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दो बच्चों के साथ भिवंडी से बलरामपुर पहुंची मां, कहा- वहां होती तो भूख से मर जाती

बलरामपुर-श्रावस्ती बॉर्डर पर भिवंडी से चलकर बलरामपुर पहुंचे तकरीबन 22 लोगों का जत्था जब रोका गया तो वहां पर बैठे सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की आंखें खुली की खुली रह गईं. एक छोटी सी पिकअप में तकरीबन 22 लोग, जिनमें एक महिला और उसके दो बच्चे भी तकरीबन 1600 किमी का सफर तय कर रहे थे.

पिकअप
पिकअप से बलरामपुर
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Published : Apr 24, 2020, 12:29 PM IST

बलरामपुरः वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान पलायन की अब विभस्त कहानियां भी देखने और सुनने को मिल रही हैं. चारों तरफ से पलायन का दौर चल रहा है. महानगरों में चारों तरफ फैल रही भुखमरी और अन्य समस्याओं के कारण मजदूर वर्ग बड़े पैमाने पर लगातार पलायन कर रहा है. लॉकडाउन और परिवहन के संसाधनों की कमी भी महानगरों में पलायन को रोकने में नाकाम हो रही है.

महामारी से पहले भूख से मरने का डर
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य औद्योगिक प्रदेशों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक और अन्य गरीब तबके के लोग अपने जिलों और गांवों की तरफ लगातार पलायन कर रहे हैं. परिवहन की व्यवस्था नहीं मिलती तो वह जुगाड़ से किसी न किसी तरह से अपने घरों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि परेशानियां ही इस कदर है कि अगर अपने काम की जगह पर रुके तो महामारी से मरे या न मरे, लेकिन भूख और बेरोजगारी की वजह से जरूर मर जाएंगे.

एक पिकअप में 22 लोगों ने की 1600 किमी की यात्रा
बलरामपुर-श्रावस्ती बॉर्डर पर भिवंडी से आ रहे लोगों को रोका गया तो एक छोटी सी पिकअप में 22 लोग मिले. इसमें एक महिला भी थी जो 2 बच्चों के साथ 1600 किमी. की इतनी कठिन यात्रा करके बलरामपुर पहुंची थी. सभी लोग तकरीबन 3 दिनों से भूखे थे, क्योंकि राशन ख़त्म हो गया था और कहीं रुकने पर पुलिस का डर था. इन लोगों को बलरामपुर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर गोंडा जिले के इटियाथोक जाना था. इस छोटी सी पिकअप में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो बलरामपुर जिले के ही रहने वाले थे.

सारे काम ठप सेठ भी गायब
माल ढुलाई का काम करने वाली महिला ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि अगर वह भिवंडी में होती तो कोरोना महामारी से अगर बच भी जाती तो भूख से मर जाती, क्योंकि वहां पर खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं बची थी. सारा काम बंद हो गया था और काफी दिक्कतें आने लगी थी. जिसके अंतर्गत वह काम करती थी, वह सेठ भी वहां से भाग गया था और फोन नहीं उठा रहा था.

सरकारी तंत्र भी नहीं आया काम
महिला ने बताया कि उसने महाराष्ट्र के सरकारी तंत्र से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन समस्या सॉल्व नहीं हुई. लॉकडाउन बढ़ने के बाद जब राशन पानी ख़त्म होने लगा तो लोग अपने घरों के लिए निकल पड़े. हम लोगों ने रास्ते में एक पिकअप तय किया, जिस पर सवार होकर अभी बलरामपुर पहुंचे हैं. अगर प्रशासन के लोगों ने जाने दिया तो जल्द ही घर भी पहुंच जाएंगे.

खेती से पेट भरने की उम्मीद
महिला ने बताया कि घर पर कुछ हो या ना हो, लेकिन हमारे पास खेत है और उसमें अनाज पैदा होता है. जो हमें कम से कम जिंदा रख लेगा. इसके अलावा हम कोई न कोई काम करके अपना गुजर-बसर कर लेंगे.

लगातार पलायन जारी
इस दौरान जो लोग बलरामपुर के थे, उन्हें चेकअप के बाद क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया और जो लोग गोंडा जिले के रहने वाले थे. उन्हें भोजन कराने के बाद उनके घर भेज दिया गया. इस तरह से हजारों लोग रोज पलायन कर रहे हैं और अपने गंतव्य तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. बहुत सारी परेशानियां भी आ रही हैं, लेकिन इन लोगों का हौसला घर पहुंचने तक नहीं टूट रहा है.

बलरामपुरः वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान पलायन की अब विभस्त कहानियां भी देखने और सुनने को मिल रही हैं. चारों तरफ से पलायन का दौर चल रहा है. महानगरों में चारों तरफ फैल रही भुखमरी और अन्य समस्याओं के कारण मजदूर वर्ग बड़े पैमाने पर लगातार पलायन कर रहा है. लॉकडाउन और परिवहन के संसाधनों की कमी भी महानगरों में पलायन को रोकने में नाकाम हो रही है.

महामारी से पहले भूख से मरने का डर
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य औद्योगिक प्रदेशों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक और अन्य गरीब तबके के लोग अपने जिलों और गांवों की तरफ लगातार पलायन कर रहे हैं. परिवहन की व्यवस्था नहीं मिलती तो वह जुगाड़ से किसी न किसी तरह से अपने घरों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि परेशानियां ही इस कदर है कि अगर अपने काम की जगह पर रुके तो महामारी से मरे या न मरे, लेकिन भूख और बेरोजगारी की वजह से जरूर मर जाएंगे.

एक पिकअप में 22 लोगों ने की 1600 किमी की यात्रा
बलरामपुर-श्रावस्ती बॉर्डर पर भिवंडी से आ रहे लोगों को रोका गया तो एक छोटी सी पिकअप में 22 लोग मिले. इसमें एक महिला भी थी जो 2 बच्चों के साथ 1600 किमी. की इतनी कठिन यात्रा करके बलरामपुर पहुंची थी. सभी लोग तकरीबन 3 दिनों से भूखे थे, क्योंकि राशन ख़त्म हो गया था और कहीं रुकने पर पुलिस का डर था. इन लोगों को बलरामपुर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर गोंडा जिले के इटियाथोक जाना था. इस छोटी सी पिकअप में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो बलरामपुर जिले के ही रहने वाले थे.

सारे काम ठप सेठ भी गायब
माल ढुलाई का काम करने वाली महिला ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि अगर वह भिवंडी में होती तो कोरोना महामारी से अगर बच भी जाती तो भूख से मर जाती, क्योंकि वहां पर खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं बची थी. सारा काम बंद हो गया था और काफी दिक्कतें आने लगी थी. जिसके अंतर्गत वह काम करती थी, वह सेठ भी वहां से भाग गया था और फोन नहीं उठा रहा था.

सरकारी तंत्र भी नहीं आया काम
महिला ने बताया कि उसने महाराष्ट्र के सरकारी तंत्र से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन समस्या सॉल्व नहीं हुई. लॉकडाउन बढ़ने के बाद जब राशन पानी ख़त्म होने लगा तो लोग अपने घरों के लिए निकल पड़े. हम लोगों ने रास्ते में एक पिकअप तय किया, जिस पर सवार होकर अभी बलरामपुर पहुंचे हैं. अगर प्रशासन के लोगों ने जाने दिया तो जल्द ही घर भी पहुंच जाएंगे.

खेती से पेट भरने की उम्मीद
महिला ने बताया कि घर पर कुछ हो या ना हो, लेकिन हमारे पास खेत है और उसमें अनाज पैदा होता है. जो हमें कम से कम जिंदा रख लेगा. इसके अलावा हम कोई न कोई काम करके अपना गुजर-बसर कर लेंगे.

लगातार पलायन जारी
इस दौरान जो लोग बलरामपुर के थे, उन्हें चेकअप के बाद क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया और जो लोग गोंडा जिले के रहने वाले थे. उन्हें भोजन कराने के बाद उनके घर भेज दिया गया. इस तरह से हजारों लोग रोज पलायन कर रहे हैं और अपने गंतव्य तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. बहुत सारी परेशानियां भी आ रही हैं, लेकिन इन लोगों का हौसला घर पहुंचने तक नहीं टूट रहा है.

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