बलरामपुर: एक तरफ सरकारी अमला और बेसिक शिक्षा विभाग जिले भर के परिषदीय स्कूलों में सुधार लाने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है. वहीं बलरामपुर जैसे अतिमत्वकांक्षी जिले में कुछ प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐसे भी हैं, जहां पर पढ़ने वाले छात्र न केवल कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों को अपनी पढ़ाई और शैक्षणिक समझ से मात दे रहे हैं, बल्कि वह किसी से भी विधा में कम नहीं दिखते है.
टीएलएम के जरिए दी जा रही हैं शिक्षा-
जिले के उच्च प्राथमिक विद्यालय घोसियार में 87 बच्चों का पंजीकरण हो चुका है, जो नए-नए संसाधनों के जरिए, बेहतरीन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. बच्चों की खासियत यह है कि इन्हें टीएलएम (टीचिंग लर्निंग मैटैरियल) के जरिए शिक्षा प्रदान की जाती है. टीएलएम से मिलने वाली शिक्षा के जरिए न केवल बच्चे तेजी से सीखते हैं, बल्कि यहां पर तैनात सहायक अध्यापिका श्रुति श्रीवास्तव द्वारा उनका टेस्ट भी लिया जाता है. इस दौरान बच्चे न केवल पूरी तन्मयता के साथ अच्छे तरीके से गणित विज्ञान के सवालों को सीख पाते हैं, बल्कि किसी के भी द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब भी दे पाते हैं.
कॉन्वेंट स्कूल के बच्चे को टक्कर दे रहे परिषदीय स्कूल के बच्चे-
यहां पढ़ने वाले बच्चे उन चीजों को एक्सप्लेन भी कर लेते हैं, जो प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे अमूमन नहीं कर पाते. सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और कुछ बच्चों को संगीत में इतनी रुचि है कि वह ढोलक, मजीरा और अन्य चीजें भी बजाना सीख रहे हैं. बच्चों को बेहतर से बेहतर एडवांस लर्निंग प्रोग्राम के तहत शिक्षा दी जा सके, इसलिए यहां की सहायक अध्यापिका लैपटॉप से उन्हें वीडियो-ऑडियो के माध्यम से शिक्षा देती हैं. यहां पर पढ़ने वाले बच्चे न केवल हिंदी में बेहतरीन कविताएं और गीत सुनाते हैं बल्कि अंग्रेजी में एक्शन के साथ इनका गीत सुनकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो सकता है.
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प्रैक्टिकल के रूप में बच्चे को दी जाती है शिक्षा-
स्कूल के छात्र सुधीर कुमार वर्मा और दीपक कुमार जो कक्षा छह और सात में पढ़ाई करते हैं, उन्होंने कहा कि हमें यहां पर मिलने वाली शिक्षा में तमाम तरह की खासियत हैं. हम लोग थ्योरी के रूप में कम, प्रैक्टिकल रूप में ज्यादा चीजों को समझते हैं. इस तरह से हमें पढ़ाया जाता है तो पाठ न केवल तुरंत याद हो जाता है बल्कि हम उसे कभी नहीं भूलते हैं. हम टीएलएम के जरिए गणित के सवालों को हल करते हैं और विज्ञान की तमाम चीजों को भी सीखते हैं. वहीं हिंदी और अंग्रेजी सीखने के लिए भी हम टीएलएम और अन्य स्टडी मटैरियल का प्रयोग करते हैं.
जानिए क्या कहा अध्यापिका ने-
अध्यापिका ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका यह होता है कि वह अध्यापक उन बच्चों के साथ अपना जुड़ाव पैदा कर सकें. अगर जुड़ाव बन जाता है तो बच्चों के पढ़ाने में दिक्कत नहीं होती. एक समय ऐसा आता है जब बच्चों को हमारी आवश्यकता ही नहीं रह जाती और वह खुद-ब-खुद चीजों को करते सीखने लगते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हमे पाचन तंत्र को समझना है तो हम बच्चों को अगर ब्लैक बोर्ड पर समझाएंगे तो उन्हें कम समझ में आएगा. वहीं अगर पाचन तंत्र का ड्रेस बनाकर उन्हें समझाया जाए तो वह चीजों को जल्दी से समझ जाएंगे. उन्होंने विद्यालय की खासियत बताते हुए कहा कि हमारे यहां कई ऐसे बच्चे भी पढ़ रहे हैं जो दूरदराज के इलाकों से आते हैं जबकि उनके गांव में ही कई परिषदीय और प्राइवेट स्कूल हैं.