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बलरामपुर: थारू जनजाति के छात्रों के लिए वरदान साबित हो रही ये आईटीआई - बलरामपुर में स्थित आईटीआई

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में स्थित आईटीआई थारू जनजाति के बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यहां के 45 गांवों में रहने वाले थारु जनजाति के छात्र छात्राएं इंजीनियरिंग और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग की पढ़ाई करके अपने समाज को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

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बलरामपुर के विशुनपुर में स्थित आईटीआई..
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Published : Feb 8, 2020, 1:14 PM IST

बलरामपुर: सदियों से अपनी मेहनत और काबलियत के लिए जानी जाने वाली आदिवासी जनजाति थारु, आज मुख्य धारा से जुड़ने का पुरजोर कोशिश कर रही है. सरकार की तमाम योजनाएं इनके जीवनस्तर को न केवल उठाने का काम कर रही हैं, बल्कि इन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़ने का काम भी कर रही हैं.

बलरामपुर के विशुनपुर में स्थित आईटीआई.
नेपाल के तलहटी वाले इलाकों में रहने वाली इस जनजाति के सामाजिक उत्थान और समाजिक समानता का अधिकार दिलाने के लिए सरकारें सालों से कोशिश कर रही हैं. पचपेड़वा के विशुनपुर में तकरीबन 10 साल पहले बनाई गई आईटीआई हर साल सैंकड़ों हुनरमंद कामगार पैदा कर रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा संख्या में यहां के 45 गांवों में रहने वाले थारु जनजाति के छात्र छात्राएं इंजीनियरिंग और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग की पढ़ाई करके अपने समाज को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. इस आईटीआई के माध्यम से हुनरमंद बनकर सरकारी क्षेत्र से प्राइवेट क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं.विशुनपुर में स्थिति इस आईटीआई में हर साल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 75 फीसदी छात्र-छात्राएं प्रवेश करते हैं और पासआउट होते हैं. हर साल यहां पर कुल 400 छात्र-छात्राओं का एडमिशन होता है और प्लेस मेंट सेल के तहत दर्जन भर से ज़्यादा कंपनियां इन्हें नौकरियां भी देती हैं, जिनमें 9 हजार से लेकर 20 हजार रुपये प्रतिमाह के औसत इनकम पर इन छात्र-छात्राओं को नौकरी दी जाती है.


इसे भी पढ़ें:-कोरोना वायरस : सरकार ने बताया- वुहान में अभी भी मौजूद हैं 80 भारतीय छात्र

ये आईटीआई हम थारु जनजाति के लोगों के लिए वरदान सरीखा है. हम यहां ना केवल इंडस्ट्री से जुड़ी प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हैं, बल्कि हमें बड़े पैमाने पर नौकरी भी मिल रही है.
प्रशांत चौधरी, छात्र
पहले इस तरह की पढ़ाई करने के लिए हमें गोंडा और लखनऊ जैसे शहरों का रुख करना पड़ता था, लेकिन अब हम अपने गांव के पास ही रहकर यहां पढ़ाई करते हैं और अपना भविष्य संवार रहे हैं.
पूनम चौधरी, छात्रा

इस रिमोट एरिया में आईटीआई की स्थापना का मकसद था कि यहां पर आसपास रहने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र छात्राओं को हुनरमंद बना कर समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जा सके. यहां की 75 फीसदी सीटें एससी और एसटी समाज के छात्र-छात्राओं के आरक्षित है.
इंजीनियर केएन पांडेय, प्राचार्य, आई टीआई विशुनपुर

बलरामपुर: सदियों से अपनी मेहनत और काबलियत के लिए जानी जाने वाली आदिवासी जनजाति थारु, आज मुख्य धारा से जुड़ने का पुरजोर कोशिश कर रही है. सरकार की तमाम योजनाएं इनके जीवनस्तर को न केवल उठाने का काम कर रही हैं, बल्कि इन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़ने का काम भी कर रही हैं.

बलरामपुर के विशुनपुर में स्थित आईटीआई.
नेपाल के तलहटी वाले इलाकों में रहने वाली इस जनजाति के सामाजिक उत्थान और समाजिक समानता का अधिकार दिलाने के लिए सरकारें सालों से कोशिश कर रही हैं. पचपेड़वा के विशुनपुर में तकरीबन 10 साल पहले बनाई गई आईटीआई हर साल सैंकड़ों हुनरमंद कामगार पैदा कर रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा संख्या में यहां के 45 गांवों में रहने वाले थारु जनजाति के छात्र छात्राएं इंजीनियरिंग और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग की पढ़ाई करके अपने समाज को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. इस आईटीआई के माध्यम से हुनरमंद बनकर सरकारी क्षेत्र से प्राइवेट क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं.विशुनपुर में स्थिति इस आईटीआई में हर साल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 75 फीसदी छात्र-छात्राएं प्रवेश करते हैं और पासआउट होते हैं. हर साल यहां पर कुल 400 छात्र-छात्राओं का एडमिशन होता है और प्लेस मेंट सेल के तहत दर्जन भर से ज़्यादा कंपनियां इन्हें नौकरियां भी देती हैं, जिनमें 9 हजार से लेकर 20 हजार रुपये प्रतिमाह के औसत इनकम पर इन छात्र-छात्राओं को नौकरी दी जाती है.


इसे भी पढ़ें:-कोरोना वायरस : सरकार ने बताया- वुहान में अभी भी मौजूद हैं 80 भारतीय छात्र

ये आईटीआई हम थारु जनजाति के लोगों के लिए वरदान सरीखा है. हम यहां ना केवल इंडस्ट्री से जुड़ी प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हैं, बल्कि हमें बड़े पैमाने पर नौकरी भी मिल रही है.
प्रशांत चौधरी, छात्र
पहले इस तरह की पढ़ाई करने के लिए हमें गोंडा और लखनऊ जैसे शहरों का रुख करना पड़ता था, लेकिन अब हम अपने गांव के पास ही रहकर यहां पढ़ाई करते हैं और अपना भविष्य संवार रहे हैं.
पूनम चौधरी, छात्रा

इस रिमोट एरिया में आईटीआई की स्थापना का मकसद था कि यहां पर आसपास रहने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र छात्राओं को हुनरमंद बना कर समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जा सके. यहां की 75 फीसदी सीटें एससी और एसटी समाज के छात्र-छात्राओं के आरक्षित है.
इंजीनियर केएन पांडेय, प्राचार्य, आई टीआई विशुनपुर

Intro:
सदियों से अपनी मेहनत और काबलियत के लिए जानी जाने वाले आदिवासी जनजाति थारु, आज मुख्य धारा से जुड़ने का पुरजोर कोशिश कर रही है। सरकार की तमाम योजनाएं इनके जीवनस्तर को ना केवल उठाने का काम कर रही हैं। बल्कि इन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़ने का काम भी कर रही हैं।

नेपाल के तलहटी वाले इलाकों में रहनी वाली इस जनजाति के सामाजिक उत्थान और समाजिक समानता का अधिकार दिलाने के लिए सरकारें सालों से कोशिश कर रही है। पचपेड़वा के विशुनपुर में तकरीबन 10 साल पहले आईटीआई के रुप में रोपा गया पौधा, आज हर साल सैंकड़ों हुनरमंद कामगार पैदा कर रहा है। जिसमें सबसे ज़्यादा संख्या में यहां के 45 गांवों में रहने वाले थारु जनजाति के छात्र छात्राएं इंजीनियरिंग और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग की पढ़ाई करके अपने समाज को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस आईटीआई के माध्यम से हुनरमंद बनकर सरकारी क्षेत्र से प्राइवेट क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं।


Body:विशुनपुर में स्थिति इस आईटीआई में हर साल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 75 फीसदी छात्र-छात्राएं प्रवेश करते हैं और पासआउट होते हैं। हर साल यहां पर कुल 400 छात्र-छात्राओं का एडमिशन होता है और प्लेस मेंट सेल के तहत दर्जन भर से ज़्यादा कंपनियां इन्हें नौकरियां भी देती हैं। जिनमें 9 हजार से लेकर 20 हजार रुपए प्रतिमाह के औसत इनकम पर इन छात्र-छात्राओं को नौकरी दी जाती है।
हमसे बात करते हुए छात्र कहते हैं कि ये आईटीआई हम थारु जनजाति के लोगों के लिए वरदान सरीखा है। हम यहां ना केवल इंडस्ट्री से जुड़ी प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हैं। बल्कि हमें बड़े पैमाने पर नौकरी भी मिल रही है।
छात्राएं बताती हैं कि पहले इस तरह की पढ़ाई करने के लिए हमें गोंडा और लखनऊ जैसे शहरों का रुख करना पड़ता था। लेकिन अब हम अपने गांव के पास ही रहकर यहां पढ़ाई करते हैं और अपना भविष्य संवार रहे हैं।


Conclusion:आईटीआई के प्राचार्य केएन पांडेय बताते हैं कि इस रिमोट एरिया में आईटीआई की स्थापना का मकसद था कि यहां पर आसपास रहने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र छात्राओं को हुनरमंद बना कर समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जा सके।
वह कहते हैं कि यहां की 75 फीसदी सीटें एससी और एसटी समाज के छात्र-छात्राओं के आरक्षित है। हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि यहां पढ़ाई करने वाले बच्चों को न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। बल्कि जब उनकी पढ़ाई पूरी हो तो उनके हाथ में काम भी दिया जा सके।
बाईट क्रमशः :-
01 :- पूनम चौधरी, छात्रा
02 :- प्रशांत चौधरी, छात्र
03 :- इंजीनियर केएन पांडेय, प्राचार्य, आई टीआई विशुनपुर

योगेंद्र त्रिपाठी, 9839325432
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