इन मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इन्हें अब रोजगार कौन देगा? इनकी रोजी, रोटी और गृहस्थी कैसे चलेगी? जिले में भी तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिक आए हैं, जिनके लिए सरकार द्वारा तमाम व्यवस्थाएं की गई हैं.

स्पेशल रिपोर्ट...

मनरेगा से लोगों के घर हुए गुलजार
बलरामपुर जिले में बड़ी संख्या में आए प्रवासी मजदूरों को दिहाड़ी पर इतनी बड़ी संख्या में काम मिलना तो नामुमकिन सा था और दिहाड़ी मजदूरी में पैसे का भी घट जाना जायज था, लेकिन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को और अधिक पुख्ता किया, जिससे बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलना शुरू हुआ. इससे उनके घर कम ही पैसों से सही, लेकिन गुलजार हुए.

28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के बने जॉब कार्ड
बलरामपुर जिले में आए तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिकों में से अब तक 28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के नए जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं. जबकि इससे पहले तकरीबन एक लाख जॉब कार्ड धारक काम कर रहे थे. प्रवासी श्रमिकों को रोजगार की गारंटी देने के लिए जिला प्रशासन और श्रम विभाग ने कमर कसी और जिले भर में अतिरिक्त तकरीबन 48 हजार से ज्यादा मानव दिवस अधिक सृजित किए जाने लगे.

प्रवासी श्रमिकों को मिला रोजगार
मनरेगा में बाहर से आए श्रमिकों को रोजगार मिल ही रहा है. इसके साथ ही उनके परिवार में काम कर लेने योग्य लोगों को भी रोजगार दिया जा रहा है, जिससे उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या न खड़ी हो. मुख्य तौर पर दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब से आए इन प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत तालाब खुदाई, मार्ग पटाई, सड़क पटाई, कुआं खुदाई और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे घरों में काम दिया जा रहा है.

फैक्ट्रियां बंद होने पर वापस लौटे घर
पंजाब से लौटकर आई संगीता ग्रामसभा भीखपुर में चल रहे सड़क पटाई के काम में अपनी रोजी-रोटी कमा रही है. मनरेगा के तहत किए जा रहे इस काम में तकरीबन 150 श्रमिक लगे हुए हैं. संगीता लॉकडाउन का अनुभव बताते हुए कहती हैं, 'मैं लुधियाना में एक हैंगर बनाने वाली कंपनी में काम करती थी. वहां पर हमें तकरीबन 300 रुपये प्रतिदिन की दर से मजदूरी मिलती थी. लॉकडाउन हुआ तो फैक्ट्रियां बंद हो गईं, जिसके बाद हम लोग किसी तरह अपने घर वापस लौटे.'

घर आने पर बना जॉब कार्ड
संगीता बताती हैं, 'घर वापस लौटे तो पहले क्वारंटाइन होना पड़ा. उसके बाद हमारा मनरेगा जॉब कार्ड बना और अब मैं यहां काम कर रही हूं. पंजाब के लुधियाना की तरह ही यहां पर भी मुझे 200 रुपये दिहाड़ी मिल जाती है. इसके साथ ही यहां पर चल रहे काम में मेरे पति और मेरे घर के अन्य सदस्य भी काम कर रहे हैं, जो मेरे लिए पूरी तरह संतोषजनक है.' प्रवासी श्रमिक इमरतीलाल ने बताया कि वे मनरेगा के तहत मिले काम से संतुष्ट हैं. जहां वे पहले काम करते थे, वहां उन्हें ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता था. यहां मनरेगा में उन्हें 200 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं और लगातार काम मिल रहा है.

balrampur mgnrega special story
मनरेगा में काम करते प्रवासी श्रमिक.

मनरेगा के तहत लोगों को दिया जा रहा काम
ग्राम सभा भीखपुर के प्रधान वेद प्रकाश पांडे बताते हैं कि जब से देश में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन हुआ तब से अन्य जगहों की तरह ही हमारे गांव में भी प्रवासी श्रमिक आए. इन्हें रोजी-रोटी उपलब्ध करवाने के लिए हम लोग लगातार प्रयासरत हैं. मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में बाहर से आए लोगों को काम दिया जा रहा है, जो इस मुश्किल समय में उन्हें काफी मदद कर रहा है.

प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराना प्राथमिकता
ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) राजेश कुमार बताते हैं कि बाहर से आ रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करवाना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है. उन्होंने बताया कि जब हमने मजदूरों से प्रवास के जगहों पर मिल रही मजदूरी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हमें वहां पर ढाई सौ से 300 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल जाया करती थी, जबकि यहां पर हम उन्हें 201 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी दे रहे हैं.

200 प्रवासी श्रमिकों को मिल रहा रोजगार
बीडीओ राजेश कुमार ने बताया कि भीखपुर में 200 प्रवासी श्रमिक आए हुए थे. इनमें से 54 के नए जॉब कार्ड बनाए गए. वहीं अन्य के जॉब कार्ड उनके परिवार वालों के साथ ही जुड़े हुए थे. उन्होंने बताया कि यहां पर सड़क पटाई के चल रहे काम में अभी डेढ़ सौ से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं और प्रत्येक ग्राम सभा को यह निर्देश दिया गया है कि उनके यहां कम से कम दो कार्य चलते रहें, जिससे प्रवासी श्रमिकों के पास रोजगार की कमी न हो.

जिले के सखी सेंटर की बदली सूरत
राजेश कुमार बताते हैं कि हमारी प्राथमिकता बाहर से आने वाले प्रवासी श्रमिकों को अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने को लेकर है, जिससे उनके सामने किसी तरह की कोई समस्या न खड़ी हो.

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