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बलरामपुर: कैसे सही होगी संस्थागत प्रसव की पीड़ा, जब व्यवस्था 'जख्मी' कर रहे जिम्मेदार

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम युक्तियां सिर्फ कागज पर ही नजर आ रही हैं क्योंकि जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है. डेटा के अनुसार हालात इतने खराब हैं कि महिलाओं को प्रसव ऐसी जगह हो रहा जहां कोई भी सुविधा नहीं हैं.

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Published : Feb 8, 2020, 7:09 PM IST

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नहीं मिल रहा महिलाओं को सुविधाएं.

बलरामपुर: जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम युक्तियां कागज में बढ़िया काम कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्थिति में लगातार गिरावट जारी है. जिले के कुछ ब्लॉक तो नीति आयोग की ओर से निर्धारित तमाम इंडिकेटरों में बहुत अच्छा कर रहे हैं. वहीं कुछ की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है. बेहतर न करने वाले ब्लॉकों के कारण जिले का डेटा भी खराब हो रहा है. वैसे नीति आयोग के अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट में बलरामपुर ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में पहला स्थान और देश में 15वां स्थान प्राप्त किया है.

संस्थागत प्रसव आज भी चुनौती
बलरामपुर जिले में शिक्षा की कमी और रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण आज भी महज 51.53 महिलाएं ही अस्पतालों में अपनी प्रजनन प्रक्रिया पूरा कर पाती हैं. स्थिति सुधारने के दावों के बीच 48.47 फीसदी महिलाएं तमाम कारणों से अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती हैं. अगर स्टिल बर्थ की बात करें तो जिले में महज दिसंबर माह में ही 15 बच्चों की मौत जन्म के एक माह के भीतर या जन्म के दौरान ही मौत हो गई थी, जबकि इस डेटा का राष्ट्रीय औसत 12 है.

नहीं मिल रहा महिलाओं को सुविधाएं.

अस्पतालों में होती है वसूली
ईटीवी भारत ने संस्थागत प्रसव का जमीनी हकीकत जानने के लिए जिले के सुदूर इलाके पचपेड़वा में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया. यहां पर तमाम तरह की अव्यवस्थाएं नजर आईं. मसलन, प्रसूताओं को मिलने वाली सुविधाएं न के बराबर दिखीं. लेबर रूम से लेकर महिला वार्ड तक में गंदगी का भरमार दिखा. लेबर स्ट्रेचर पर न केवल खून के दाग दिखे, बल्कि लेबर रुम में हाइजीन की कमी भी दिखी.

इसे भी पढ़ें: कैसे सफल होगी जननी-शिशु सुरक्षा योजना, जब प्रसूताओं से होगी वसूली

वहीं प्रसूताओं के साथ आए तीमारदारों ने बताया कि यहां पर जननी शिशु सुरक्षा योजना के मातहत मिलने वाली सुविधाओं का निहायत आभाव है. न ही खाना मिलता है, न ही नाश्ता. बेबी पैड और सेनेटरी पैड लेकर दवाइयां तक बाहर से लाना पड़ता है. कुछ तीमारदारों ने यहां तक कहा कि अस्पताल परिसर में गंदगी रहती है. बेड पर चद्दर और कंबल तक नहीं है. इस कारण असुविधा होती है.

क्या कहता है पचपेड़वा ब्लॉक का डाटा
बलरामपुर जिला स्वास्थ्य समिति की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2019 से लेकर दिसंबर 2019 तक पचपेड़वा ब्लॉक में कुल 3250 असंस्थागत प्रसव हुए, जिसमें से 1515 महिलाओं ने असंस्थागत प्रसव प्रक्रिया को ऐसे जगहों पर अंजाम दिया जहां किसी तरह की सुविधा नहीं थी.

अगर पचपेड़वा के एएनसी (वह प्रक्रिया जिसमें गर्भवती महिलाओं को एक रजिस्ट्रेशन के जरिए सरकारी डेटा में लाकर तमाम तरह के लाभ दिए जाते हैं) में कुल महिलाओं में से महज 43.66 फीसदी महिलाओं को ही अस्पताल में प्रसव के लिए लाया जा सका. पचपेड़वा इस कारण से जिले में 6वें नंबर पर रहा.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जब पचपेड़वा की स्थिति के बारे में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आप जैसा बता रहे हैं अगर वैसे ही स्थिति है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं जांच करवा कर कार्रवाई करूंगा.

इसे भी पढ़ें: बलरामपुर में मिला कोरोना का एक संदिग्ध, पूरे जिले में हाई अलर्ट

वही सुविधाएं न दिए जाने पर सीएमओ ने कहा कि जलेसर तमाम तरह की सुविधाएं सीएचसी और पीएचसी सेंटर्स तक भेजी जाती है. अगर वहां पर तैनात कर्मचारी या अधिकारी मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं तो इसके लिए वह जिम्मेदार होंगे. उन्होंने चीजों को क्यों दबा के रखा है? क्यों मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं? यह जांच का विषय हम जल्द जांच करवा कर स्थिति में सुधार करने का वादा करते हैं.

कुल मिलाकर अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते. पिछले 6 महीने का डाटा वाकई में खराब नजर आता है, जिस स्थिति को बेहतर करके जिले में नीति आयोग के इंडिकेटर्स में टॉप स्थान हासिल किया है. उसी के डाटा में तमाम तरह की खराबी नजर आती है जो न केवल स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं बल्कि व्याप्त भ्रष्टाचार और मरीजों से वसूली किए जाने का प्रमाण भी देते हैं.

बलरामपुर: जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम युक्तियां कागज में बढ़िया काम कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्थिति में लगातार गिरावट जारी है. जिले के कुछ ब्लॉक तो नीति आयोग की ओर से निर्धारित तमाम इंडिकेटरों में बहुत अच्छा कर रहे हैं. वहीं कुछ की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है. बेहतर न करने वाले ब्लॉकों के कारण जिले का डेटा भी खराब हो रहा है. वैसे नीति आयोग के अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट में बलरामपुर ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में पहला स्थान और देश में 15वां स्थान प्राप्त किया है.

संस्थागत प्रसव आज भी चुनौती
बलरामपुर जिले में शिक्षा की कमी और रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण आज भी महज 51.53 महिलाएं ही अस्पतालों में अपनी प्रजनन प्रक्रिया पूरा कर पाती हैं. स्थिति सुधारने के दावों के बीच 48.47 फीसदी महिलाएं तमाम कारणों से अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती हैं. अगर स्टिल बर्थ की बात करें तो जिले में महज दिसंबर माह में ही 15 बच्चों की मौत जन्म के एक माह के भीतर या जन्म के दौरान ही मौत हो गई थी, जबकि इस डेटा का राष्ट्रीय औसत 12 है.

नहीं मिल रहा महिलाओं को सुविधाएं.

अस्पतालों में होती है वसूली
ईटीवी भारत ने संस्थागत प्रसव का जमीनी हकीकत जानने के लिए जिले के सुदूर इलाके पचपेड़वा में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया. यहां पर तमाम तरह की अव्यवस्थाएं नजर आईं. मसलन, प्रसूताओं को मिलने वाली सुविधाएं न के बराबर दिखीं. लेबर रूम से लेकर महिला वार्ड तक में गंदगी का भरमार दिखा. लेबर स्ट्रेचर पर न केवल खून के दाग दिखे, बल्कि लेबर रुम में हाइजीन की कमी भी दिखी.

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वहीं प्रसूताओं के साथ आए तीमारदारों ने बताया कि यहां पर जननी शिशु सुरक्षा योजना के मातहत मिलने वाली सुविधाओं का निहायत आभाव है. न ही खाना मिलता है, न ही नाश्ता. बेबी पैड और सेनेटरी पैड लेकर दवाइयां तक बाहर से लाना पड़ता है. कुछ तीमारदारों ने यहां तक कहा कि अस्पताल परिसर में गंदगी रहती है. बेड पर चद्दर और कंबल तक नहीं है. इस कारण असुविधा होती है.

क्या कहता है पचपेड़वा ब्लॉक का डाटा
बलरामपुर जिला स्वास्थ्य समिति की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2019 से लेकर दिसंबर 2019 तक पचपेड़वा ब्लॉक में कुल 3250 असंस्थागत प्रसव हुए, जिसमें से 1515 महिलाओं ने असंस्थागत प्रसव प्रक्रिया को ऐसे जगहों पर अंजाम दिया जहां किसी तरह की सुविधा नहीं थी.

अगर पचपेड़वा के एएनसी (वह प्रक्रिया जिसमें गर्भवती महिलाओं को एक रजिस्ट्रेशन के जरिए सरकारी डेटा में लाकर तमाम तरह के लाभ दिए जाते हैं) में कुल महिलाओं में से महज 43.66 फीसदी महिलाओं को ही अस्पताल में प्रसव के लिए लाया जा सका. पचपेड़वा इस कारण से जिले में 6वें नंबर पर रहा.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जब पचपेड़वा की स्थिति के बारे में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आप जैसा बता रहे हैं अगर वैसे ही स्थिति है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं जांच करवा कर कार्रवाई करूंगा.

इसे भी पढ़ें: बलरामपुर में मिला कोरोना का एक संदिग्ध, पूरे जिले में हाई अलर्ट

वही सुविधाएं न दिए जाने पर सीएमओ ने कहा कि जलेसर तमाम तरह की सुविधाएं सीएचसी और पीएचसी सेंटर्स तक भेजी जाती है. अगर वहां पर तैनात कर्मचारी या अधिकारी मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं तो इसके लिए वह जिम्मेदार होंगे. उन्होंने चीजों को क्यों दबा के रखा है? क्यों मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं? यह जांच का विषय हम जल्द जांच करवा कर स्थिति में सुधार करने का वादा करते हैं.

कुल मिलाकर अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते. पिछले 6 महीने का डाटा वाकई में खराब नजर आता है, जिस स्थिति को बेहतर करके जिले में नीति आयोग के इंडिकेटर्स में टॉप स्थान हासिल किया है. उसी के डाटा में तमाम तरह की खराबी नजर आती है जो न केवल स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं बल्कि व्याप्त भ्रष्टाचार और मरीजों से वसूली किए जाने का प्रमाण भी देते हैं.

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जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम युक्तियां कागज में बढ़ियां काम कर रही हैं। लेकिन जमीनी स्थिति में लगातार गिरावट जारी है। जिले के कुछ ब्लॉक तो नीति आयोग द्वारा निर्धारित तमाम इंडिकेटरों में बहुत अच्छा कर रहे हैं। वहीं, कुछ की स्थिति डामाडोल नज़र आती है। बेहतर ना करने वाले ब्लॉकों के कारण जिले का डेटा भी खराब हो रहा है। वैसे, नीति आयोग के अर्द्ध वार्षिक रिपोर्ट में बलरामपुर ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में पहला स्थान और देश में 15वां स्थान प्राप्त किया है।


Body:संस्थागत प्रसव आज भी चुनौती :-

बलरामपुर जिले में शिक्षा की कमी और रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण आज भी महज 51.53 महिलाएं ही अस्पतालों में अपनी प्रजनन प्रक्रिया पूरा कर पाती हैं। स्थिति सुधारने के दावों के बीच 48.47 फीसदी महिलाएं तमाम कारणों से अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती हैं। अगर स्टिल बर्थ की बात करें तो जिले में महज दिसंबर माह में ही 15 बच्चों की मौत जन्म के एक माह के भीतर या जन्म के दौरान हो गयी। जबकि इस डेटा का राष्ट्रीय औसत 12 है।

ऊपर से अस्पतालों में होती है वसूली :-

ईटीवी भारत ने संस्थागत प्रसव का जमीनी हकीकत जानने के लिए जिले के सुदूर इलाके पचपेड़वा में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया। यहां पर तमाम तरह की अव्यवस्थाएं नज़र आईं। मसलन, प्रसूताओं को मिलने वाली सुविधाएं ना के बराबर दिखीं। लेबर रूम से लेकर महिला वार्ड तक में गंदगी का भरमार दिखा। लेबर स्ट्रेचर पर ना केवल खून के दाग दिखे, बल्कि लेबर रुम में हाइजीन की कमी भी दिखी।
वहीं, प्रसूताओं के साथ आए तीमारदारों ने बताया कि यहां पर जननी शिशु सुरक्षा योजना के मातहत मिलने वाली सुविधाओं का निहायत आभाव है। ना ही खाना मिलता है। ना ही नाश्ता। बेबी पैड और सेनेटरी पैड लेकर दवाईयां तक बाहर से लाना पड़ता है।
कुछ तीमारदारों ने यहां तक कहा कि अस्पताल परिसर में गंदगी रहती है। बेड पर चद्दर और कंबल तक नहीं है। इस कारण असुविधा होती है।

क्या कहता है पचपेड़वा ब्लॉक का डाटा :-

अप्रैल 2019 से लेकर दिसंबर 2019 तक पचपेड़वा ब्लॉक में कुल 3250 असंस्थागत प्रसव हुए। जिसमें से 1515 महिलाओं ने असंस्थागत प्रसव प्रक्रिया को ऐसे जगहों पर अंजाम दिया जहां किसी तरह की सुविधा नहीं थी।
अगर, पचपेड़वा के एएनसी (वह प्रक्रिया जिसमें गर्भवती महिलाओं को एक रजिस्ट्रेशन के जरिए सरकारी डेटा में लाकर तमाम तरह के लाभ दिए जाते हैं।) में कुल महिलाओं में से महज 43.66 फीसदी महिलाओं को ही अस्पताल में प्रसव के लिए लाया जा सका। पचपेड़वा इस कारण से जिले में 6वें नंबर पर रहा।


Conclusion:क्या कहते हैं जिम्मेदार :-

जब पचपेड़वा की स्थिति के बारे में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आप जैसा बता रहे हैं। अगर वैसे ही स्थिति है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं जांच करवा कर कार्रवाई करूंगा।
वही सुविधाएं न दिए जाने पर सीएमओ ने कहा कि जलेसर तमाम तरह की सुविधाएं सीएचसी और पीएचसी सेंटर्स तक भेजी जाती है। अगर वहां पर तैनात कर्मचारी या अधिकारी मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं। तो इसके लिए वह जिम्मेदार होंगे। उन्होंने चीज़ो को क्यों दबा के रखा है? क्यों मरीजों को सुविधाएं नहीं देते हैं? यह जांच का विषय हम जल्द जांच करवा कर स्थिति में सुधार करने का वादा करते हैं।

कुल मिलाकर अधिकारी कुछ भी कहे लेकिन डेटा झूठ नहीं बोलता। पिछले 6 महीने का डाटा वाकई में खराब नजर आता है। जिस स्थिति को बेहतर करके जिले में नीति आयोग के इंडिकेटर्स में टॉप स्थान हासिल किया है। उसी के डाटा में तमाम तरह की खराबी नजर आती है। जो न केवल स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं। बल्कि व्याप्त भ्रष्टाचार और मरीजों से वसूली किए जाने का प्रमाण भी देते हैं।

बाईट :-
01 :- महेंद्र, तीमारदार
02 :- नूरजहां, तीमारदार
03 :- डॉ घनश्याम सिंह, सीएमओ बलरामपुर
पीटीसी :- योगेंद्र त्रिपाठी, 9839325432
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