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बलियाः थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम, मां खून के लिए दर-दर भटक रही

यूपी के बलिया जिले में थैलेसीमिया से पीड़ित एक बच्चे को खून नहीं मिलने का मामला सामने आया है. बच्चे की मां ने आरोप लगाया है कि स्वास्थ्य विभाग कागजी कार्रवाई के नाम पर इधर से उधर टहला रहा है.

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पीड़ित बच्चे के साथ मां.
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Published : Jun 11, 2020, 3:18 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

बलियाः स्वास्थ्य सेवा को लेकर यूपी सरकार सजग होने का दावा करती है, लेकिन बलिया के जिला अस्पताल में एक मासूम को ब्लड के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. 7 साल के मासूम आर्यन को थैलेसीमिया नामक गंभीर बीमारी है. इसे प्रत्येक 20 दिन में खून की जरूरत होती है, लेकिन सरकारी सिस्टम की लचर व्यवस्था के कारण इस भीषण गर्मी में मासूम को मां के साथ विभागों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम.

नहीं मिल रहा एक यूनिट ब्लड
बैरिया विधानसभा क्षेत्र की दल छपरा गांव की रहने वाली वंदना देवी के बेटे आर्यन को थैलेसीमिया की बीमारी है. वंदना अपने बेटे को बचाने के लिए कभी ब्लड बैंक तो कभी मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के कार्यलय के चक्कर लगा रही है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इन्हें वापस कर देता है.

वंदना देवी बताती हैं कि पिछले 7 सालों से इनका बेटा इस बीमारी से परेशान है. लॉकडाउन की वजह से उनके पति बाहर फंस गए हैं. वंदना का कहना है कि पिछले महीने ही अपना ब्लड डोनेट कराकर बेटे को ए पॉजिटिव ब्लड चढ़वाया. इस महीने फिर खून चढ़ाने की आवश्यकता है, लेकिन ब्लड बैंक के लोग कागजी कार्रवाई के नाम पर इधर से उधर दौड़ा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- बलिया: कोरोना ने सब्जी किसानों की तोड़ी कमर, मुनाफा तो दूर नहीं निकल रही लागत

जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीपी सिंह ने खुद माना कि यह ब्लड कैंसर के समान बीमारी है. इसमें शरीर में खून बनना बंद हो जाता है. बलिया के ब्लड बैंक में ए पॉजिटिव ब्लड उपलब्ध है, बावजूद इसके मासूम को एक यूनिट ब्लड के लिए भटकना पड़ रहा है.

क्या है थैलीसेमिया
थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर डिजीज है. जो आनुवांशिक रोग के तौर पर माता-पिता से बच्चों में आती है. इस बीमारी में शरीर में बनने वाला लाल रक्त कण बनना बंद हो जाता है. जिस कारण मनुष्य के शरीर में हीमोग्लोबिन कम होता रहता है और उसे एनीमिया का शिकार होना पड़ता है. यह बीमारी बच्चों में 3 महीने के बाद ही पता चल पाती है. रेड ब्लड सेल कम हो जाने की वजह से मनुष्य के शरीर में थकान, कमजोरी, चेहरे पर सूजन, पेट की आंतों में सूजन के साथ ही शरीर का रंग भी पीला पड़ना शुरू हो जाता है. 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के रूप में मनाया जाता है.

शासनादेश में है डोनेट किए बिना मिलता है ब्लड
थैलेसीमिया बीमारी की गंभीरता को देखते हुए शासनादेश है कि इसके मरीज को बिना ब्लड डोनेट किए एक यूनिट ब्लड दिया जाए. क्योंकि प्रत्येक 20 से 25 दिन में इसके पेशेंट को खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है. ऐसे में परिवार का सदस्य हर महीने ब्लड डोनेट नहीं कर सकता.

बलियाः स्वास्थ्य सेवा को लेकर यूपी सरकार सजग होने का दावा करती है, लेकिन बलिया के जिला अस्पताल में एक मासूम को ब्लड के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. 7 साल के मासूम आर्यन को थैलेसीमिया नामक गंभीर बीमारी है. इसे प्रत्येक 20 दिन में खून की जरूरत होती है, लेकिन सरकारी सिस्टम की लचर व्यवस्था के कारण इस भीषण गर्मी में मासूम को मां के साथ विभागों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम.

नहीं मिल रहा एक यूनिट ब्लड
बैरिया विधानसभा क्षेत्र की दल छपरा गांव की रहने वाली वंदना देवी के बेटे आर्यन को थैलेसीमिया की बीमारी है. वंदना अपने बेटे को बचाने के लिए कभी ब्लड बैंक तो कभी मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के कार्यलय के चक्कर लगा रही है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इन्हें वापस कर देता है.

वंदना देवी बताती हैं कि पिछले 7 सालों से इनका बेटा इस बीमारी से परेशान है. लॉकडाउन की वजह से उनके पति बाहर फंस गए हैं. वंदना का कहना है कि पिछले महीने ही अपना ब्लड डोनेट कराकर बेटे को ए पॉजिटिव ब्लड चढ़वाया. इस महीने फिर खून चढ़ाने की आवश्यकता है, लेकिन ब्लड बैंक के लोग कागजी कार्रवाई के नाम पर इधर से उधर दौड़ा रहे हैं.

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जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीपी सिंह ने खुद माना कि यह ब्लड कैंसर के समान बीमारी है. इसमें शरीर में खून बनना बंद हो जाता है. बलिया के ब्लड बैंक में ए पॉजिटिव ब्लड उपलब्ध है, बावजूद इसके मासूम को एक यूनिट ब्लड के लिए भटकना पड़ रहा है.

क्या है थैलीसेमिया
थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर डिजीज है. जो आनुवांशिक रोग के तौर पर माता-पिता से बच्चों में आती है. इस बीमारी में शरीर में बनने वाला लाल रक्त कण बनना बंद हो जाता है. जिस कारण मनुष्य के शरीर में हीमोग्लोबिन कम होता रहता है और उसे एनीमिया का शिकार होना पड़ता है. यह बीमारी बच्चों में 3 महीने के बाद ही पता चल पाती है. रेड ब्लड सेल कम हो जाने की वजह से मनुष्य के शरीर में थकान, कमजोरी, चेहरे पर सूजन, पेट की आंतों में सूजन के साथ ही शरीर का रंग भी पीला पड़ना शुरू हो जाता है. 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के रूप में मनाया जाता है.

शासनादेश में है डोनेट किए बिना मिलता है ब्लड
थैलेसीमिया बीमारी की गंभीरता को देखते हुए शासनादेश है कि इसके मरीज को बिना ब्लड डोनेट किए एक यूनिट ब्लड दिया जाए. क्योंकि प्रत्येक 20 से 25 दिन में इसके पेशेंट को खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है. ऐसे में परिवार का सदस्य हर महीने ब्लड डोनेट नहीं कर सकता.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST
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