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इंटरनेशनल नर्स डे: नर्स के प्रयास से मातृ-शिशु मृत्युदर में आई कमी, बनाई अलग पहचान

इस इंटरनेशनल नर्स डे पर हम आपको बता रहे हैं. एक ऐसी नर्स के बारे में जिनकी मेहनत, त्याग और लगन से क्षेत्र में न सिर्फ मातृ-शिशु मृत्युदर में कमी आई. बल्कि संस्थागत प्रसव को भी बढ़ावा मिला. इसके बाद लोगों का विश्वास इनके प्रति बढ़ता चला गया और इन्होंने इस क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई. जानिए कौन हैं यह नर्स.

international nurse day
इंटरनेशनल नर्स डे
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Published : May 12, 2020, 7:07 AM IST

बलरामपुर: मरीज का इलाज तो डॉक्टर करता है, लेकिन देखभाल का जिम्मा नर्स संभालती हैं. बेहतर नर्स बनने के लिए त्याग और समर्पण की भावना के साथ-साथ बेहतर ट्रेनिंग और तजुर्बा होना भी जरूरी है. अपने इसी समर्पण और तजुर्बे के सहारे जिले की एक स्टाफ नर्स भारत-नेपाल के सीमावर्ती स्वास्थ्य केन्द्र पर परिवारों की खुशियों में इजाफा कर रही है.

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नवजात की देखभाल करती नर्स विमल कुमारी

बिटिया कहकर बुलाते हैं लोग
पीएचसी पर इनकी तैनाती से न सिर्फ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है, बल्कि थारू बाहुल्य गांवों के लोगों का विश्वास भी इनके प्रति बढ़ा है. हम बात कर रहे हैं थारू विकास परियोजना के तहत संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में तैनात स्टाफ नर्स विमल कुमारी पटेल की. इन्हें थारू जनजाति के लोग बिटिया कहकर बुलाते हैं. विमल पर ग्रामीणों का विश्वास ऐसे ही नहीं बढ़ा, इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत और अपने काम के प्रति समर्पण की भावना है.

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प्रसव के बाद महिला के साथ नर्स विमल कुमारी पटेल
बढ़ा प्रसव का आंकड़ा 19 नवम्बर 2012 को बस्ती जिले की रहने वाली 22 वर्षीय विमल की तैनाती सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र पचपेड़वा में हुई. विमल के सामने नया काम होने की चुनौती और स्टॉफ की कमी के कारण बहुत सी कठिनाइयां सामने आई, लेकिन सबका उन्होंने डटकर सामना किया. उनकी तैनाती से पूर्व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव काफी कम होता था, लेकिन इनकी तैनाती के बाद संस्थागत प्रसव का आंकड़ा बढ़ने लगा. करीब दो साल की मेहनत के बाद संस्थागत प्रसव के आंकड़े बढ़कर करीब 250 से 300 पहुंच गया.
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मेहनत और लगन से काम करते हुए नर्स विमल कुमारी
मातृ-शिशु मृत्युदर में आयी कमी7 साल सीएचसी में काम करने के बाद नर्स विमल को जिला स्वास्थ्य विभाग ने नई जिम्मेदारी दी. 14 सितम्बर 2019 को उनकी तैनाती भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में बने अंतिम थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में हुई. यहां प्रसव न के बराबर होने के कारण जिला स्वास्थ्य समिति ने इसे प्रसव ईकाई बनाने का निर्णय लिया और विमल कुमारी पटेल की तैनाती की गई. जिसके बाद उन्होंने अपने अनुभव और मिलनसार व्यवहार से गर्भवती महिलाओं के परिवार वालों को संस्थागत प्रसव कराने के लिए प्रेरित किया. इसका नतीजा यह हुआ कि क्षेत्र में मातृ-शिशु मृत्युदर में काफी कमी आई. इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला.क्या कहती हैं विमलविमल बतातीं है कि वह जब इस अस्पताल में आईं तो गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने के लिए उचित सलाह देने लगीं. महिलाओं में एनीमिया को दूर करने के लिए आयरन और कैल्शियम की गोली का वितरण, गर्भवती महिलाओं की गम्भीर स्थिति होने पर जिला मुख्यालय रेफर करना, महिलाओं की नार्मल डिलीवरी करवाना, ओपीडी में उचित सलाह देना, सहित तमाम कामों को अंजाम दिया और आज भी देती आ रही हैं. विमल कुमारी बताती हैं कि उनके पीएचसी में प्रतिमाह करीब 40 से 60 सुरक्षित प्रसव कराए जाते हैं. पूर्व और वर्तमान स्वास्थ्य केन्द्रों को मिलाकर वह करीब एक हजार के आसपास महिलाओं के प्रसव करवा चुकीं है. वह कहती हैं कि विशुनपुर विश्राम में अब तक करीब 350 प्रसव के दौरान करीब 40 केस ऐसे है. जिसमें सेक्शन मशीन, तापमान नियंत्रण, बैग, मास्क और आक्सीजन से नवजात बच्चों की जान बचा चुकी हैं.विमल कुमारी बताती है कि प्रतिमाह करीब 6 से 7 केस ऐसे निकलते है, जिसमें बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है या वे सही से रोते नहीं हैं. ऐसे केस को जिला मुख्यालय रेफर किया जाता है. समाज के हर व्यक्ति तक वह अपनी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा सकें और महिलाओं का सुरक्षित प्रसव करा सकें. इसीलिए वह 24 घंटा सातों दिन ड्यूटी पर एलर्ट रहतीं हैं.


क्या कहते हैं अधिकारी
सीएचसी पचपेड़वा के एमओआईसी डॉ. मिथलेश कुमार ने नर्स विमल के बारे में बताते हैं कि यह अपना काम मेहनत और लगन के साथ करतीं हैं. विमल कुमारी की मेहनत और काम को ही देखते हुए थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में प्रसव ईकाई संचालन की जिम्मेदारी दी गई. वहां पर भी उन्होंने अपने व्यवहार और मेहनत से न के बराबर हो रहे संस्थागत प्रसव को काफी बढ़ाया है, जिससे मातृ शिशु मृत्युदर में कमी आई है.

बलरामपुर: मरीज का इलाज तो डॉक्टर करता है, लेकिन देखभाल का जिम्मा नर्स संभालती हैं. बेहतर नर्स बनने के लिए त्याग और समर्पण की भावना के साथ-साथ बेहतर ट्रेनिंग और तजुर्बा होना भी जरूरी है. अपने इसी समर्पण और तजुर्बे के सहारे जिले की एक स्टाफ नर्स भारत-नेपाल के सीमावर्ती स्वास्थ्य केन्द्र पर परिवारों की खुशियों में इजाफा कर रही है.

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नवजात की देखभाल करती नर्स विमल कुमारी

बिटिया कहकर बुलाते हैं लोग
पीएचसी पर इनकी तैनाती से न सिर्फ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है, बल्कि थारू बाहुल्य गांवों के लोगों का विश्वास भी इनके प्रति बढ़ा है. हम बात कर रहे हैं थारू विकास परियोजना के तहत संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में तैनात स्टाफ नर्स विमल कुमारी पटेल की. इन्हें थारू जनजाति के लोग बिटिया कहकर बुलाते हैं. विमल पर ग्रामीणों का विश्वास ऐसे ही नहीं बढ़ा, इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत और अपने काम के प्रति समर्पण की भावना है.

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प्रसव के बाद महिला के साथ नर्स विमल कुमारी पटेल
बढ़ा प्रसव का आंकड़ा 19 नवम्बर 2012 को बस्ती जिले की रहने वाली 22 वर्षीय विमल की तैनाती सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र पचपेड़वा में हुई. विमल के सामने नया काम होने की चुनौती और स्टॉफ की कमी के कारण बहुत सी कठिनाइयां सामने आई, लेकिन सबका उन्होंने डटकर सामना किया. उनकी तैनाती से पूर्व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव काफी कम होता था, लेकिन इनकी तैनाती के बाद संस्थागत प्रसव का आंकड़ा बढ़ने लगा. करीब दो साल की मेहनत के बाद संस्थागत प्रसव के आंकड़े बढ़कर करीब 250 से 300 पहुंच गया.
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मेहनत और लगन से काम करते हुए नर्स विमल कुमारी
मातृ-शिशु मृत्युदर में आयी कमी7 साल सीएचसी में काम करने के बाद नर्स विमल को जिला स्वास्थ्य विभाग ने नई जिम्मेदारी दी. 14 सितम्बर 2019 को उनकी तैनाती भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में बने अंतिम थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में हुई. यहां प्रसव न के बराबर होने के कारण जिला स्वास्थ्य समिति ने इसे प्रसव ईकाई बनाने का निर्णय लिया और विमल कुमारी पटेल की तैनाती की गई. जिसके बाद उन्होंने अपने अनुभव और मिलनसार व्यवहार से गर्भवती महिलाओं के परिवार वालों को संस्थागत प्रसव कराने के लिए प्रेरित किया. इसका नतीजा यह हुआ कि क्षेत्र में मातृ-शिशु मृत्युदर में काफी कमी आई. इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला.क्या कहती हैं विमलविमल बतातीं है कि वह जब इस अस्पताल में आईं तो गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने के लिए उचित सलाह देने लगीं. महिलाओं में एनीमिया को दूर करने के लिए आयरन और कैल्शियम की गोली का वितरण, गर्भवती महिलाओं की गम्भीर स्थिति होने पर जिला मुख्यालय रेफर करना, महिलाओं की नार्मल डिलीवरी करवाना, ओपीडी में उचित सलाह देना, सहित तमाम कामों को अंजाम दिया और आज भी देती आ रही हैं. विमल कुमारी बताती हैं कि उनके पीएचसी में प्रतिमाह करीब 40 से 60 सुरक्षित प्रसव कराए जाते हैं. पूर्व और वर्तमान स्वास्थ्य केन्द्रों को मिलाकर वह करीब एक हजार के आसपास महिलाओं के प्रसव करवा चुकीं है. वह कहती हैं कि विशुनपुर विश्राम में अब तक करीब 350 प्रसव के दौरान करीब 40 केस ऐसे है. जिसमें सेक्शन मशीन, तापमान नियंत्रण, बैग, मास्क और आक्सीजन से नवजात बच्चों की जान बचा चुकी हैं.विमल कुमारी बताती है कि प्रतिमाह करीब 6 से 7 केस ऐसे निकलते है, जिसमें बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है या वे सही से रोते नहीं हैं. ऐसे केस को जिला मुख्यालय रेफर किया जाता है. समाज के हर व्यक्ति तक वह अपनी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा सकें और महिलाओं का सुरक्षित प्रसव करा सकें. इसीलिए वह 24 घंटा सातों दिन ड्यूटी पर एलर्ट रहतीं हैं.


क्या कहते हैं अधिकारी
सीएचसी पचपेड़वा के एमओआईसी डॉ. मिथलेश कुमार ने नर्स विमल के बारे में बताते हैं कि यह अपना काम मेहनत और लगन के साथ करतीं हैं. विमल कुमारी की मेहनत और काम को ही देखते हुए थारू विकास परियोजना स्वास्थ्य केन्द्र विशुनपुर विश्राम में प्रसव ईकाई संचालन की जिम्मेदारी दी गई. वहां पर भी उन्होंने अपने व्यवहार और मेहनत से न के बराबर हो रहे संस्थागत प्रसव को काफी बढ़ाया है, जिससे मातृ शिशु मृत्युदर में कमी आई है.

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